१
खोई खोई चांदनी, खुशियाँ भी है दंग
सुख दुख के सागर यहाँ, कुदरत के हैं रंग
कुदरत के हैं रंग, न जाने दीपक बाती
पल मे छूटे संग, समय ने लिख दी पाती
शशि कहती यह सत्य, अाँख जो बूढ़ी रोई
ममता चकनाचूर, छाँव भी खोई खोई।
२
जाने कैसा हो गया, जीवन का संगीत
साँसे बूढ़ी लिख रही, सूनेपन का गीत
सूनेपन का गीत, विवेक तृष्णा से हारा
एकल हो परिवार, यही है जग का नारा
शशि कहती यह सत्य, प्रीत से बढ़कर पैसा
नही त्याग का मोल, हुअा वक़्त न जाने कैसा।
शशि पुरवार

