द्वेष, कुंठा, खूँ - खराबा रात्रि गहराने लगी है
लाख गहराये अँधेरा एक दीपक तुम जलाओ.
खिड़कियों से झाँकती जो एक टुकड़ा धूप छनकर
आस की वैसी किरण बन, हर तिमिर जग से मिटाओ.
दुर्गुणों का अंत हो, हो अंतरात्मा की सफाई
देश में चैनो अमन हो, राग मिलकर गुनगुनाओ.
नव सुबह का खुश नजारा ,हर पनीली आँख देखे
वेदना के स्वर मिटाकर इक हँसी बन खिलखिलाओ.
चिलचिलाती धूप जब पाँवों में डाले बेड़ियां, तब
फिर कहे शशि छंद रचकर जय को गुनगुनाओ.
--- शशि पुरवार दुर्गुणों का अंत हो, हो अंतरात्मा की सफाई
देश में चैनो अमन हो, राग मिलकर गुनगुनाओ.
नव सुबह का खुश नजारा ,हर पनीली आँख देखे
वेदना के स्वर मिटाकर इक हँसी बन खिलखिलाओ.
चिलचिलाती धूप जब पाँवों में डाले बेड़ियां, तब
फिर कहे शशि छंद रचकर जय को गुनगुनाओ.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-01-2016) को "2016 की मेरी पहली चर्चा" (चर्चा अंक-2209) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
नववर्ष 2016 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन प्रस्तुती, नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteumda :) nav varsh ki mangal kamnaye
ReplyDeleteumda :) nav varsh ki mangal kamnaye
ReplyDeleteबहुत सुन्दर नवगीत प्रस्तुति
ReplyDeleteआपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!
सुन्दर रचना
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना...
ReplyDeleteनववर्ष मंगलमय हो।
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
bahut hi prernadayak rachna badhai .
ReplyDeletepushpa mehra
बेहद सुंदर रचना की प्रस्तुति। नए साल की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबेहद सुंदर रचना की प्रस्तुति। नए साल की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
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