सांठ गाँठ का चक्कर
आनंदी अपने काम में व्यस्त थी। सुबह सुबह मिठाई की दुकान को साफ़ स्वच्छ करके करीने से सामान सजा रही थी। दुकान में बनते गरमा गरम पोहे जलेबी की खुशबु नथुने में भरकर जिह्वा को ललचा ललचा रही थी। खाने के शौक़ीन ग्राहकों का हुजूम सुबह सुबह उमड़ने लगता था। आनंदी के दुकान की मिठाई व पकवान खूब प्रसिद्ध थे। जितने प्रेम से वह ग्राहक को खिलाकर सम्मान देती थी। उतनी ही कुशलता से वह दुकान का कार्यभार संभालती थी। उतनी ही गजब की निडर व आत्मविश्वासी थी. पति के निधन के बाद अपने मजबूत कंधो पर दुकान की जिम्मेदारी कम उम्र में संभाली थी। वही अपने बच्चों अच्छे से पाल रही थी। अच्छे उतने ही सरल या कहे भोले भंडारी थे। अासपास के लोग उन्हे स्नेह व सम्मान से अम्मा जी कहकर बुलाते थे. उम्र ढलने लगी थी पर चेहरे का नूर कम नहीं हुआ था। बेटे के साथ आज भी दुकान पर बैठना उसकी आदत थी।
खैर आज दुकान पर भीड़ कुछ ज्यादा ही थी कि फूड विभाग वाले जाँच के लिए आ टपके । वह कहते हैं न जहाँ गुड़ होगा मक्खी भिनभिनायेंगी। जब दुकान इतनी मशहूर है तो खाने वालों की नजर से कैसे बचती। फ़ूड विभाग वाले आये दिन दुकान पर आ धमकते थे।
"अम्मा जी प्रणाम , हमें भी चाय नाश्ता करवा दो। "
उन्हें देखते की अम्मा जी मन ही मन बुदबुदायी - आ गए मुये भिखारी। जब देखो तब जीभ लपलपा जाती है। लेकिन ऊपर से जबरन मुस्कान चिपका कर पोहा जलेबी की प्लेट के साथ मिठाई का डब्बा भी थमाकर बोली - आज के बाद आए तो देख लूंगी। आँखों में गुस्सा भरा था। लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकी.
अफसर हीरा लाल नीपे खिसोरते , खिसियानी हँसी हँसते , उँगलियों को चाटते हुए बगल वाली दुकान में सरक लिए।
अम्मा जी अपने निडर व तेज स्वाभाव के कारण वहां के मोहल्ले में चर्चित थी। पति के निधन के बाद जब से दुकान संभाली मजाल है कोई बिना पैसे के डकार भी ले। फिर यह फ़ूड विभाग वालों का चक्कर क्या था, समझना जरुरी था। हुआ यो कि --
शुरू शुरू में हीरालाल जब सामान की जाँच करने अपने मातहत कर्मियों के साथ आया। सामान ख़राब होने का सवाल ही नहीं था। अम्मा जी की देख रेख में उम्दा सामान का उपयोग किया जाता था। लेकिन हीरालाल अभी अभी बदली होकर आया था जो खाने - पीने का शौक़ीन था । आदतन बेफिक्री से बोला -
" सामान तो ठीक है , अम्मा जी कुछ मिठाई दे दो , फ़ूड का प्रमाणपत्र कल मिल जायेगा। "
उसके ऐसा कहते ही साथ आया हुआ आदमी तेजी से बाहर निकल गया। वह समझ गया कि आज साहब ने शेर के मुंह में हाथ डाल लिया है। अब चमचो को क्या पड़ी है कि साहब को बचाएं। उन्हें अपनी लंगोट सँभालने की ही फिक्र होती है।
आनंदी ने अंदर मिठाई का डिब्बा पैक करके दिया और पैसे मांगे। तो हीरालाल की आँखें बड़ी हो गयी बोला -
