Wednesday, June 8, 2022
तोड़ती पत्थर
तोड़ती पत्थर
वह तोड़ती पत्थर;
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर-
वह तोड़ती पत्थर।
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार:-
सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।
चढ़ रही थी धूप;
गर्मियों के दिन,
दिवा का तमतमाता रूप;
उठी झुलसाती हुई लू
रुई ज्यों जलती हुई भू,
गर्द चिनगीं छा गई,
प्रायः हुई दुपहर :-
वह तोड़ती पत्थर।
देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार;
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार।
एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा-
"मैं तोड़ती पत्थर।"
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
Thursday, March 17, 2022
गंधों भीगा दिन
हरियाली है खेत में, अधरों पर मुस्कान
अधरों पर मुस्कान ज्यूँ , नैनों में है गीत
रंग गुलाबी फूल के, गंध बिखेरे प्रीत
गंध समेटे पाश में, खुशियाँ आईं द्वार
सुधियाँ होती बावरी, रोम रोम गुलनार
अंग अंग पुलकित हुआ, तम मन निखरा रूप
प्रेम गंध की पैंजनी, अधरों सौंधी धूप
अंग अंग पुलकित हुआ, तम मन निखरा रूप
प्रेम गंध की पैंजनी, अधरों सौंधी धूप
खूब लजाती चाँदनी, अधरों एक सवाल
सुर्ख गुलाबी फूल ने, खोला जिय का हाल
गंधों भीगा दिन हुआ, जूही जैसी शाम
गीतों की प्रिय संगिनी, महका प्रियवर नाम
Tuesday, March 8, 2022
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु! निराला
आज आपके साथ साझा करते हैं निराला जी का बेहद सुंदर नवगीत जो प्रकृति के ऊपर लिखा गया है, लेकिन यह किसी नायिका का प्रतीत होता है.
निराला
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
पूछेगा सारा गाँव, बंधु!
यह घाट वही जिस पर हँसकर,
वह कभी नहाती थी धँसकर,
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
कँपते थे दोनों पाँव बंधु!
वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,
सबकी सुनती थी, सहती थी,
देती थी सबके दाँव, बंधु!
Sunday, March 6, 2022
महक उठी अँगनाई - shashi purwar
चम्पा चटकी इधर डाल पर
महक उठी अँगनाई
उषाकाल नित
धूप तिहारे चम्पा को सहलाए
पवन फागुनी लोरी गाकर
फिर ले रही बलाएँ
निंदिया आई अखियों में और
सपने भरे लुनाई .
श्वेत चाँद सी
पुष्पित चम्पा कल्पवृक्ष सी लागे
शैशव चलता ठुमक ठुमक कर
दिन तितली से भागे
नेह अरक में डूबी पैंजन -
बजे खूब शहनाई.
-शशि पुरवार
Friday, March 4, 2022
छैल छबीली फागुनी - shashi purwar
छैल छबीली फागुनी, मन मयूर मकरंद
ढोल, मँजीरे, दादरा, बजे ह्रदय में छंद। 1
मौसम ने पाती लिखी, उड़ा गुलाबी रंग
पात पात फागुन धरे, उत्सव वाले चंग। 2
फगुनाहट से भर गई, मस्ती भरी उमंग
रोला ठुमरी दादरा, लगे थिरकने अंग। 3
फागुन आयो री सखी, फूलों उडी सुगंध
बौराया मनवा हँसे, नेह सिक्त अनुबंध। 4
मौसम में केसर घुला, मदमाता अनुराग
मस्ती के दिन चार है, फागुन गाये फाग। 5
फागुन में ऐसा लगे, जैसे बरसी आग
अंग अंग शीतल करें, खुशबु वाला बाग़.6
फागुन लेकर आ गया, रंगो की सौगात
रंग बिरंगी वाटिका, भँवरों की बारात7
हरी भरी सी वाटिका, मन चातक हर्षाय
कोयल कूके पेड़ पर, आम सरस ललचाय। 8
सूरज भी चटका रहा, गुलमोहर में आग
भवरों को होने लगा, फूलों से अनुराग 1०
चटक नशीले मन भरे, गुलमोहर में रंग
घने वृक्ष की छाँव में, मनवा मस्त मलंग 1१
धरती भी तपने लगी, अम्बर बरसी आग
आँखों को शीतल लगे, फूलों वाला बाग़ 1२
शशि पुरवार
Sunday, February 27, 2022
चलना हमारा काम है- शिवमंगल सिंह सुमन
नमस्कार मित्रों
आज से एक नया खंड प्रारंभ कर रही हूं जिसमें हम हमारे हस्ताक्षरों की खूबसूरत रचनाओं का आनंद लेंगे.
इसी क्रम में आज शुरुआत करते हैं . शिवमंगल सिंह सुमन की रचना "चलना हमारा काम है ", जीवन को जोश , गति व हौसला प्रदान करती हुई एक रचना
गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है।
कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।
जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध,
इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है।
इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ,
मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।
मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।
साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम,
उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है।
फकत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
मूंदकर पलकें सहज
दो घूँट हँसकर पी गया
सुधा-मिक्ष्रित गरल,
वह साकिया का जाम है,
चलना हमारा काम है।
शिवमंगल सिंह सुमन
Tuesday, August 24, 2021
झील में चंदा
1
नदिया- तीरे
झील में उतरता
हौले से चंदा
2
बहती नदी
आँचल में समेटे
जीवन सदी
2
सुख और दुख
नदी के दो किनारे
खुली किताब
3
सुख की धारा
रीते पन्नों पर भी
पवन लिखे
4
दुख की धारा
अंकित पन्नों पर
जल में डूबी
5
बहती नदी
पथरीली हैं राहें
तोड़े पत्थर
6
वो पनघट
पनिहारिन बैठी
यमुना तट
7
नदी -तरंगे
डुबकियाँ लगाती
काग़ज़ी नाव
8
लिखें तूफ़ान
तक़दीरों की बस्ती
नदिया धाम
9
बहता पानी
विचारों की रवानी
नदिया रानी
-0-
शशि पुरवार
Saturday, January 2, 2021
उम्मीद के ठिकाने
Tuesday, November 10, 2020
एक स्त्री ....
एक स्त्री
अपना सब कुछ न्यौछावर कर देती
एक स्त्री पुरुष के बिना कहे
उसकी हर छोटी ज़रूरतों
का ध्यान रखती है
वही स्त्री पुरुष द्वारा
हिरणी सी कुचली भी जाती है
एक स्त्री
माँ बनकर अपनी ममता लुटाती है
वही स्त्री
सभी रिश्तों की परिभाषा का
किरदार जीवन में निभाती है
पर वही स्त्री उस ममता का
कितना मोल पाती है ?
