फिर चलो इस जिंदगी को
गुनगुनाएँ हम
बैठ कर बातें करें औ
मुस्कुराएँ हम
लान कुर्सी पर मधुर
संगीत को सुन लें
चाय की चुस्की भरे हर
स्वाद को गुन लें
प्रीत के निर्झर पलों को
गुदगुदाएं हम
फिर चलो इस जिंदगी को
गुनगुनाएँ हम
अनकही बातें कहें जो
शेष हैं मन में
गंध फूलों की समेटे
आज दामन में.
नेह की, नम दूब से
शबनम चुराएँ हम
फिर चलो इस जिंदगी को
गुनगुनाएँ हम
इस समय की धार में
कुछ ख्वाब हैं छूटे
उम्र भी छलने लगी, पर
साज ना टूटे
साँझ के शीतल पलों को
जगमगाएँ हम
फिर चलो इस जिंदगी को
गुनगुनाएँ हम
जिंदगी की धूप में
बेकल हुई कलियाँ
साथ तुम चलते रहे, यूँ
कट गयीं गलियाँ
एक मुट्ठी चाँदनी में
फिर नहाएँ हम
फिर चलो इस जिंदगी को
गुनगुनाएँ हम
- शशि पुरवार
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-05-2017) को
ReplyDeleteमैया तो पाला करे, रविकर श्रवण कुमार; चर्चामंच 2635
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
ReplyDeleteअतिसुन्दर रचना! जीवन को एक नया आयाम देती हुई। आभार। "एकलव्य"
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 05 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआप सभी का अनमोल टिप्पणी व प्रोत्साहन हेतु हार्दिक धन्यवाद
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 05 जून 2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर.......
ReplyDeleteजिन्दगी को गुनगुनाएं हम....
लाजवाब