अम्मा जी आप बड़ी भोली है, अभी तो बात हुई; कल फटाफट काम हो जायेगा .... आगे कुछ बोल पाता कि अम्मा माजरा समझ गयी। तेजी से दुकान के बाहर निकल जो गाली गलौज करके चिल्लाना शुरू किया कि हीरालाल की हवाईयां भी उड़ने लगी।
" अरे जा रे हरामी ,पैसे माँगता है , तेरे बाप का माल है क्या। हमरी गलती नहीं है तो किस बात के पैसे। अच्छा सामान है ग्राहक भगवान है व आज गवाह भी है। .... अम्मा जी का रौद्र होता रूप व जमा होती भीड़ देखकर उसने सफाई से बात पलट दी , बच्चों के लिए ले रहा था... चलता हूँ।
जाते जाते खा जाने वाली निगाहों से आनंदी को देखा। मन ही मन में बैर लिए हीरालाल के दिल में बदले की आग भभक रही थी। अब वह मौके की ताक में बैठा था। जल्दी ही मौके की तलाश पूरी हुई। आखिर वह दिन आ ही गया जब कार्य को अंजाम देना था। अम्मा जी अपने बड़े बेटे के साथ १५ दिन तीरथ करने चली गयी। भोले भंडारी को सब समझा कर गयी, शेष अपने भरोसे के कारीगर को बोल गयी सब संभाल ले।
हीरालाल को दुकान पर आया देखकर भोला मुस्कुरा कर बोला - नमस्ते साहब आईये। वह हमेशा देखता आ रहा था कि सामान देखकर नाश्ता करके जाते हैं तो जल्दी से आवभगत कर दी। नाश्ता कराने के बाद गोदाम में ले गया।
और भोला आज अकेले हो ,
हाँ साहब अम्मा कल ही गांव गयी है फिर तीरथ करने जाएगी। कारीगर आज छुट्टी पर है। ..
पर हीरालाल अपनी चौकन्नी निगाहों से सुराख़ ढूंढ रहा था।
वहां एक कोने में शक्कर का बोरा रखा था जिसमे चींटी चल रही थी। उसने जल्दी से अपने साथ आदमियों को समझाया व सब रवाना हो गए। अगले दिन एक आदमी ने आकर रजिस्ट्री दी व भोला के हस्ताक्षर ले लिए। दुकान भोला के नाम पर थी।
दो दिन बाद पुलिस वारंट के साथ हाजिर थी और भोला को पकड़ कर ले गयी। चलो दुकान बंद करो , खराब सामान का उपयोग करके जनता के साथ खिलवाड़ करते हो। लाइसेंस रद्द होता है चलो हवालात में ..!
सब अफरा तफरी थी, इज्जत जा बट्टा लग जायेगा। अम्मा जी को खबर लगी तो उलटे पैर लौट आयी , सारे तीरथ का फल का फल यहीं मिला था। आज बलि का बकरा तैयार था।
" आओ अम्मा जी " - हीरालाल की आवाज में खनक थी।
" यह तो नाइंसाफी है, साहब " - अम्मा जी ने विरोध करना चाहा।
" अम्मा जी आवाज नीचे रखो, हम क्या कर सकतें है , तुम्हारे बेटे ने कागज साइन करके कोर्ट का सम्मन ले लिया था कार्यवाही तो होगी। जिसने लिया है उसी पर होगी। दुकान का मालिक भी है "
अम्मा जी ने सर पीट लिया। सोचा था बेटे के नाम दुकान करके जिम्मेदारी से मुक्त होगी ।पर यह एक बेटे का बाप बन गया पर अकक्ल दो कौड़ी की भी नहीं आयी। मन को शांत रखकर बोली - बाबू कुछ तो तोड़ होगा इस चक्रव्यूह से बाहर आने का। .. "
अब इतने दिनों से समझा रहे थे, पर अब उसकी मुक्ति के सारे रास्ते बंद है। "
ऐसा न कहो बाबू किस बात का बदला ले रहे हो। ..