एक स्त्री
दो पल सुख की ख़ातिर
स्वयं के दर्द सहलाती है
एक स्त्री ही हर बंधन में
जकड़ी जाती है
एक स्त्री ही अपने घर में
पराई कहलाती है
टूट कर जीती है वह अपनो के लिए
क्या दो स्नेहिल शब्दों का मोल भी
कंठ लगाती है ?
हर पल लड़ती है अपनो के लिए
लेकिन क्या
ख़ुद के लिए इक कोना सजाती है
आवाज़ उठाए तो बग़ावत है
आवाज़ दब जाए तो
कुचली जाने के लिए तैयार है
जीवन के हर मोड़ पर
क्यूँ स्त्री ही छली जाती है
पुरुषों को जन्म देने वाली
स्त्री स्वयं पुरुषों द्वारा ही
कुचली जाती है
बचपन , जवानी या हो बुढ़ापा
स्त्री कभी निर्भया, कभी परितज्य
कभी अवसादों में स्वयं को
घिरा पाती है
एक स्त्री अपने ह्रदय के
तहखानो में
बंद अपने सपनो
अपनी अभिलाषाओं
अपने विचारों से
पल पल लड़ती है
लेकिन वही स्त्री
जीवन के हर मोड़ पर
चट्टानों से खड़ी
हर तूफ़ानों से
उन्ही अपनों के लिए
लड़ती नज़र आती है
स्त्री बिना कुछ कहे
अपने हर दर्द पर
मलहम लगाती है लेकिन
क्या स्त्री को मिलती है ?
जीवन की तपती ज़मीन पर
शीतल वृक्ष की छाँव
जहां वह निश्चल सी
खिलखिलाती है
गुनगुनाती है ?
शशि पुरवार
Sunday, November 1, 2020
कोरोना वायरस बदलती युवाओं की जीवन शैली
सोनाली कंपनी की सीईओ थी. वह ब्रांडेड कपड़ों व होटलों पर अपनी तनख्वाह का खर्च देती थी और लग्जरी जीवन जीना उसकी प्राथमिकता थी. आज की भागदौड़ वाली जिंदगी को पश्चिमी संस्कृति की तरफ जाते कदमों को कोरोना की वजह से ब्रेक मिल गया.
विशाल ने एक साल पहले अपनी फोटो शॉप खोली थी. काम अच्छा चल रहा था .काम को अच्छी गति मिलती कि उसके पहले लॉक डाउन हो गया . लगभग 2 महीने तक स्टूडियो बंद रहा जबकि कर्मचारियों का वेतन भुगतान जारी था .2 महीने से वेतन का भुगतान जारी था और उसकी तुलना में बिक्री बहुत कम थी. आर्थिक स्थिति की अनिश्चितता से चिंता के कारण उसे असहज महसूस होने लगा तो वह बोला कि मैं आर्थिक स्थिति की अनिश्चितता के कारण चिंतित और असहाय महसूस कर रहा हूं. अब तो मुझे काम के अर्थ पर भी संदेह होता है। दो महीने तक उसने अपने यहां काम कर रहे आदमियों को वेतन दिया पर आमदनी शून्य होने के कारण उन्हें काम से हटाना पड़ा .
वनीता को लग्जरी लाइफ जीने का शौक था। नौकरों के भरोसे अकेले रहने वालों को काम चलाना सुविधाजनक लगता है। लॉकडाउन के कारण उसे घर पर ही रहना पड़ा। धीरे धीरे उसने मां के साथ रसोई में काम करना शुरू किया। घर में रहने की वजह से इनोवेटिव कुकिंग करना शुरू कर दी, जिससे न केवल उसे खुशी हुई अपितु बचत भी खूब हुई. क्योंकि ऑफिस का काम घर से ही चल रहा था तो आधी तनख्वाह मिलती थी। इससे उसके अंदर सुरक्षा की भावना थी कि पैसा हाथ में है. फास्ट फूड खाने के कारण जो वजन बढ़ रहा था, घर में काम करने से कम हुआ और शरीर में स्फूर्ति भी रहने लगी।
इस कोरोना काल में भारत भी आर्थिक समस्या से जूझ रहा है। बेरोजगारी बढ़ रही है। प्राइवेट सेक्टर में कंपनियां छँटनी कर रही हैं. मध्यमवर्गीय लोग व सभी कर्मचारियों की हालत एक जैसी हो रही है. सभी एक जैसी मानसिक स्थिति से गुजर रहे हैं भारत में 90 दशक के बाद के बच्चे पश्चिमी सभ्यता को कुछ ज्यादा ही आत्मसाध कर रहे थे, जिसके कारण भव्य खर्चे में आत्म सुख तलाश रहे थे और अभिव्यक्ति का लाभ उठा रहे थे।
यह इस दौर की सबसे बड़ी उछाल थी. सबसे बड़ा असर उन युवाओं को पड़ा जो हाल ही में आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होने वाले थे. एक झटके में उनके हाथ से नौकरी चली गई। मानसिक स्थिरता की जगह चिंता और असंतोष का भाव उनको व्यथित करने लगा।
भारत में युवाओं पर गिरावट का ज्यादा असर नहीं हुआ क्योंकि भारतीय संस्कृति में सेविंग करने की आदत पहले से है. जिससे उनके घर की इकोनॉमिक पर आंशिक असर पड़ा। वे प्राथमिक जरूरतों को पूरा करने के प्रति आश्वस्त हैं
धानी व मयंक जैसे लोग आवेगपूर्ण उपभोग करते थे। लेकिन महामारी आने के कारण उनके विवेकपूर्ण और तर्कसंगत ने उन्हें बचा लिया। भारत की सबसे पुरानी साइकिल कंपनी जिसने अपने कर्मचारियों की छँटनी की है। बेरोजगारी और व्यवस्था को दुरुस्त रखने के लिए सरकार ने नीतियों में ढील दी है लेकिन महामारी ने युवाओं का नजरिया बदल दिया है। खुद को जोखिम से बचाने के तरीके ढूंढ रहे हैं. आज युवाओं ने नए-नए तरीके का इस्तेमाल करना शुरू किया। ऑनलाइन कमाने का जरिया ढूंढ रहे हैं।
संजय ने दुकान बढ़ाने के लिए अपनी आधी जमा पूंजी दुकान में लगा दी। आमदनी बंद होने के कारण मुश्किलें बढ़ गई। दुकान का किराया देना है. अब पैसे की तंगी ना हो इसलिए ऑनलाइन काम शुरू किया, लेकिन उसमें भी गिरावट आई. लोग पैसा देना नहीं चाहते। दुकाने खुली है लेकिन ग्राहक नहीं है। लेकिन कुछ ही हफ़्तों के बाद उन्हें नए व्यवसाय को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा
शीतल की नयी नौकरी लगी थी .आज कंपनी ने आर्थिक स्थिति में गिरावट की वजह से लोगो को निकाल दिया। उन लोगों में वह भी शामिल थी। अपनी मानसिक स्थिति को व्यस्त रखने के लिए उसने ऑनलाइन लिखना प्रारंभ कर दिया और ऑनलाइन को सामान बेचे. पुरानी चीजें भी बेचीं . ऑनलाइन काम करने से फिलहाल बहुत ज्यादा पैसा तो नहीं मिल रहा है लेकिन उसे आत्म संतुष्टि जरूर मिली कि कुछ कमा रहे हैं। भविष्य को लेकर बहुत संशय है.
