चला
बटोही कौन दिशा में
पथ
है यह अनजाना
जीवन
है दो दिन का मेला
कुछ
खोना कुछ पाना
तारीखों
पर लिखा गया है
कर्मों
का सब लेखा
पैरों
के छालों को रिसते
कब
किसने देखा
भूल
भुलैया की नगरी में
डूब गया मस्ताना
डूब गया मस्ताना
जीवन
है दो दिन का मेला
कुछ
खोना कुछ पाना
मृगतृष्णा
के गहरे बादल
हर पथ पर छितराए
हर पथ पर छितराए
संयम
का पानी ही मन की
रीती
प्यास बुझाए
प्रतिबंधो
के तट पर गाअो
खुशहाली
का गाना
जीवन
है दो दिन का मेला
कुछ
खोना कुछ पाना
सपनों
का विस्तार हुआ,
तब
बाँधो
मन में आशा
पतझर
का मौसम भी लिखता
किरणों
की परिभाषा
भाव
उंमगों के सागर में
गोते खूब लगाना
गोते खूब लगाना
जीवन
है दो दिन का मेला
कुछ
खोना कुछ पाना
शशि
पुरवार
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (29-11-2019 ) को "छत्रप आये पास" (चर्चा अंक 3534) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
-अनीता लागुरी 'अनु'
"जीवन है दो दिन का मेला कुछ खोना कुछ पाना"
ReplyDeleteबहुत खूब
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन आदरणीया
ReplyDeleteसादर
बहुत सरस सुंदर काव्यात्मक सृजन।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबेहतरीन ख्यालों को समेटे खूबसूरत रचना।
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