shashi purwar writer

Saturday, June 16, 2018

बच्चों वाले खेल

उत्सव की वह सौंधी खुशबू 
ना अंगूरी बेल 
गली मुहल्ले भूल गए हैं 
बच्चों वाले खेल 

लट्टू, कंचे, चंग, लगौरी 
बीते कल के रंग 
बचपन कैद हुआ कमरों में 
मोबाइल के संग 

बंद पड़ी है अब बगिया में 
छुक छुक वाली रेल 
गली मुहल्ले भूल गए हैं 
बच्चों वाले खेल. 

बारिश का मौसम है, दिल में 
आता बहुत उछाव 
लेकिन बच्चे नहीं चलाते 
अब कागज की नाव 

अंबिया लटक रही पेड़ों पर 
चलती नहीं गुलेल 
गली मुहल्ले भूल गए हैं 
बच्चों वाले खेल. 

दादा - दादी, नाना - नानी
बदल गए हालात 
राजा - रानी, परी कहानी 
नहीं सुनाती रात 

छत पर तारों की गिनती 
सपनों ने कसी नकेल 
गली मुहल्ले भूल गए हैं 
बच्चों वाले खेल.
शशि पुरवार 
चित्र गूगल से साभार 

Monday, June 11, 2018

हीरे सा प्रतिमान


उमर सलोनी चुलबुली, सपन चढ़े परवान
आलोकित शीशा लगे, हीरे सा प्रतिमान1 

एक सुहानी शाम का, दिलकश हो अंदाज
मौन थिरकता ही रहे , हृदय बने कविराज2 

मन के रेगिस्तान में, भटक रही है प्यास
अंगारों की सेज पर, जीने का अभ्यास3 

निखर गया है धूप में, झरा फूल कचनार
गुलमोहर की छाँव में, पनप रहा है प्यार4 

कुर्सी पर बैठे हुए, खुद को समझे दूत
संकट छाया देश पर, ऐसे पूत कपूत5 

पाप पुण्य का खेल है, कर्मों का आव्हान
पाखंडी के जाल में , मत फँसना इंसान6 

झूम रही है डालियाँ, बूॅंद करे उत्पात
बरखा रानी आ गई, भीगे तन मन पात 7

आॅंगन में बरगद नहीं, ना शहरों से गाॅंव
ना चौपाले नेह की, घड़ियाली है छाॅंव 8 

चाँदी की थाली सजी, फिर शाही पकवान
माँ बेबस लाचार थी, दंभ भरे इंसान 9 


शशि पुरवार 

Monday, June 4, 2018

टेढी हुई जुबान


भोर हुई मन बावरा, सुन पंछी का गान
गंध पत्र बाँटे पवन, धूप रचे प्रतिमान 
 

पानी जैसा हो गया, संबंधो में खून
धड़कन पर लिखने लगे, स्वारथ का कानून 
 

आशा सुख की रागिनी, जीवन की शमशीर
गम की चादर तान कर, फिर सोती है पीर


सोने जैसी जिंदगी, हीरे सी मुस्कान
तपकर ही मिलता यहाँ, खुशियों का बागान
 

जीवन तपती रेत सा, अंतहीन सी प्यास
झरी बूँद जो प्रेम की, ठहर गया मधुमास 
 

सत्ता में होने लगा, जंगल जैसा राज
गीदड़ भी आते नहीं, तिड़कम से फिर बाज


सत्ता में होने लगा, जंगल जैसा राज
गीदड़ भी आते नहीं, तिड़कम से फिर बाज


उपकरणों का ढेर है, सुविधा का सामान
धरती बंजर हो रही, मिटे खेत खलियान


फिसल गई ज्यों शब्द से, टेढी हुई जुबान
अपना ही घर फूंकते,विवादित से बयान


मन भी गुलमोहर हुआ, प्रेम रंग गुलजार
ह्रदय वसंती मद भरा ,गीत झरे कचनार 
 

समय लिख रहा माथ पर,उमर फेंटती ताश
तन धरती पर रम रहा, मन चाहे आकाश


संवादों में हो रहा, शब्दों से आघात
हरा रंग वह प्रेम का, झरते पीले पात

शशि पुरवार  

सामाजिक मीम पर

 अदद करारी खुशबू  शर्मा जी अपने काम में मस्त   सुबह सुबह मिठाई की दुकान को साफ़ स्वच्छ करके करीने से सजा रहे थे ।  दुकान में बनते गरमा गरम...

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