सोनाली व निक दोनों नौकरी करके अच्छा कमाते थे . हाल ही में उन्होंने बड़ा सा घर लिया था दोनों वित्तीय कर्मचारी हैं, महामारी से पहले कमीशन में प्रति वर्ष अच्छा पैसा कमाते थे, लेकिन भुगतान हाल के महीनों में पूरी तरह से सूख गया है।उनके लिए वित्तीय तौर पर बहुत बड़ा झटका था .अपने फ्लैट का भुगतान करने के लिए उन्हें 60% कटौती करनी पड़ी .अब वह कहती हैं कि मुझे कुछ योजना बनानी होगी .सौंदर्य प्रसाधन व स्वयं पर खर्च नहीं कर रही हूं .ऑफिस खुलने के बाद टेकआउट मिल लेने की जगह घर का बना भोजन लेकर जा रही हूँ. मेस का खाना बंद कर दिया है . टैक्सी की जगह मेट्रो में आना जाना शुरू कर दिया है .धीरे-धीरे बचत करनी होगी योजना बनानी होगी और अपने खर्चों पर विशेष ध्यान देना होगा . महीने में एक बार ही रेस्टोरेंट में भोजन करूंगी. वह कहती हैं कि महामारी के कारण पूरे 1 महीने तक घर पर रहना मुझे इस बात का एहसास कराता रहा कि बगैर भागदौड़ की जिंदगी में ज्यादा सुकुन था . मुझे लगता है कि जमीन पर अपने पैरों के साथ रहना बहुत अच्छा है . भागदौड़ के बिना जीवन अधिक अच्छे से जिया है
साकेत ने कहा पहले मुझे खर्चेव फ्लैट की रकम के लिए सोचना नहीं पड़ता था .लेकिन अब हर कार्य को करने से पहले योजना बनानी पड़ती है। वहीँ सौरभ कहते है कि हालात बेहद ख़राब है। रोटी कमाने के लिए हम बाहर आये है . इस वेतन में परिवार के लिए क्या व कैसे करेंगे, कल का पता नहीं है।
कोविड महामारी ने लोगों की जिंदगी बदल दी है. युवाओं की सोच व निति में परिवर्तन आया है. वही सौम्य कहते है कि -
"मैं एक स्थिर कैरियर चाहता हूं और एक स्थिर नौकरी ढूंढना चाहता हूं," वे कहते हैं। "स्थिरता कुछ जोखिमों का सामना कर सकती है।" इस समय के हालात से निपटने के लिए मै स्वयं को असहाय महसूस कर रहा हूँ।
युवाओं को सामाजिक नेटवर्किंग और काम की आवश्यकता है, और तीन से छह महीनों के बाद स्थिति फिर से सामान्य हो जाएगी," लेकिन मंहगाई बढ़ेगी।
सबसे बड़ी बात है कि भले भविष्य में स्थितियां सामान्य हो जाये लेकिन युवाओं को दोहरी मार पड़ रही है। आने वाले समय आर्थिक संकट से देश के युवा देश के साथ कैसे उबरेंगे . समय के यह घाव क्या स्थिति सामान्य कर सकेंगे , क्या भारत की अर्थव्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए सरकार की नीतियां काम करेंगी ? बेरोजगारी बढने से युवाअों की मानसिक स्थिति उन्हे अवसाद में धकेल सकती है. युवाओं का रुझान नए ट्रेंड स्थापित करने में हो रहा है लेकिन सफलता मायने व रास्ते बेहद दूर है। देश की आर्थिक स्थिति को बढाने में युवाओं का बड़ा योगदान होगा।
शशि पुरवार
Tuesday, August 11, 2020
चाय पीने के अरमान
Tuesday, August 4, 2020
नया आकाश - धारावाहिक कहानी भाग २
अकेलापन सताने लगा था। प्रणव से दो शब्द सुनने की आशा में उमंगो की कलियाँ मुरझा जाती थी। कभी कुछ पूछो तो जबाब भर ही मिलता था. यहाँ तक कि प्रेम के एकांत पलों मेेें भी जिंदगी रसविहीन थी। शब्द कोष खाली था। मेरे लिए परिस्थितियों को समझना बहुत कठिन होता जा था. आखिर हम कैसे बिना कहे किसी के मन की बात को पूर्णतः कैसे समझ सकतें है। एक वर्ष यूँ ही बीत गया। फिर थोडा बहुत प्रणव को समझी कि उनके लिए दिल की बात शब्दों में ढालना भी कठिन है। पलक अपने भावों को व्यक्त करना जानती थी किन्तु उसे भी सुनने वाला कोई नहीं था। प्रणव से प्रेम अभिव्यकति के दो शब्द या तारीफ सुनने के लिए भी वह तरस गयी. कई बार जतन किये, परंतु जबाब में सिर्फ मुस्कुराहट ही मिली। एक बार तो उसने प्रणव से पूछा -
’’ क्या तुम्हें मुझसे प्यार है या नही है’’. अब तो पलक ने हालात से समझौता कर लिया था. माॅ-पिताजी को कुछ भी कहकर दुखी नही करना चाहती थी. जिंदगी कशमकश में गुजर रही थी. मायके और ससुराल के वातावरण में जमीन आसमान सा अंतर था। मन की गाँठें मन में ही रह गयीं। उसे कभी भी किसी ने खोलने की कोशिश नहीं की. जीवन का प्याला भरा होने के बाद भी खाली था।
जिदंगी बस गुजर रही थी. अब कौन से सुख की चाहत करूँ यहाँ मानसिक सुख भी नहीं था। एक बार माँ को याद कर आँखों में आँसू भर आये तो सासू माँ ने ताना प्रेम से चिपका दिया कि पढ़े लिखे लोग रोते नहीं है। समझ नहीं आया क्या पढे लिखे लोगों के भीतर संवेदनाएं नहीं होती है। वक्त धीरे - धीरे तन्हाई में कटने लगा.
