फेसबुकी दुनिया के तिलिस्मी रिश्ते ! जी हाँ यह प्यार भरी यह प्यारी दुनियां - नैनों का तारा बन चुकी है. इसके पहले हम बात कर रहे थे दर्शन से प्रदर्शन तक। इस बहती गंगा में न जाने कितने संपादकों का क्या क्या गरम हो रहा है। किसी का माथा, किसी का बिस्तर , किसी की जेब। और भी न जाने क्या क्या ! यह अपने आप में स्वतंत्र शोध का विषय है। फेसबुकी रचनाकारों की फेसबुकी किताबें छप रही हैं। जीवन की किताब अब डिजिटल किताब बन चुकी है। अब थूक लगाकर पन्ने नहीं पलटने पड़ते हैं माउस से काम हो जाता है। वर्षों पुराने रिश्ते जी उठे हैं। आदमी आदमी का हो गया है। फेंटेसी सच्चाई बन गयी है। पहले परिवार का दायरा सिमित था, अब अपरिमित है। फेसबुक पर ही जन्मदिन मन रहा है और वहीँ श्रद्धांजलि भी दे दी जा रही है। परिवार का कौन सदस्य क्या कर रहा है, उसकी रूचि कुरुचि क्या है, इसकी जानकारी भी अब फेसबुक से मिलती है, कौन कहाँ जा रहा है, कौन किसके साथ पार्टी मना रहा है, कौन घर आ रहा हैं, कौन किसके फोटो लाइक कर रहा है, किसके टाँके किससे भिड़े है, यह फेसबुक पर जासूसी हो रही है। मगर अब कौन डरता है, जो जहाँ मरता है वह कहीं और भी मरता है - ये वाला जमाना आ गया है।
कोई बहती गंगा में हाथ धो रहा है , कोई आँखों के समंदर में डूब रहा है। ये फेसबुक जो न कराये। अजी आजकल कार्टून कौन देखता है, लोग स्वयं इसका हिस्सा बने हुए हैं, इस चैनल की जगह फेसबुकी दुनियां ने ले ली है. फेसबुक पर एक से एक कार्टून भरे पड़े हैं. चाहे जिससे दिल लगाओ।
कभी कभी मन में विचार आतें है कि यदि यह फेसबुक न होगा तो लोगों का क्या होगा? यह फेसबुक किसी दिन नहीं रहेगा तो क्या होगा ? सारे लोग पगला जायेंगे। पता नहीं कौन सा कदम उठा जायेंगे। कहाँ करेंगे लोग टाइम पास। कहाँ लिखेगी भड़ास बहु, जब दुखी होगी सास ! कहाँ लेंगे कवि लोग चांस ! फेसबुक नहीं होगा तो सेल्फ़ी कहाँ लगाएंगे ? यह सेल्फ़ी का युग है। हर आदमी सेल्फ़ी है। दफ्तर से लेकर घर तक की सेल्फ़ी - सेल्फ़ी। सड़क से लेकर संसद तक। कई लोग सेल्फ़ी खींचने के लिए ही कहीं आते -जाते हैं। यह नया दौर है, नया नशा है।
यह दुनियां अब शराब की ऐसी बोतल के समान है जिसका नशा उतरने का नाम ही नहीं लेता है, और यह शराब नसों में घुलकर उन्माद की परिकाष्ठा तक पहुँचा रही है. हाय जब यह न होगा तो मजा कैसे आएगा। किसे अपने किचन से बैडरूम तक की तस्वीरें दिखाएंगे ? क्या लाइक करेंगे ? कहाँ कमेंट्स करेंगे। यह लाइकबाजी और कमेंट्सबाजी का दौर है।
यहाँ हर रिश्ता जायज है, रिश्ते को नाम न दो। लोग खुलकर बोल रहे हैं। खुलकर अपनी भावनाएं व्यक्त कर रहे हैं। भावनाओं की चाँदी है और कामनाओं की भी। प्रीत के तार ऐसे जुड़ें हैं कि टूटने का नाम ही नहीं लेते हैं. नैन मटक्का अब चैन मटक्का बनता जा रहा है, कुछ नए रिश्ते गुदगुदा रहें है, कुछ प्रीत की डोर से बँधने के लिए तैयार बैठें हैं। कुछ रिश्तें सेलिब्रिटी बनकर अपने जलवे दिखा रहें है. चैन लूटकर ले गया बैचेन कर गया ........ यहाँ हर आदमी बैचेन हैं। कोई कुछ पाने के लिए कोई कुछ खोने को।
.-- शशि पुरवार
जय मां हाटेशवरी....
ReplyDeleteआप ने लिखा...
कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
दिनांक 23/12/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की जा रही है...
इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
कुलदीप ठाकुर...
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-12-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2200 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
सच बात
ReplyDeleteBilkul sahi likha hai aapne
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा पोस्ट बधाई आपको शशि जी |नववर्ष की शुभकामनाएँ |
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर
ReplyDelete