कांच से भी ज्यादा ,
कोमल होते है ये रिश्ते.
धोखे से लगे एक कंकड़ से भी
चटक कर उभर आते है निशान .
रिश्ता कोई भी हो ,
अलग - अलग है उसके नाम .
हर रिश्ते में होती है एक ,
गरिमा और उसकी पहचान .
प्यार से गर सीचो तो
खिलते है फूल .
कांटे गर बोये तो
रास्ते हो जायेंगे दूर .
बंद मुट्ठी जहाँ होती है
एकता की पहचान .
खुले हाथ छोड़ जाते है
सिर्फ पंजो के निशान.
रिश्तो की रस्सा - कस्सी में
जहाँ चटक जाती है दीवारे ,
वही ढह जाता है मकान .
नाजुकता के कांच से बने
इन रिश्तो को
जरा प्यार से संभालो , नहीं तो
चारो तरफ सिर्फ ,