एक दिन उसका जी मिचलाने लगा, उल्टियां शुरू हो गई; डाॅक्टर को दिखाया तब ज्ञात हुआ माँ बनने वाली हूॅ. नए मेहमान के आगमन से ही मन प्रफुल्लित हो गया, कि अचानक प्रणव का ट्रांसफर दिल्ली हो गया. उन्हे वहां तुरंत ज्वाइन करने का पत्र मिला। सब कुछ बहुत जल्दी में हुआ और सैटल होने के बाद पलक को ले जाऊंगा कहकर प्रणव अकेले दिल्ली चले गए चले गये. जातें जाते दो शब्द कह गए - अपना ध्यान रखना; घर में सब दिल के अच्छे हैं। वह न तो खुश हो पा रही थी और न ही आँसुओं को रोक पा रही थी. कभी कभी प्रणव का यह सूखा व्यवहार खलता था. फिर भी पलक को प्रणव की कमी खलती थी. पति का पास होना भी बहुत मायने रखता है, भले ही बात- चीत न हो किंतु साथ तो रहता है. फिर यह जुदाई आठ महीने की थी. दिन का समय घर के काम और रात तन्हाई में कटने लगी. घर वालों के ताने मारने की आदत ऐसी स्थिति में भी कायम थी. मानसिक तनाव रहने लगा था। किन्तु बच्चों के आने की आहट से मन की बगियाँ जरूर हरी हो गयी थी।
माॅं जी ने दिन -रात पोते की कामना करते हुए हिदायते देना शुरू कर दिया. ऐसी स्थिति में शरीर ज्यादा थक रहा था। मेरी दुनियां नन्हे क़दमों की आहट सुनने के लिए बैचेन थी. कोख में उनकी हलचल दिल को आंनदित करती थी. मुझे तो जैसे अब आस - पास की खबर ही नही थी. नया सदस्य, जो मेरा अंश होगा, उसकी कल्पना में ही खोई रहती थी. फिर वह पल आया जब मेरी झोली में एक नही दो नन्हीं खुशियाॅ थी. जुडवा बच्चों का जन्म हुआ. एक लडकी व एक लडका. पोते की खुशी ज्यादा मनाई गई , पर माॅ के लिए लडका व लडकी में कोई फर्क नही होता, वे तो उसका अंश होते है. मेरी बेटी भी बहुत प्यारी थी.
बच्चों के आने से मन की बगिया खिल उठी. प्रणव ने कुछ नही कहा किंतु वे खुश नजर आ रहे थे. उनका फोन आया था. छुटट्ी न मिल पाने के कारण वे नही आ सके थे. मै अपने दोनो बच्चों मे रम गई . खुशी व्यक्त नही कर पा रही थी. जैसे तपते रेगिस्तान में ठंडी फुहार पडी हो. लगभग दो महीने बाद प्रणव हमें लेने आए. बच्चो को प्यार किया, मेरा हाल पूछा फिर सबके पास बैठकर वहाॅ की खबरे बताई. मुझे उनसे अंतरंग बात करने का भी मौका भी नही मिला, आने के बाद वह सारा समय घर वालो के बीच ही व्यतीत करते थे. बच्चों का नामकरण भी हुआ. विक्की और विनि. फिर उसके बाद दो दिन रूककर हम चले गये.
इस नये घर में आकर ऐसा लगा, जैसे पिंजरे से बाहर निकलकर लगता है. यहाॅ कोई रोक-टोक करने वाला नही था. प्रणव को यहाँ ज्यादा व्यस्तता थी, सुबह जाते तो रात को आते. इतना थक कर आते कि उनसे क्या बात करती, पर बच्चों के साथ वे थोडा समय जरूर व्यतीत करते . हमारा सानिध्य कम ही हो पाता. इतने दिनों की दूरी के बाद भी प्रणव के पास मुझे बताने के लिए कुछ नही था. यह बात दिल को पीडा देती थी. मेरे देानो बच्चे विक्की और विनि बहुत प्यारे थे. वक्त उनके साथ गुजरने लगा और मै भी अकेलेपन की पीडा से उबर गई. जब हमे कोई लक्ष्य मिल जाए तो बाकी बातें हमारें लिए गौण हो जाती है.क्योकि लक्ष्य के अलावा हमें कुछ याद नही रहता. बच्चो की अच्छी परवरिश ही मेरी प्रथम प्राथमिकता थी. बच्चे सही राह पर चले इसलिए मैने अपने सब शौक त्याग दिए. मेरा एक ही ध्येय था ’’ बच्चो की अच्छी परवरिश व उच्चशिक्षा’’
वक्त के साथ बच्चे भी लक्ष्य की तरफ बढने लगे. वे जब घर से जाते तो मै उनके लौटने की राह देखती. प्रणव बिल्कुल नही बदले थे . हमेशा की तरह शांत व चुप. कभी - कभी तो मुझे उन पर गुस्सा आता कि यह कैसे है, मुझे समझते भी है या नही. क्या कोई इंसान ऐसा कैसे रह सकता है जो प्यार भी नही जताए. दिल भर आता था, वो मेरे लिए क्या सोचते है आज तक मुझे पता नही चला. कभी कभी तो पीर आँखो से छलक उठती थी. ऐसा लगता था कि कही ये किसी और से शादी करना चाहते होगें, पर इसमे मेरी क्या गलती थी .मेरे पूछने पर हमेशा की तरह मुस्कुरा देते और स्पर्श द्वारा अपना प्यार जता कर कर्तव्य पूरा कर देते. पर बच्चो के साथ उनका व्यवहार एक अच्छे पिता के समान था. वो बच्चो को कुछ मना नही करते व उनके हर काम में उनका साथ देते थे. पर मेरे लिए उनके पास शब्द भी नही थे.शायद उनका पुरूष अंह आडे आता हो, खैर मै उन्हें समझने में असफल थी. अगर मै न बोलू तो शायद वार्तालाप ही न हो.
मुझे तो बच्चो के रूप में अनमोल दौलत मिली थी. मेहनत रंग लाई. बच्चे अच्छे संस्कारो के साथ, अच्छे पद पर भी पॅहुचे. विक्की इंजिनियर बनकर अमेरिका चला गया व विनि ने एम.बी.ए. में टाप किया. बच्चो की कामयाबी पर हम बहुत खुश थे. विक्की जब अमेरिका जा रहा था तो दिल उसे भेजने के लिए तैयार नही था. हर पल पलकें नम रहती थी तब एक दिन प्रणव बोले,
’’ पलक, बच्चों को आगे बढने से मत रोको, उन्हे रोक कर तुम स्वार्थी मत बनो, उनकी राहो को आसान करो व उनकी राहों में रोडे मत डालो.’’
उस एक पल वह चुप रह गई. क्या स्वार्थ होगा मेरा, आखिर बच्चों के लिए कोई माँ रोडा बन कैसे बन सकती है, प्रणव ने कैसे यह कहकर दिल दुखा दिया. उसने तो बच्चों की राहों में कभी अपने प्यार को भी आडें नही आने दिया था. बच्चों को अच्छे मुकाम पर पहुँचाना ही ध्येय था. पर जब बच्चे दूर जा रहे हो तो एक माँ को तकलीफ कैसे न होगी. दोनों की शादी की फिर भरे दिल से विक्की को भेजा व विनि की विदाई की. दोनों अपनी - अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए. सब कुछ पलक झपकते हो गया.