नहीं अब मामला हमारे हाथ से निकल गया है पुलिस वाले मामला देख रहे है उनसे ही मिलो जाकर..
बेचारी रोती पीटती पुलिस थाने गयी। वहां भोला देखकर रोने लगा - अम्मा देखो जबरजस्ती बंद कर दिया। बेटे को जेल में कैसे रहने देती। मामला कोर्ट तक चला जाता तो बचाना मुश्किल था।
उसने सब बातें वहां के हवलदार को बताई। लेकिन उसने भी हाथ खड़े कर दिए। -
" अम्मा कोर्ट का मामला बन रहा है कल कोर्ट में ले जायेंगे उससे पहले कुछ कर सकती हो तो कर लो "
एक समझदार पुलिस वाला ही ऐसी सलाह दे सकता था कल सुबह तक का समय है। अब अम्मा ने अपनी पहचान निकाली , बड़ा बेटा २-४ गुंडों व पहचान वालो को लेकर थाने में आया। बड़े आदमी व वहां के नेता से थानेदार पर दबाब बनाकर मामला रफा दफा करवाया।
हीरालाल और पुलिसवालों की सांठ सांठ थी , उन्होंने मिलकर योजना बनायीं थी , मामला निपटाने में अम्मा ने खूब पापड़ बेले और किसी तरह भोला को बाहर लेकर आयी। भोला तो बाहर आ गया था लेकिन थानेदार व हीरालाल अम्मा के स्थायी ग्राहक बन गए थे जिन्हें हर महीने मिठाई का डब्बा व नाश्ता पानी करवाना अम्मा की मज़बूरी बन गयी थी। आग उगलने वाली जीभ शक्कर की चाशनी पड़ जाने से काली हो गयी थी। दबी जुबान में यही आशीष झरते थे -
मुये कीड़े पड़ेंगे तेरे मुँह में.... !
शशि पुरवार
आनंदी अपने काम में व्यस्त थी। सुबह सुबह मिठाई की दुकान को साफ़ स्वच्छ करके करीने से सामान सजा रही थी। दुकान में बनते गरमा गरम पोहे जलेबी की खुशबु नथुने में भरकर जिह्वा को ललचा ललचा रही थी। खाने के शौक़ीन ग्राहकों का हुजूम सुबह सुबह उमड़ने लगता था। आनंदी के दुकान की मिठाई व पकवान खूब प्रसिद्ध थे। जितने प्रेम से वह ग्राहक को खिलाकर सम्मान देती थी। उतनी ही कुशलता से वह दुकान का कार्यभार संभालती थी। उतनी ही गजब की निडर व आत्मविश्वासी थी. पति के निधन के बाद अपने मजबूत कंधो पर दुकान की जिम्मेदारी कम उम्र में संभाली थी। वही अपने बच्चों अच्छे से पाल रही थी। अच्छे उतने ही सरल या कहे भोले भंडारी थे। अासपास के लोग उन्हे स्नेह व सम्मान से अम्मा जी कहकर बुलाते थे. उम्र ढलने लगी थी पर चेहरे का नूर कम नहीं हुआ था। बेटे के साथ आज भी दुकान पर बैठना उसकी आदत थी।
खैर आज दुकान पर भीड़ कुछ ज्यादा ही थी कि फूड विभाग वाले जाँच के लिए आ टपके । वह कहते हैं न जहाँ गुड़ होगा मक्खी भिनभिनायेंगी। जब दुकान इतनी मशहूर है तो खाने वालों की नजर से कैसे बचती। फ़ूड विभाग वाले आये दिन दुकान पर आ धमकते थे।
"अम्मा जी प्रणाम , हमें भी चाय नाश्ता करवा दो। "
उन्हें देखते की अम्मा जी मन ही मन बुदबुदायी - आ गए मुये भिखारी। जब देखो तब जीभ लपलपा जाती है। लेकिन ऊपर से जबरन मुस्कान चिपका कर पोहा जलेबी की प्लेट के साथ मिठाई का डब्बा भी थमाकर बोली - आज के बाद आए तो देख लूंगी। आँखों में गुस्सा भरा था। लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकी.
