फेक का अंग्रेजी अर्थ है धोखा व फेस याने चेहरा, दुनिया में आभाषी दुनिया का चमकता यह चेहरा एक मृगतृष्णा के समान है जो आज सभी को प्यारा मोहित कर चुका है. नित्य समाचार की तरह सुपरफास्ट खबरे यहाँ मिलती रहती है.कहीं हँसी के ठहाके, कहीं आत्ममुग्ध तस्वीरें, कहीं प्रेम, कहीं शब्दों की बंदूकें. बड़े पन का एहसास, जैसे आज दुनियाँ हमारे पास है,जैसे दुनियाँ बस एक मुट्ठी में समां गयी है.
होली का त्यौहार भी बहुत रंगीन होने लगा है फेसबुक ने हमारी दुनिया में ऐसा कदम रखा है कि भूत भविष्य व वर्तमान साथ चलने लगे हैं, जी हाँ आप इस वर्ष होली खेलेंगे किन्तु पुरानी यादों के साथ, फेसबुक आपकी पुरानी यादें आपको पग पग पग पर तस्वीर या वीडियो बनाकर तोहफे में देता है, लो भाई हो गयी होली रंगीन।इसके रंग भी उतने ही खूबसूरत हैं. जहाँ महकती यादें गुदगुदाती हैं वहीँ बेरंगी यादें जिन्हें हम याद करना भी नहीं चाहतें है, वह आभाषी दुनिया हमें भूलने नहीं देती है.
जी हाँ, जनाब हमें शर्मा जी को देखकर तरस खाने को जी चाहता है।हमारे शर्मा जी फेसबुक पर जवान होकर नयन मटक्का कर रहे थे और होली के दिन यही मटक्का उन पर भारी पड़ गया, आदतन फेसबुक ने अपने जोहर दिखाए और सारी बातचीत रिश्तें अचानक बिन मौसम बरसात की तरह होली के दिन सबके समक्ष हाजिर होकर अपना रंग बरसा रहे थे। उनकी बीबी को काटो तो खून नहीं वाले हालात थे, बमुश्किल गृहस्थी की नैया संभली, तिस पर फिर होली के दिन फेसबुक फिर यही तोहफा देने पर आमादा है, होली के दिन भांग का अपना महत्व है लेकिन अब सोशल मीडिया की भांग का नशा सबके सर पर चढ़ कर बोलने लगा है।जहाँ एक तरफ रंगीन दुनियां है वहीँ उसके ऐसे रंग जो कभी मिटाये नहीं मिटेंगे। शायद हम मिट जाये, पर यह रंग अमर हो जायेंगे और इन रंगों में डूबे हुए आसमान से खुद को देखेंगे। हम वर्ष में एक दिन होली खेलते हैं, फेसबुक हर दिन, हर पल, नैनों से, शब्दों - बातों की, सुलगती पींगों से होली खेलता है. कहीं दिल सुलगते हैं कहीं घर जलते हैं, लेकिन होली के रंग जीवन में यूँ ही मुस्कुरातें गुदगुदाते बरसते हैं। होली में छेड़खानी न हो, शर्म से पानी- पानी ना हो तो होली कैसी।सोशल मीडिया में तस्वीरें पोस्ट करने के लिए लोग होली न खेलें किन्तु रंग लगाकर अपनी तस्वीरें जरूर पोस्ट करेंगे, सत्य कौन देखता है आज तस्वीरें बोलती है. छाया चित्रों का जमाना है तो छाया वादी होली हो क्यों संभव नहीं।
आज सुबह से श्रीमती जी हमें भी अपने शब्द वाणों से रंग लगा रही थी, हमारे नैना सोशल मीडिया से चार होने के लिए बेताब थे. दिल की हसरतें बाहर बरसना चाहती थी किन्तु घर का रंग, बदरंग न हो जाये हमने चुप चाप गुलाबी रंग लगाकर घर का माहौल भी गुलाबी करने का मन बना लिया। आखिर जाएँ भी तो कहाँ जाएँ ? चाय पकोड़े का नशा उतरने को तैयार नहीं था, हमने हाथों में मोबाइल से नैना चार करके गुपचुप अपनी होली को अंजाम दे दिया। क्या करें और किसी को छेड़ना मना है।
आज किसी व्यंग्यकार को रंग लगाना जैसे आ बैल मुझे मार वाली बात करना है , बैल तो फिर भी मार कर जख्मी करेंगे जिसका इलाज कोई वैध कर देगा, घाव भर जायेगा लेकिन व्यंगकार के रंग इतने पक्के होते है कि उनके गुब्बारे की मार के निशान कई वर्षो तक देख सकतें है. रंग भी ऐसा कि साबुन की टिकिया ख़त्म हो जाएगी पर रंग न निकलेगा, पक्का रंग उन्ही की झोली में छुपा होता है. कहतें हैं न हींग लगी न फिटकरी फिर भी रंग चोखा चोखा। मिठाई भी इतनी चोखी रखें कि खाये बिन मजा न आये, हसगुल्ले हभी ऐसे खिलावें कि न निगलते बने न खाते बने. इनके रंग तीर के ऐसे लगे होते हैं कि लगते ही पूरे शरीर को रंग देते हैं। एक तीर छोड़ा तो रंगने वाला खुद आकर पानी में डुबकी लगा लेता है। हाय ऐसे रंग सीधे दिल से निकालकर दिल को भेद रहे थे। होली है तो बिना गुझिया के काम चलेगा, आज सोच रहें है बाजार से गुझिया खरीद लें , और गत वर्ष कुल्फी खायी थी वही जाकर खा लेंगे, उसका नशा कुछ अलग ही होता है
होली की रंग भरी मस्ती भरी शुभकामनाएँ - शशि पुरवार