उनके जाने के बाद घर में सन्नाटा सांय-सांय करने लगा. घर की जैसे रौनक ही चली गई थी. शुरूआत मे विक्की के फोन बहुत आते थे, फिर धीरे - धीरे व्यस्तता बढने के कारण वह भी कम हो गए. तरक्की पाने के लिए मेहनत तो करनी पडेगी. बहू भी उच्च शिक्षित थी. उसे भी वहाँ काम मिल गया था.
विनि की ससुराल इसी शहर में थी. वह अपने पति के बिजनेस मे उनका हाथ बटांने लगी. व्यस्त होने पर भी वह अक्सर मिलने आ जाती थी. ऐसा लगा कि जैसे मैने सब कुछ पाकर भी खो दिया हो. दिल मे फिर से खालीपन व अधूरापन उरने लगा. अकेलापन अब मुझे खाने को दौडता था और जो तन्हाई मेरे बच्चों के आने से दब गई थी, उसने भी अपने फन फैलाना शुरू कर दिया. हर पल मन में निराशा के विचार आते थे. कभी- कभी तो ऐसा लगता कि सिर की नस ही फट जाएगी. घुटन सी होने लगी थी. कभी भी चिडचिडाने लगती. मै अपने आप को संभाल ही नही पाई और डिपे्रशन का शिकार हो गई. प्रणव अब थोडा समय मेरे साथ व्यतीत करने लगे. एक वक्त ऐसा आता है जब हमें अपने साथी की सबसे ज्यादा जरूरत महसूस होती है. जो एक दूसरे को भावनात्मक रूप से संभाले रखते है.
पर कहते है न कि चित्र बिना रंगो के अधूरा ही रहता है, उसी तरह प्रणव का साथ व प्यार कुछ शब्दों का मोहताज था. मै अपना दिल हल्का करना चाहती थी, पर मेरे लिए अब किसी के पास उतना वक्त नही था. दिल की तम्मनांए नागफनी के पेड की तरह बढने लगी. प्रणव अभी भी व्यस्त थे. सबकी अपनी - अपनी एक जिंदगी थी; सभी के पास अपना एक मुकाम था. पर मेरे पास अब कुछ भी नही था. मेरे दिल में यह कसक बन कर रह गई. अब तो कुछ करने की उम्र भी नही है. अपना समय व्यतीत करने व मन बहलाने के लिए मैने पुन: अपनी डायरी लिखना शुरू कर दिया, जो पहले कभी कभी लिखती थी. खाली दिमाग शैतान का घर बन जाता है. जो मै नही चाहती थी. मेरी डायरी अब मेरी हमराज बन गई थी. अपनी तन्हाई कम करने के लिए अपने विचारों को रूप प्रदान करने लगी. एक दिन रात को जब मै लिख रही थी तो अचानक प्रणव वहाँ आ गए और बोले-
’’ क्यों पलक; क्या लिख रही हो.’’
’’ कुछ भी तो नहीं, बस ऐसे ही.....’’
’’ कुछ तो लिख रही हो, फिर झूठ क्यों बोल रही हो?’’ कहकर प्रणव ने डायरी छीन ली.
’’ प्रणव, क्या हॅँ मैं? न कोई अस्तित्व, न ही कोई पहचान. मेरे लिए आपके पास भी कभी वक्त नही रहा.....’’ न जाने कैसे यह मुँह से निकल गया . यह कहते हुए पलक की आँखे भर आई.
’’ तुम कैसी बातें सोचती हो, पलक. तुम मेरी पत्नी हो, दो प्यारे बच्चों की माँ हो और ये घर तुम्हारे बिना कुछ भी नही है.’’ प्रणव ने पहली बार इतना कुछ कहा और उसे अपनी बाँहो में भर लिया. ’’
पर प्रणव, मै तो कुछ भी नही हूँ?’’ कहते हुए बडबडाने लगी ; पलक का गला भर आया; शब्द गले में अटक गए; दिल जोर से धडकने लगा, ऐसा लगा जैसे शरीर व जुबान अब उसके बस में नही है.
’’पलक, तुम क्या कह रही हो, कैसी बहकी बाते कर रही हो? मै तुमसे कुछ कह रहा हूॅ.’’
प्रणव ने पलक को पकड कर झकझोर दिया; तो पलक, प्रणव की मजबूत बाँहो का सहारा पाकर रो पडी. प्रणव हैरान रह गए. ’’ पलक, तुम्हें क्या हुआ है ?’’ कहते हुए प्रणव ने उसे सहारा दिया व प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरकर उसे शांत करने का प्रयास करने लगे.
’’ शांत हो जाओ पलक. रात बहुत हो गई है, चलो सो जाओ; बच्चों की याद आ रही है, कल उनसे बात करेंगे. अभी शांत होकर सो जाओ.’’ प्रणव समझाने का प्रयत्न कर रहे थे. यह सब इतना अचानक हो गया कि प्रणव भी घबरा गए.
मेरा दिल आज मेरे बस में नही था. इतना सहारा आज पाकर दिल उस छोटे बच्चे के समान हो गया; जिसे किसी की प्यार भरी गोद की जरूरत होती है. वह कब उस गोद मे सो गई, पता ही नही चला. प्रणव ने पता नही विनि से क्या कहा. सुबह दरवाजे की घंटी बजी. तो देखा विनि सामने खडी है.
’’ माँ तुम कैसी हो ’’ कहकर विनि गले से लिपट गई .
’’ मै तो ठीक हूँ , तू कैसे अचानक आ गई ,’’
’’ अरे भाई, मै तो तुम्हारे आँसूओ से घबरा गया था.’’ बीच मे बात काटकर प्रणव बोले.
’’ पापा, विनि बोली और दौडती हुई प्रणव के गले लग गई.
’’ अरे, अब छोटी बच्ची नही रही, चल, अब आ गई है तो सब साथ मे नाश्ता करेगें ’’ पलक ने विनि से कहा.
फिर वह नाशते की तैयारी करने लगी. विनि प्रणव के साथ बाहर चली गई. पलक आज खुद को हल्का महसूस कर रही थी. शायद रात के आँसूओं मे मन की वेदना बह गई थी. वह सोच रही थी कि प्रणव में पहले की अपेक्षा शायद कुछ परिवर्तन आ गया है. इतने में विनि आ गई व नाशता लगाने में उसकी मदद करने लगी. नाशते की टेबल पर सभी शांत बैठे थे कि अचानक विनि बोल पडी.
’’माँ, तुम कुछ अपने लिए करो ’’
’’ मै अब क्या करू ?’’ पलक ने कहा
’’ पलक, तुम्हें हमेशा से कुछ करने की ललक रही है; इक मुकाम हासिल करना चाहा था; अब शुरू करो.” प्रणव बोले.
’’अरे, अब तो उम्र बीत गई है .’’
’’नही माँ, किसी भी काम की शुरूआत के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती है ’’ विनि ने कहा.