अफसर हीरा लाल नीपे खिसोरते , खिसियानी हँसी हँसते , उँगलियों को चाटते हुए बगल वाली दुकान में सरक लिए।
अम्मा जी अपने निडर व तेज स्वाभाव के कारण वहां के मोहल्ले में चर्चित थी। पति के निधन के बाद जब से दुकान संभाली मजाल है कोई बिना पैसे के डकार भी ले। फिर यह फ़ूड विभाग वालों का चक्कर क्या था, समझना जरुरी था। हुआ यो कि --
शुरू शुरू में हीरालाल जब सामान की जाँच करने अपने मातहत कर्मियों के साथ आया। सामान ख़राब होने का सवाल ही नहीं था। अम्मा जी की देख रेख में उम्दा सामान का उपयोग किया जाता था। लेकिन हीरालाल अभी अभी बदली होकर आया था जो खाने - पीने का शौक़ीन था । आदतन बेफिक्री से बोला -
" सामान तो ठीक है , अम्मा जी कुछ मिठाई दे दो , फ़ूड का प्रमाणपत्र कल मिल जायेगा। "
उसके ऐसा कहते ही साथ आया हुआ आदमी तेजी से बाहर निकल गया। वह समझ गया कि आज साहब ने शेर के मुंह में हाथ डाल लिया है। अब चमचो को क्या पड़ी है कि साहब को बचाएं। उन्हें अपनी लंगोट सँभालने की ही फिक्र होती है।
आनंदी ने अंदर मिठाई का डिब्बा पैक करके दिया और पैसे मांगे। तो हीरालाल की आँखें बड़ी हो गयी बोला -
अम्मा जी आप बड़ी भोली है, अभी तो बात हुई; कल फटाफट काम हो जायेगा .... आगे कुछ बोल पाता कि अम्मा माजरा समझ गयी। तेजी से दुकान के बाहर निकल जो गाली गलौज करके चिल्लाना शुरू किया कि हीरालाल की हवाईयां भी उड़ने लगी।
" अरे जा रे हरामी ,पैसे माँगता है , तेरे बाप का माल है क्या। हमरी गलती नहीं है तो किस बात के पैसे। अच्छा सामान है ग्राहक भगवान है व आज गवाह भी है। .... अम्मा जी का रौद्र होता रूप व जमा होती भीड़ देखकर उसने सफाई से बात पलट दी , बच्चों के लिए ले रहा था... चलता हूँ।
जाते जाते खा जाने वाली निगाहों से आनंदी को देखा। मन ही मन में बैर लिए हीरालाल के दिल में बदले की आग भभक रही थी। अब वह मौके की ताक में बैठा था। जल्दी ही मौके की तलाश पूरी हुई। आखिर वह दिन आ ही गया जब कार्य को अंजाम देना था। अम्मा जी अपने बड़े बेटे के साथ १५ दिन तीरथ करने चली गयी। भोले भंडारी को सब समझा कर गयी, शेष अपने भरोसे के कारीगर को बोल गयी सब संभाल ले।
हीरालाल को दुकान पर आया देखकर भोला मुस्कुरा कर बोला - नमस्ते साहब आईये। वह हमेशा देखता आ रहा था कि सामान देखकर नाश्ता करके जाते हैं तो जल्दी से आवभगत कर दी। नाश्ता कराने के बाद गोदाम में ले गया।
और भोला आज अकेले हो ,
हाँ साहब अम्मा कल ही गांव गयी है फिर तीरथ करने जाएगी। कारीगर आज छुट्टी पर है। ..
