Tuesday, June 9, 2020

बेटियां अनमोल हैं

 
   
   ब्रम्हा जी की  स्रष्टि की सबसे अनुपम कृति है बेटियाँ .  ब्रम्हा जी ने संसार की उत्पत्ति के समय देवी रुपी कन्या की कृति बहुत मनोयोग से बनायीं और उसे सर्वगुण संपन्न   का वरदान देकर पृथ्वी पर  अवतरित किया।  नर और नारी दोनों ही संसार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है परन्तु कन्या  इस संसार को नवजीवन  प्रदान करती  है , जिस कार्य   को पुरुष अकेला नहीं कर सकता वह कार्य    नारी  द्वारा ही संभव है .. एक बेटी के रूप में जन्मी परी को उस  देवी के समान माना गया है जो सिर्फ खुशियाँ ही बाँटती  है , परन्तु आज उस देवी रुपी कन्या का अस्तित्व ही खतरे में है , आज मानव रुपी दानव उन्हें जड़ से उखाड़ फेकने  पर आमादा है . 

    इतिहास गवाह है कि  बेटियों ने भी बेटो की तरह  अपने  परिवार ,समाज और वतन में  अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।  घर और बाहर की दुनिया में वे पूरी निष्ठां के साथ अपने कार्य को अंजाम देती हुई ही नजर  आतीं हैं .अनगिनत नाम है जिन्होंने देश और समाज में  द्वारा सुनहरे अक्षरों में अपना नाम अंकित किया . रानी लक्ष्मी बाई . झलकारी बाई , अहिल्या बाई  होलकर ,सावित्री फुले , इंदिरा गाँधी , कल्पना चावला  ........वगैरह  अनेक नाम ऐसे है जो वतन का नाम रोशन कर गए . 

                       आज भी हर क्षेत्र में बेटियों  अएक विशिष्ट स्थान बनाया है ,चाहे वह खेल हो . राजीनीति , व्यापार बिजनिस ,चित्रपटल , पत्रकारिता ,या देश का सर्वोच्च शिखर  हर जगह बेटियों ने अपने कार्य से पताका फहरा रखा है .परन्तु  आज भी दोहरा मापदंड समाज में कायम है  और यह पाखंडी समाज अपनी ही जननी को जड़ से उखाड़  फेकने पर आमादा है ,  बेटी को पराई कहने वालो ने ह्रदय से बेटी को कभी नहीं स्वीकारा . बेटी का शोषण तो परिवार से ही शुरू हो जाता है , शादी के पहले भी बेटी पराई  अमानत ही मानी जाती  है और शादी के बाद भी पराई ही कहलाती है .
                   वक़्त  बदल गया है परन्तु  फिर भी स्थिति  बेहद चिंताजनक है क्यूंकि  आज बेटियों की  संख्या में कमी पाई गयी है  . बेटियों की  हत्या कोख  में ही कर दी जाती है . यह  गलत परंपरा सिर्फ अशिक्षित , निम्न ,और मध्यमवर्गी वर्ग ही नहीं अपितु शिक्षित व उच्चवर्गीय वर्ग भी उसी  गलत परंपरा की अर्थी को कन्धा दे रहा है .

          इस घ्रणित  कार्य का खुलासा तब हुआ जब  भारत की जनगणना में आंकड़े सामने आये देश के सम्रद्ध राज्यों  में यह प्रवृति  अधिक देखने को मिली . देश की जनगणना के अनुसार 2001 एक में 1000 बालको में बेटियों की संख्या पंजाब में 789 , हरियाणा में 819 और गुजरात में 883 पाई गयी थी . जो चौकाने वाले आंकड़े थे , 2012 तक कहीं कहीं स्थिति में थोडा सा सुधार  हुआ , परन्तु आज भी संकट कायम है बेटियों पर .हम अक्सर समाचार पत्रों में पढ़ते रहते है भ्रूण हत्या के मामले के बारे में  .     

             मानव यह क्यूँ भूल जाता है कि  उसे जन्म देने वाली भी एक स्त्री ही होती है जिस कोख से वे जन्म लेते है आज उसी के अस्तित्व को नकार रहे है .परन्तु यह खेद जनक है कि  जिस कोख से देव जन्मे आज  उसे ही कोख में मार दिया जाता है  .  सिर्फ बेटो को जन्म देने से कुछ नहीं होगा ,नहीं तो एक वक़्त ऐसा आएगा की बेटियों की कम जन्मदर  , भविष्य में एक नया ही चित्रपटल बनाएगी , आज शादी के लिए लोग लड़का ढूंढते है परन्तु  वह वक़्त दूर नहीं होगा  ,जब  चिराग लेकर बेटियाँ ढूंढेंगे .हर तरफ सिर्फ बेटे ही बेटे होंगे तो सोचिये कैसा स्वरुप होगा समाज का ...........!