’’अब ऐसा कौन सा काम है? जो मै इस उम्र में शुरू करूं, घर संभाल लिया, तुम लोगों को बना दिया, मेरे लिए यही बहुत है ’’ पलक ने कहा
’’ नही माँ, तुम एक काम कर सकती हो.’’
’’क्या?’’
’’सृजन, हाँ माँ, तुम अपने विचारों का सृजन करो, तुम्हें पढने लिखने का शौक है; इससे बेहतर कुछ नही हो सकता है ’’ विनि.
’’नहीं, मुझसे अब कुछ नही होगा " कहकर पलक उठ गई और वार्तालाप वहीं समाप्त हो गया.
विनि शाम तक रूककर अपने घर चली गई. दिन भर उसने मुझसे बात नहीं करी. प्रणव एकदम शांत बैठे थे. रात को प्रणव ने मुझे विनि का पत्र दिया. विनि ने लिखा था.
’माँ, मैने आज तक आप से कुछ नही माॅंगा, आज माॅंग रही हूँ. मुझे आपकी एक अलग पहचान, एक अलग मुकाम चाहिए. क्या आप मेरी ये इच्छा पूरी करेगीं, यही मेरे जन्मदिन का तोहफा होगा. आप देगीं ना माँ - आपकी विनि.
पलक ने पत्र पढकर प्रणव को देखा, तो जबाब में प्रणव उसके हाथों को थाम कर बोले -
" पलक, मैने कभी भी तुम्हारी तरफ ध्यान नही दिया. तुम्हारे अंदर की प्रतिभा को भी नही पहचान पाया, ये मेरी गलती है, विनि सही कह रही है. मैने तुम्हारी डायरी पढी है तुम्हारा दर्द ...’’
’’अरे, आप कैसी बातें कर रहें है "’ पलक ने बात काटकर कहा
’’नही पलक, मुझे तो प्यार जताना भी नही आता, पर तुम तो अपना दर्द, अपनी खुशी, सभी कुछ तो शब्दो में ढाल देती हो. तुम बहुत अच्छा लिखती हो; कोशिश करो, अपनी प्रतिभा को उजागर करो ’’ कहकर प्रणव ने हौले से हाथ दबा लिया.
मेरे लिए ये नया अनुभव था, इतने सालों मे पहली बार प्रणव ने मेरे लिए कुछ कहा, सुनकर अच्छा भी लगा. विनि की इच्छा व प्रणव के शब्दो ने न जाने मन में कैसी स्फूर्ती भर दी जिसने मेरी सोई हुई लालसा को फिर से जगा दिया. मैने पुन: लिखना शुरू कर दिया.
जब पहली रचना पत्रिका में आई तो विक्की व विनि दोनो के फोन आए.
" माँ, तुम्हारे नए सफर का हम स्वागत करते है.’’ बच्चे भी मेरी हौसला अफजाई करते रहते. प्रणव, मेरी हर रचना पर मुझसे कहते -
’’ पलक, अच्छा है, कोशिश करती रहना ’’
अब वह अपने प्यार को बिना शब्दों के स्पर्श द्वारा महसूस कराते रहते व मैं उस प्यार को अपने शब्दों में ढालने लगी. प्रणव को अपनी खुशी व्यक्त करने में शब्दों की हमेशा कमी लगती है, पर मेरी हर कृती में अब मेरे अपने साथ होते. यह मेरे अपनों का ही विश्वास था व मुझे विनि को तोहफा भी तो देना था. दरवाजे पर बज रही तीव्र घ्ंटी की आवाज ने मेरी तंद्रा को भंग कर दिया व मेरे विचारो पर विराम लग गया.
दरवाजा खोला तो प्रणव मिठाई लिए खडे थे.
’’ कब से दरवाजा बजा रहा हूँ, कहाँ थी तुम?’’
मै कुछ कहती उसके पहले प्रणव ने मेरे मुँह मे मिठाई भर दी और प्यार से गले लगा लिया.
’’अरे, छोडो भी अब....’’ पलक इसके आगे कुछ कहती कि आवाज आई.
’’ अब उम्र हो गई है ’’ कहती हुई विनि अंदर आ गई.
उसकी इस बात पर सभी हँस पडे. दूसरे दिन रात 7 बजे हमें गांधी हाँल पहुँचना था. विनि रात को घर पर ही रूक गई थी. सुबह उठकर सब अपनी - अपनी तैयारी मे लग गए. सुबह से बधाई देने वालों का तांता लगा था. विनि के ससुराल वाले भी आए थे. विक्की का भी फोन आया था. उसे अफसोस था कि वह इस समय भी सबके साथ नही है . रात को डिनर का प्रोग्राम भी वहीं था. समारोह के लिए हम सभी नियत समय के निकल गए. हाल में प्रायोजकों ने हमारा स्वागत किया. प्रेस व मिडिया वाले भी वहाँ मौजूद थे. समारोह अपने नियत समय पर प्रारंभ हुआ. तभी संपादक ने मंच पर आने के लिए मेरा नाम पुकारा.
’’ पलक गुप्ता, जिनका ’’नीड’’ आज हाथों हाथ बिक रहा है. कितनी खूबसूरती से इन्होंने नीड का चित्रण किया है.’’
पलक उठकर खडी हुई. हाल में तालियों के साथ उसका स्वागत किया गया. माला पहनाकर व शाल उढाकर उसे सम्मानित किया गया. पलक ने झुककर सभी का अभिवादन किया तो आँखे नम हो गई. शब्दो को रूप देने वाली पलक के शब्द आज न जाने कहाँ चले गये थे. नीड, उसके ही जीवन का सपना था. वह बस इतना ही कह सकी.
’’नीड, मेरी बेटी विनि के नाम समर्पित है. यह इसके लिए मेरा एक तोहफा
है जो इसने मुझसे माॅंगा था. आप लोगो ने मुझे इतना प्यार दिया, इतना सम्मान किया, उसके लिए मै आप सबका तहे दिल से आभारी हूँ अपना स्नेह बनाये रखें.’’
’’माँ आखिर आपने अपना मुकाम पा ही लिया .एक और सृजन कर लिया, आय एम प्राउड आॅफ यू मोम ’’ कहकर विनि गले लग गई.
तभी किसी ने प्रणव से प्रश्न किया कि-
‘‘ आप कैसा महसूस कर रहेें है, आज आपकी पत्नी को सम्मानित किया गया है?.’’
‘‘ नारी का काम सृजन करना ही है, मन में आत्मविश्वास हो तो वह जो चाहे वह कर सकती है. हर नारी के अंदर कोई न कोई प्रतिभा होती है, जिसे बाहर लाना चाहिए. जिंदगी में अपने लिए कुछ करना; अपनी प्रतिभा को निखारना कोई गलत बात नही है. उन्हें भी अपनी जिंदगी जीने का अधिकार है. मुझे अपनी पत्नी पर बहुत गर्व है.”
