रिक्शे पर बैठकर हम मोबाइल पर बतियातें रहतें हैं और बेचारा रिक्शे वाला हाँफता हुआ पसीना पोंछता हुआ सवारियों को खीचता रहता है। हम अकड़ते हुये निर्लज्ज बैठे रहतें हैं।
मई महीने हम मजदूर दिवस मनाते थे और इसी महीने हम सबने मजदूरों की दुर्दशा होते हुए देखी है , लाक डाउन में मजदूरों की बेबसी सैलाब बनकर उमड़ी है। भूख लाचारी और तन की थकान दुर्घटना में जीवन लील रही है. पाँव में छाले पड़े हैं , बेबसी तड़प रही है और आँखें सूख रही है। हाल ही में मजदूरों की दर्दनाक मौत के हादसे कई प्रश्न उठा रहें है
आह पर भले ही वाह भारी पड़ गया और मौत ने, न केवल जिंदगी को दिन – दहाड़े, हजारो – लाखों लोगों के बीच शिकस्त दे दी। क्यों हथेली पर सरसों उगाने भर की भी जमीन उसे मयस्सर नहीं होती। खेतिहर, मजदूर की तरह खेतों में खटता रहता है। यही नहीं गगनचुम्बी अट्टालिकाओं को बनाने में जिंदगी खपा देने के बाद भी उसे अपने छोटे से परिवार के लिए छत तक नसीब नहीं होती।
घर से घाट तक और घाट से लेकर लादी धोने वाले सीधे –साधे पशु “ गर्दन “ के समान वह भी गोदाम से दुकान और दुकान से गोदाम तक माल ढोता – ढोता थक कर चूर हो जाता है। फिर भी कदम – कदम पर उसका खाना – पीना, दर किनार कर खिड़की ही नसीब होती है .
घर से घाट तक और घाट से लेकर लादी धोने वाले सीधे –साधे पशु “ गर्दन “ के समान वह भी गोदाम से दुकान और दुकान से गोदाम तक माल ढोता – ढोता थक कर चूर हो जाता है। फिर भी कदम – कदम पर उसका खाना – पीना, दर किनार कर खिड़की ही नसीब होती है .
यह महामारी और लॉक डाउन मजदूरों के लिए आफत लेकर आया है. हर तरफ अफरा–तफरी मची हुई है . खाने के लिए भोजन नहीं और रहने के लिए घर नहीं है . सड़क पर बेहाल मजदूर परिवार, अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ थके हुए कदमों से गांव लौट रहे हैं . मीलो लंबा रास्ता, सुनसान सडक, मंजिल दूर है, उस पर हो रही दुर्घटनाएं मौत का पैगाम लिख रही है. लाखों की संख्या में मजदूरों का पलायन उनकी दुर्दशा हमारे समाज की पोल खोल रहा है . कहीं–कहीं ऐसी हालत में मकान मालिक किराया भी मांग रहे हैं ? जिसके पास तन ढकने के लिए कपड़ा नहीं पेट की आग बुझाने के लिए दो निवाला नहीं है, वह वापस नहीं लौटेगा तो और क्या करेगा ?
मजदूरों का अगर वर्गीकरण किया जाये तो कलम थक जाएगी। ईंट – भट्टा मजदूर फेफड़े गंवाकर रोजी कमाने में लगे हैँ। लाखों चूड़ी मजदूर, लोहा पीट – पीट कर उसे कलात्मक रूप देने वाले, गाड़ियाँ – लोहार से लेकर जिंदगी चलाने के लिए हम कदम – कदम पर मजदूरों का इस्तेमाल करतें हैं। लेकिन उन्हें पेट भर खाना नसीब हो इसके लिए कभी नहीं सोचतें हैं और सरकारी योजनायें बनती भी है तो पंजीकरण के नाम पर, दफ्तर में ही कैद हो जातीं है।
नगर के हर बड़े चौराहे पर रोज मजदूरों का हुजूम लगता है। जहाँ आदमी रोज अपने को बेचता है। हमें तनिक भी लज्जा नहीं आती, जब आदमी– आदमी का वजन उठाता है। रिक्शे पर बैठकर हम मोबाइल पर बतियातें रहतें हैं और बेचारा रिक्शे वाला हाँफता हुआ पसीना पोंछता हुआ सवारियों को खीचता रहता है। हम अकड़ते हुये निर्लज्ज बैठे रहतें हैं। हम कब इस न्याय – अन्याय को परखने वाले तराजू के पसंगा बनकर अपनी लोक लुभावन भूमिका निभाते रहेंगे ?
समाज और देश के निर्माण में मजदूरों का महत्वपूर्ण योगदान होता है . समाज, देश व संस्था उद्योग में काम करने वाले मजदूर श्रमिक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है . लेकिन अब समय बदल गया है, इस महामारी ने हमें आत्मनिर्भरता का पाठ पढाया है.
हमारी हर कोशिश हमारे साथ – साथ समाज को भी उन्नत करेगी . लाक डाउन धीरे धीरे हटेगा. हमें जीवन को फिर से पटरी पर लाना है लेकिन जीवन को सुरक्षित भी रखना होगा
कोरोना संकट के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है. महामारी के संकट में सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योग, श्रमिक मजदूर, व किसान सभी आत्मनिर्भर बनेंगे और यह पैकेज उन सभी के लिए लाभदायक होगा. यह निश्चित तौर पर महामारी से जूझ रहे इस आर्थिक संकट में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा . सूक्ष्म लघु उद्योग मध्यम उद्योग श्रमिक मजदूर किसान को आत्मनिर्भर बनाने में लाभदायक सिद्ध होगा . इस योगदान का सबसे बड़ा लाभ, देश की अर्थव्यवस्था को भी संबल मिलेगा. लेकिन मन में संशय उपज रहा है कि क्या इस योजना का पूर्ण लाभ उन हाथों तक पहुंचेगा?
आत्मनिर्भर भारत का मंत्र हमें याद रखना होगा . आत्मनिर्भर भारत का सीधा सीधा अर्थ है कि विदेशी तजो और देशी अपनाअो. आज संकट की इस घड़ी में हम लोकल चीजें के भरोसे ही लाक डाउन काट रहे है. लोगों का रुझान लोकल के प्रति हुआ है और होना भी चाहिए. आखिर कब तक हम ब्रांड के पीछे भागेंगे. भारत में कारीगरों की कमी नहीं है जो उत्तम सामान कम लागत में तैयार करते हैं. हमारे लोकल का सामान भी ब्रांडेड बन सकते हैं . मैंने कई शहरों व गांवों में प्रवास किया है वहां की लोकल वस्तुओं को भी आजमाया है और उनकी क्वालिटी और गुणवत्ता में कोई कमी नहीं थी.
हमें आत्मनिर्भर बनना होगा, इससे रोजगार के साधन भी उपलब्ध होंगे. बेरोजगारी कम होगी. संसाधन उपलब्ध होनें तो रोजगार के लिए विदेश जाने की जरूरत महसूस नहीं होगी . देश में रोजगार के साधन उत्पन्न होंगे और अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा संबल मिलेगा. हमारी हर कोशिश हमारे साथ – साथ समाज को भी उन्नत करेगी . लाक डाउन धीरे धीरे हटेगा. हमें जीवन को फिर से पटरी पर लाना है लेकिन जीवन को सुरक्षित भी रखना होगा. सकारात्मक पहल द्वारा ही जीवन को पटरी पर लाने में हम सभी सफल होगें
शशि पुरवार
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.5.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3708 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
वर्तमान का सुन्दर तिन्तन।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसटीक लेख
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