१
नज्म के बहाने
याद
की सिमटी हुई यह गठरियाँ
खोल
कर हम दिवाने हो गए
रूह
भटकी कफ़िलों में इस तरह
नज्म
गाने के बहाने हो गए।
बंद
पलकों में छुपाया अश्क को
सुर्ख
अधरों पर थिरकती चांदनी
प्रीत
ने भीगी दुशाला ओढ़कर
फिर
जलाई बंद हिय में अल गनी
इश्क
के ठहरे उजाले पाश में
धार
से झंकृत तराने हो गए
रूह
भटकी कफ़िलों में इस तरह
नज्म
गाने के बहाने हो गए।
गंध
साँसों में महकती रात दिन
विगत
में डूबा हुआ है मन मही
जुगनुओं
सी टिमटिमाती रात में
लिख
रहा मन बात दिल की अनकही
गीत
गा दिल ने पुकारा आज फिर
जिंदगी
के दिन सुहाने हो गए
रूह
भटकी कफ़िलों में इस तरह
नज्म
गाने के बहाने हो गए।
भाव
कण लिपटे नशीली रात में
मौन
मुखरित हो गई संवेदना
इत्र
छिड़का आज सूखे फूल पर
फिर
गुलाबों सी दहकती व्यंजना
डायरी
के शब्द महके इस कदर
सोम
रस सब मय पुराने हो गए
रूह
भटकी कफ़िलों में इस तरह
नज्म
गाने के बहाने हो गए।
याद
की सिमटी हुई यह गठरियाँ
खोल
कर हम दिवाने हो गए। ..!
--
शशि
पुरवार
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-11-2019 ) को "नौनिहाल कहाँ खो रहे हैं" (चर्चा अंक- 3520) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
-अनीता लागुरी 'अनु'
सुन्दर रचना
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