कभी न बोलने वाले प्रणव आज न जाने कैसे इतना बोल गए और मेरा हाथ थाम लिया. लोग सम्मान में खडे हो कर तालियाँ बजा रहे थे. मेरी आँखे खुशी से छलक उठी. एक नवयौवना की तरह मेरी आँखो में फिर से सतरगीं सपने रंग भरने लगे. आज मैं बहुत खुश थी कि, मुझे मेरा ‘‘नया आकाश‘‘ मिल गया.
शशि पुरवार
शशि पुरवार
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Saturday, August 1, 2020
नया आकाश - धारावाहिक कहानी भाग १
" नया आकाश ’’
दोपहर के 1 बजे फोन की घंटी बजी, पलक के हेल्लो के जबाब में दूसरी तरफ से प्रणव की आवाज थी.
’’ पलक, बधाई हो ! तुम्हें इस साल तुम्हारे उपन्यास ’’ नीड़ ’’ के लिए सम्मानित किया जा रहा है.
’’ क्या ’’ खुशी व सुखद आश्चर्य से पलक की आवाज में कम्पन आ गया, शब्द गले में ठहर गए, अचानक आँखें नम हो गयीं, हदृय अपने उदगार व्यक्त करने में असमर्थ थे. जीवन में जो इक प्यास शेष थी, आज जैसे उस प्यासे को पानी मिल गया था.
’’ क्यों, विश्वास नहीं हो रहा है ? अभी - अभी मुझे संस्था से फोन आया था! अच्छा, शाम को मिलता हूँ फिर बात होगी। .’’ कह कर प्रणव ने फोन रख दिया.
पलक जैसे ही फ़ोन रखकर मुड़ने लगी, कि फिर घंटी बजी. ’ हेल्लो’ के जबाब मे उधर से अाती हुई मधुर आवाज कानों में रस घोल गयी.
माँ - बधाई हो, मैं घर आ रही हूं.’’
’’अरे विनि, कैसी है, कब आ रही है, तुझे कैसे पता चला ’’ पलक ने एक ही सांस में प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
’’ माँ, पापा का फोन आया था, अच्छा शाम को मिलतें हैं. अभी फोन रखती हॅू‘‘ कहकर विनि ने फोन रख दिया.
’’पता नही, सबको कितनी जल्दी रहती है’’ पलक धीरे से बडबडाई.
विनि से बात करके पलक की भीगी पलकें झरझर झरने लगीं। विनी उसके ह्रदय का टुकडा थी. जिसके बिना वह कोई कल्पना नहीं कर सकती थी. ऐसी ख़बरें आग की तरह फैल जाती है। उसके बाद बधाई का जो सिलसिला शुरू हुआ वह दोपहर 3 बजे तक चलता रहा.
आज जैसे पलक अपने अंदर ठहराव महसूस रही थी। स्वयं की पहचान हर इंसान के लिए मायने रखतीं है। वह पहचान ही जीवन में सम्पूर्णता का अहसास कराती है। वक़्त व नियति के चलते जो कुछ पीछे छूट गया था, आज ओस सी शीतलता बन हदृय को ठंडक प्रदान कर रहा था। ह्रदय के किसी कोने मे जो तम्मना दबी हुई थी,आज उसे एक गगन मिल गया. ह्रदय की धडकन व मन के तारों ने साज छेड रखा था. विनी ने ही अनजाने में उसके स्वप्नों को हवा दी थी। न चाहते हुए भी पलक अतीत की उन गलियों में विचरने लगी जहाँ सिर्फ दर्द और तन्हाई थी। मानसिक त्रासदी भी किसी यातना से कम नहीं होती है।
आज भी वह दिन याद है जब उसने शादी न करने के लिए जद्दोजहत की थी। आगे पढने व एक मुकाम हासिल करने का स्वप्न नैनों में तैर रहा था. पलक स्वभाव से शांत व संवेदनशील थी. वह दो बहनें थी. भाई नहीं था. पलक छोटी थी. माँ -पिताजी परंपरावादी न होकर बहुत सुलझे हुए इंसान थे. बेटियों को बेटे की तरह, बहुत जतन से पाला और जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। माँ का एक ही ध्येय था कि हम उच्च शिक्षित बने । हालाकिं माँ स्वयं शिक्षित होकर गृहणी ही थी। परंपरा के आगे उन्होंने घुटने टेक दिए थे. लेकिन उनका पूर्ण साथ व विश्वास हमें मिला था.
मध्यमवर्गीय परिवार होने के कारण हम हर परिस्थिति से झूझने के आदी थे। माँ - पिताजी ने हमारी शिक्षा के लिए पूर्ण त्याग किया ,हमें कभी कुछ कमी महसूस नहीं होने दी थी। हमने भी उनके विश्वास पर खरे उतरने की पूरी कोशिश की थी. दीदी प्रोफेसर बन गई व उनकी शादी उनके साथी प्रोफेसर से हो गई. मैने भी एम.ए, बीएड व पी.एच.डी करके आगे नौकरी करनी चाही परंतु मुझे वक्त ने ऐसा कोई मौका नहीं दिया. प्रणव के घर वालों ने एक दिन मुझे देखा और रिश्ता सामने से आया। प्रणव सरकारी नौकरी में थे। मैने माँ - पिताजी से मना किया, भूखी रही, पर उनके आगे एक न चली, माँ बोली -
’’ अच्छे लडके मुशकिल से मिलते है, सुन्दर शिक्षित लड़का है और क्या चाहिए। जो भी करना शादी के बाद करना " और बात वही खत्म हो गई. लोग पहले शादी को ही जीवन का अंत मानते थे. यहाँ आकर उन्होंने भी साथ छोड़ दिया।
हर लडकी की तरह आँखों में सतरंगी सपने लिए ससुराल की दहलीज पर कदम रखा। ससुराल की परिस्थिति ठीक ही थी। नए सफर की उंमगो में परिवार का साथ व प्यार महत्वपूर्ण होता है। माँ - पिताजी ने पहले ही कह दिया था. अपने संस्कारों का ध्यान रखना, किसी को शिकायत का मौका मत देना। सोचा था कि सबका दुलार मिलेगा, तो घर के साथ-साथ वह नौकरी भी कर सकती हैं। वह सब अच्छा करने की कोशिश करेगी; परंतु सपने आँख खुलने पर टूटते ही है. धीरे धीरे प्रणव के घर वालों का व्यवहार और विचार सामने आ ही गए।
प्रणव के परिवार वाले रूढ़िवादी व सर्कीण विचारों के थे. घर की बहू बाहर जाकर काम करे, उन्हें पसंद नहीं था. घर की परिस्थिति ठीक ठाक थी. जेठ, पिताजी के साथ दुकान पर बैठते थे. उस घर में सिर्फ प्रणव और मैं उच्च शिक्षित थे, बाकी सदस्यों ने डिग्री भी पूर्ण नही की थी. प्रणव एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर की नौकरी करते थे. उन्हें काम से फुरसत नहीं थी . प्रणव का स्वभाव गंभीर व अंर्तमुखी था. परिवार में उनकी दखलअंदाजी नहीं थी. वह परिवार के खिलाफ कुछ सुनना पसंद नहीं करते थे। हाथ की मेंहदी भी नहीं छूटी कि दूसरे दिन से घर की जिम्मेदारीयाँ कांधे पर आ गयीं. नवविवाहिता के कोमल सपने रसोई घर में सिमट कर रह गए.