पर हीरालाल अपनी चौकन्नी निगाहों से सुराख़ ढूंढ रहा था।
वहां एक कोने में शक्कर का बोरा रखा था जिसमे चींटी चल रही थी। उसने जल्दी से अपने साथ आदमियों को समझाया व सब रवाना हो गए। अगले दिन एक आदमी ने आकर रजिस्ट्री दी व भोला के हस्ताक्षर ले लिए। दुकान भोला के नाम पर थी।
दो दिन बाद पुलिस वारंट के साथ हाजिर थी और भोला को पकड़ कर ले गयी। चलो दुकान बंद करो , खराब सामान का उपयोग करके जनता के साथ खिलवाड़ करते हो। लाइसेंस रद्द होता है चलो हवालात में ..!
सब अफरा तफरी थी, इज्जत जा बट्टा लग जायेगा। अम्मा जी को खबर लगी तो उलटे पैर लौट आयी , सारे तीरथ का फल का फल यहीं मिला था। आज बलि का बकरा तैयार था।
" आओ अम्मा जी " - हीरालाल की आवाज में खनक थी।
" यह तो नाइंसाफी है, साहब " - अम्मा जी ने विरोध करना चाहा।
" अम्मा जी आवाज नीचे रखो, हम क्या कर सकतें है , तुम्हारे बेटे ने कागज साइन करके कोर्ट का सम्मन ले लिया था कार्यवाही तो होगी। जिसने लिया है उसी पर होगी। दुकान का मालिक भी है "
अम्मा जी ने सर पीट लिया। सोचा था बेटे के नाम दुकान करके जिम्मेदारी से मुक्त होगी ।पर यह एक बेटे का बाप बन गया पर अकक्ल दो कौड़ी की भी नहीं आयी। मन को शांत रखकर बोली - बाबू कुछ तो तोड़ होगा इस चक्रव्यूह से बाहर आने का। .. "
अब इतने दिनों से समझा रहे थे, पर अब उसकी मुक्ति के सारे रास्ते बंद है। "
ऐसा न कहो बाबू किस बात का बदला ले रहे हो। ..
नहीं अब मामला हमारे हाथ से निकल गया है पुलिस वाले मामला देख रहे है उनसे ही मिलो जाकर..
बेचारी रोती पीटती पुलिस थाने गयी। वहां भोला देखकर रोने लगा - अम्मा देखो जबरजस्ती बंद कर दिया। बेटे को जेल में कैसे रहने देती। मामला कोर्ट तक चला जाता तो बचाना मुश्किल था।
उसने सब बातें वहां के हवलदार को बताई। लेकिन उसने भी हाथ खड़े कर दिए। -
" अम्मा कोर्ट का मामला बन रहा है कल कोर्ट में ले जायेंगे उससे पहले कुछ कर सकती हो तो कर लो "
एक समझदार पुलिस वाला ही ऐसी सलाह दे सकता था कल सुबह तक का समय है। अब अम्मा ने अपनी पहचान निकाली , बड़ा बेटा २-४ गुंडों व पहचान वालो को लेकर थाने में आया। बड़े आदमी व वहां के नेता से थानेदार पर दबाब बनाकर मामला रफा दफा करवाया।
हीरालाल और पुलिसवालों की सांठ सांठ थी , उन्होंने मिलकर योजना बनायीं थी , मामला निपटाने में अम्मा ने खूब पापड़ बेले और किसी तरह भोला को बाहर लेकर आयी। भोला तो बाहर आ गया था लेकिन थानेदार व हीरालाल अम्मा के स्थायी ग्राहक बन गए थे जिन्हें हर महीने मिठाई का डब्बा व नाश्ता पानी करवाना अम्मा की मज़बूरी बन गयी थी। आग उगलने वाली जीभ शक्कर की चाशनी पड़ जाने से काली हो गयी थी। दबी जुबान में यही आशीष झरते थे -
मुये कीड़े पड़ेंगे तेरे मुँह में.... !
शशि पुरवार
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 4.7.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3386 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
भ्रष्टाचार की पोल खोलती है कहानी। हर क्षेत्र में ये कीड़ा लगा हुआ है।
ReplyDeleteआप सभी का हार्दिक धन्यवाद मित्रों
ReplyDelete