जिंदगी के इस सफर में भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ।
जिंदगी के
इस सफर में
भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ
गीत हूँ मै,
इस सदी का
व्यंग का किस्सा नहीं हूँ.
शाख पर
बैठे परिंदे
प्यार से जब बोलतें है
गीत भी
अपने समय की
हर परत को खोलतें हैं
भाव का
खिलता कँवल हूँ
मौन का भिस्सा नहीं हूँ।
शब्द उपमा
और रूपक
वेदना के स्वर बनें हैं
ये अमिट
धनवान हैं जो
छंद बन झर झर झरे हैं
प्रीति का मधुमास हूँ
खलियान का मिस्सा नहीं हूँ
अर्थ
बिम्बों में समेटे
राग रंजित मंत्र प्यारे
कंठ से
निकले हुए स्वर
कर्ण प्रिय
मधुरस नियारे
मील का
पत्थर बना हूँ
दरकता
सीसा नहीं हूँ।
-- शशि पुरवार
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
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बेहद सुन्दर कविता ......
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत रचना है
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत रचना है
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत नवगीत।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 14 दिसम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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