         सिर्फ साउथ में ही हमें स्त्रिया  ज्यादा देखने को मिलती है और वहां संपत्ति की वारिस सिर्फ लडकियां ही होती है , इसीलिए वहां बेटियों का ज्यादा महत्व ज  है . पश्चिमी सभ्यता में नारी और पुरुष को समान  अधिकार प्राप्त है .नारी को पूरा मान सम्मान प्रदान किया जाता है .

  बेटियाँ बहुत अनमोल है उनकी रक्षा कीजिये, नहीं तो हमेशा के लिए सिर्फ यादों में रह जाएँगी बेटियाँ . जहाँ कहीं भी यह घ्रणित  कार्य होते हुए देखें तो कानून का सहारा जरूर लीजिये और जिंदगी की रक्षा कीजिये .
    कानूनी कानूनी अधिकार    क़ानून में नारी अधिकारों के लिए कुछ नियम बने है जिन्हें हर नारी को जानना जरूरी है .
  - अपने अधिकारों का उपयोग करना चाहिए , अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है यदि आप अन्याय सहते है तो आप भी उतने ही गुनाहगार होते है .
---  यदि कोई भी परिवार में नारी पर जुल्म करता है तो घरेलु हिंसा के तहत सजा का प्रावधान है  .
 घरेलु  हिंसा के तहत  माता -पिता और ससुराल वाले  दोनों को ही क़ानून में समान माना गया है .
---- खानदानी सम्पति में भी नारी का अधिकार सामान रूप से है .
--- अत्याचार करने  या घर से प्रताड़ित किये जाने पर भी सजा का प्रावधान है .
------ मानसिक एवं शारीरिक दोनों रूप से प्रताड़ित किये जाने पर भी संविधान में सजा का प्रावधान है .
-------- विधवा , अविवाहित , तलाकशुदा के लिए अभिरक्षा व भरणपोषण का अधिकार है .
--- छेड़छाड़ के विरुद्ध भी सजा है और जुर्माना भी .
----दहेजप्रथा के खिलाफ भी सजा का प्रावधान है
--- कानून में बहुत से नियम ऐसे है जो नारी की हर छोटी छोटी समस्याओं को दूर कर , उसका अधिकार उसे दिलाते है , तो नारी को अपने सभी मौलिक अधिकारों के मामले में सजग रहना चाहिए .
---हिंसा की  शिकार हुई  नारी अपने साथ हुए अन्याय के  लिए कानून की मदद ले सकती है .
----  आज क़ानून में  भ्रूण हत्या के लिए भी  सजा का प्रावधान है .
------ लिंग भेद करने पर डाक्टर का सर्टिफिकेट रद्द किया जा  सकता  है
-------  लिंग भेद कानूनन अपराध  है .
---- यदि कोई स्त्री गर्भ धारण के बाद अपने बच्चे को किसी भी प्रकार से हानि पहुचाती है तो वह भी गुनाहगार है और सजा की हकदार .
----- किसी भी प्रकार की बेटियों पर यदि जुल्म होता है तो सभी को सजा दी जाती है .
----- आनैतिक , और अस्मिता से खिलवाड़ करने वालो के लिए कानून में जुर्माना और सजा का प्रावधान है
     आजकल  फास्ट ट्रेक , फॅमिली , क्रिमिनल कोर्ट  सभी जगह इन मामलो को जल्दी से सुलझाया जाता है .लोक अदालत में भी कई मामले जल्दी से निपटाए जाते है  तो इसका सहारा जरूर लेना चाहिए , यह अधिकार है नारी का .

              नारी एवं पुरुष दोनों ही सृष्टि के अहम् किरदार है , दोनों  एक दूसरे के पूरक है . दोनों को आपसी तालमेल और समझदारी की आवश्यकता है , जो सारी समस्याओं को जड़ से दूर कर देगा   .
कोर्ट में इन मामलो  की अलग से सुनवाई होती है . बेटियों के प्रति नजरिये को बदलना बहुत आवश्यक है .
 ----------- शशि  पुरवार


2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11.6.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3729 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए अनमोल है। हमें अपने विचारों से अवगत कराएं। सविनय निवेदन है --शशि पुरवार

आपके ब्लॉग तक आने के लिए कृपया अपने ब्लॉग का लिंक भी साथ में पोस्ट करें
.



समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

https://sapne-shashi.blogspot.com/

linkwith

http://sapne-shashi.blogspot.com