*जोगिनी गंध*
*पुस्तक समीक्षा/ डॉ. शैलेंद्र दुबे*
*कवयित्री के शब्दों में संवेदनाएं जोगन ही तो हैं जो नित नए भावों के द्वार विचरण करती हैं. भावों के सुंदर फूलों की गंध में दीवानगी होती है, जो मदहोश करके मन को सुगंधित कर देती है. साहित्य के अतल सागर में अनगिनत मोती हैं, उसकी गहराई में जाने पर हाथ कभी खाली नहीं रहते.*
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*मन को मोहित करती संवेदनाओं की जोगिनी गंध*
मनुष्य प्रकृति की अद्भुत रचना है. सरस अभिव्यक्ति की क्षमता तथा गुण ने उसे इस काबिल बनाया है कि वह स्वयं रचनाकार के रूप में समाज को श्रेष्ठ विचार एवं भाव दे सके. कल्पना और अभिव्यक्ति के मिलन से निर्मित साहित्य के क्षितिज पर विवेकी रचनाकार के उकेरे गए इंद्रधनुषी चित्र मानव मन को मानवीय सरोकार, संवेदना तथा अनुभूतियों के रंग में रंग देते हैं. कलम से कागज पर बनाए गए शब्दों के ताजमहल भाव, कल्पना तथा विचार के रूप में सदा के लिए मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं. हिंदी साहित्य संसार में अपना विशिष्ट स्थान बनाने वाली ख्यातनाम कवयित्री श्रीमती शशि पुरवार का हाइकु संग्रह ‘जोगिनी गंध’ भी कोमल भावों के साथ सारगर्भित संदेश के रूप में न केवल मानस पटल पर अंकित होता है बल्कि सकारात्क प्रेरणा का संवाहक भी है.
हाइकु जापान की लोकप्रिय मुक्तक काव्य विधा है. हाइकु में गुंफित प्रत्येक पुष्प 5-7-5 शब्द क्रम की तीन पंक्तियों में बसी प्रेरणा एवं ऊर्जा से पल्लवित होता है. गागर में सागर की तर्ज पर उभरी इस विधा में शशि जी को महारथ हासिल है. यह काव्य संग्रह जोगिनी गंध, प्रकृति, जीवन के रंग, विविधा तथा हाइकु गीत रूपी पांच सर्ग में विभक्त है. पहले सर्ग जोगिनी गंध में कवयित्री ने प्रेम, मन, पीर, यादों तथा दीवानेपन को कोमल भावों के साथ शब्दों में पिरोया है. प्रेम को परिभाषित करती हुर्इं शशि जी कहती हैं-
'प्रेम भूगोल
सम्मोहित सांसें
दुनिया गोल'
‘सूखे हैं फूल
किताबों में मिलतीप्रेम की धूल’
‘नेह के गीत
आंखों की चौपाल में
मुस्काती प्रीत’
वास्तव में प्रेम का भूगोल यही है. प्रेम में पड़े मन की दुनिया प्रेमिका या प्रेमी के इर्द-गिर्द ही होती है. प्रेम ही हर प्रेमी की सांसों में समाया होता है. किताबों में मिलते सूखे फूल सदा ही प्रेम का उपमान बने हैं जिन्हें कवयित्री ने हाइकु के फूलदान में करीने से सजाया है.
प्रकृति के नित नए रंग मानव मन को अपने रंग में ढाल लेते हैं. प्रेम की शीतल बयार मन की उष्णता तथा कड़वाहट का लोप कर देती है. बर्फ से जमे अहसास पिघलने लगते हैं और शब्द रूप में अभिव्यक्त होते हैं. शशि जी दूसरे सर्ग में प्रकृति के शीत, ग्रीष्म, सावन, जल आदि विविध रंगों और बदलती छटाओं को बड़ी खूबसूरती के साथ मानव मन के कैनवास पर उकेरते हुए कहती हैं-
‘शीत प्रकोप
भेदती हैं हवाएं
उष्णता लोप’
‘बर्फ से जमे
भीगे से अहसास
शब्दों को थामे’
‘प्रकृति दंग
कैक्टस में खिलता
मृदुल अंग’
अभिव्यक्ति जब मानव मन के अंतस में जन्म लेती है तो उसका एक लक्ष्य होता है. शब्द रूपी भावों के कागज पर होते कदम-ताल में एक गंतव्य निहित होता है. शशि जी तीसरे सर्ग ‘जीवन के रंग’ में जीवन यात्रा, बसंती रंग, गांव और बचपन के अल्हड़पन के साथ मानवीय रिश्तों के गंतव्य की ओर कदम-ताल करती नजर आती हैं. इस सर्ग में जीवन की कई गूढ़ बातों पर रौशनी डाली गई है. मानवीय रिश्तों को खूबसूरत बिंबों के माध्यम से उकेरा गया है.
‘शब्दों का मोल
बदली परिभाषा’
थोथे हैं बोल’
‘मन के काले
मुख पर मुखौटा
मुंह उजाले’
‘उड़े गुलाल
प्रेम भरी बौछार
गुलाबी गाल’
काव्य संग्रह के चौथे सर्ग विविधा में दीपावली, राखी, नववर्ष के माध्यम से अनेकता में एकता के सूत्र को पिरोया गया है. पांचवा सर्ग हाइकु गीतों के शिल्प सौंदर्य से ओत-प्रोत है. ‘नेह की पाती’, ‘देव नहीं मैं’, ‘गौधुली बेला में’ जैसे हाइकु गीत रिश्तों के अनुबंधों को नया रंग देते नजर आते हैं. शशि जी का यह संग्रह तमाम विषयों को मानव मन के अंतस तक ले जाने में सक्षम है. सीमित शब्दों में भाव तथा बिम्बों को समाहित कर अपनी बात कह पाना निश्चित ही दुरूह कार्य है जिसे शशि जी ने बड़ी कुशलता से पूर्ण किया है. उनके हाइकू जहां अपनी बात सरलता से कह देते हैं, वहीं अर्थ घनत्व की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं. शब्द रूपी फूलों की इस माला में पिरोए गए हर भाव से पाठक स्वयं को जुड़ा हुआ पाता है. यह विशेषता कवयित्री के काव्यगत कुशलता की परिचायक है.
144 पृष्ठों वाली, 200 रु. मूल्य की इस किताब का प्रकाशन लखनऊ के लोकोदय प्रकाशन ने किया है.