shashi purwar writer

Sunday, July 5, 2020

कोरोना काल के दोहे -2

बदला बदला वक्त है, बदले हैं प्रतिमान 
संकट में जन आज है, कल का नहीं ठिकान

खोलो मन की खिड़कियां, उसमे भरो उजास 
धूप ठुमकती सी लिखे, मत हो हवा उदास 

जाती धर्म को भूल जा, मत कर यहाँ विमर्श 
मानवता का धर्म है, अपना भारत वर्ष 

शहरों से जाने लगे, बेबस बोझिल पाँव 
पगडण्डी चुभती रही, लौटे अपने गाँव 

काँटे चुभते पांव में,बोया पेड़ बबूल 
मिली न सुख की छाँव फिर, केवल चुभते शूल 

राहों में मिलते रहे, अभिलाषा के वृक्ष 
डाली से कटकर मिला, अवसादों का कक्ष 

जब तक साँसें हैं सधी, करों न मन का हास
तूफां आते हैं सदा, होते सकल प्रयास 

शशि पुरवार 

3 comments:

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