जिठानी झगड़ालू प्रवृति की थी। जेठानी व सास की निसदिन खिट-पिट होती रहती थी, जिसमें पलक गेहूँ के घुन की तरह पिसती थी। सभी लोग आए दिन उसे अपना स्वत्व व दबाने की कोशिश करते थे। घर में सास की ज्यादा चलती थी. कब किस बात का गलत मतलब निकल जाए कह नही सकते थे. उनकी नजर में ज्यादा पढी-लिखी लडकी तेज होती है. ऐसे में पलक ने हमउम्र दोनों ननद को अपनी सहेली बनाने का असफल प्रयास किया। कहतें है जहाँ मन मे कॉम्प्लेक्स हो वहां मिठास नहीं हो सकती है। ईर्ष्या मति भ्रष्ट करती है. दोनों का प्रेम तो दूर; भाभी शब्द का संबोधन भी कभी मुख से नहीं निकला। दिन रात बहुत ईमानदारी से परिवार की जिम्मेदारी निभाई। किन्तु उसका मोल न मिला. घर वाले स्नेह देने में भी बहुत गरीब थे. उनके लिए मैं सिर्फ दूसरे घर की लड़की ही बनी रही. घर में भय की मातमी छाई रहती थी। न ज्यादा बात और न ही हंसी मजाक, किन्तु जिसे देखो मुझे सताने का मौका जरूर ढूंढता था, लेकिन प्रणव के सामने सब बहुत सीधे बनते थे । ऐसा द्विचरित्र मुखौटा पहली बार देखा था. जिसे देखो वह उस पर हावी होने का प्रयास करता था, पलक की हालत ऐसी थी कि काटो तो खून नहीं, किसी से खुलकर हँसने बोलने में भी डर लगताथा। चुप रहकर ही प्रतिकार किया, मैंने काम के बोझ तले अपने सपनों बिखरते देखा था.
क्रशम: - अगला भाग ..
..शशि पुरवार
Wednesday, July 29, 2020
जहान है तो जान है - कोरोना काल
जहान है तो जान है
भोर हुई मन बावरा, सुन पंछी का गान
गंध पत्र बांटे पवन धूप रचे प्रतिमान
प्रकृति का सौंदर्य आज अपने पूरे उन्माद पर है. प्रकृति की अनुपम छटा आज पुनः अपनी मधुरता का एहसास करा रही है. सुबह फिर सुहानी सी कलरव की मधुर आवाज से करवट बदलती है तो शाम की शीतल मधुर फुहार व हवा में ताजगी का अनोखा अहसास, जीवन में रंग भर रहा है. पावन गंगा निर्मल स्वच्छ होकर बह रही है, गंगा का पानी साफ हो गया है. धरती का अंग अंग प्रफुल्लित होकर खिल रहा है. गंगा में डॉल्फिन का दिखना, सड़कों पर जानवरों का विचरण करना, प्रकृति का सुखद संदेश है. भय मुक्त प्राणी मानव द्वारा तय की गई सीमा से बाहर स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं. ओजोन की परत पूर्णतः भर गई है प्रकृति के कितने विहंगम दृश्य हैं,उसका सौंदर्य अकल्पनीय है.
अभी तक हम प्रकृति में हो रहे विनाश के लिए चिंतित थे. लेकिन प्रकृति ने स्वयं के घावों को भर लिया है. पात- पात डाल- डाल खिल रहे हैं. कोरोना काल का सबसे ज्यादा सकारात्मक प्रभाव प्रकृति पर दिखा है, प्रकृति पुनः अपनी प्राकृतिक सौंदर्य की पराकाष्ठा को दिखा रही है. मैं आज तक उस पावन गंगा नदी को नहीं भूली हूँ. पटना में गंगा नदी के किनारे बचपन की अनेक यादें आज भी ताजा है. घर के पास बचपन में गंगा घाट पर बैठकर उसके पावन जल में डुबकी लगाना व प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को निहारकर नयनों में कैद करना तो वहीं प्रकृति की मार से विस्मित होना. जहां निर्मल पावन गंगा मानव के पाप धोते-धोते कलुषित हो गई थी. इस मानवी भूल व कुप्रथाओं का परिणाम हम सब ने देखा है.
देखा जाए तो कोरोना काल कुप्रथाओं को खत्म करने के लिए ही आया है. हम प्रकृति का दोहन करें, किंतु उसके विनाश का कारण नहीं बने. जहान है तो जान है. आज हमें प्रकृति से जीने की प्रेरणा लेनी चाहिए
एक वायरस प्रकृतिक साधनो व जीव जंतु का कुछ भी अहित नहीं कर सका, लेकिन मानव के कलुषित मन से जन्मा वायरस आज मानव के लिए ही प्राण खाती बन गया है. कोरोना से डर कर नहीं उसके साथ जीने के तरीके सीखने होंगे. जीने के अंदाज बदलने होंगे. प्राचीन संस्कृति की अच्छी बातें पुनः याद कर के नया अध्याय लिखना होगा. जीवन जीने के मायने व तरीके बदलेंगे, कुप्रथाएं समाप्त होंगी और होनी भी चाहिए आखिर कब तक हम कुप्रथाओं के बोझ तले जीवन का पहिया खीचेंगे. कुरीतियां कब तक अपने फन मारेगी. लाक डाउन ३ जान है, जहान है का मंत्र लेकर आया है
सरकार जीवन की गाड़ी धीरे-धीरे पटरी पर लाने का प्रयास सरकार कर रही है. रेड, ग्रीन, ऑरेंज जोन के साथ मानवीय चहल-पहल शुरू होगी. लेकिन यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम पूरी प्रकृति को ग्रीन जोन में परिवर्तित करें. कहतें है ना कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी. ऐसी स्थिति से बचने के लिए कदम कदम पर सावधानी जरूरी है. मैं तो यही कहूंगी कि जहान है जान है, दोनों एक दूसरे के पर्यायवाची हैं . जान के साथ जहान का भी ख्याल रखें तो जान अपने आप बची रहेगी. जीवन फिर पटरी पर आकर नए अंदाज में अपना नया अध्याय लिखेगा।
हम वायरस को खत्म तो नहीं कर सकते लेकिन उसकी चैन को जरूर तोड़ सकते हैं . उसकी चेन तोड़कर उसे अपने जीवन से समाप्त कर सकते हैं . हमें सावधानी के साथ जीवन का नए अध्याय की शुरुआत करनी होगी.
मुंह पर मास्क लगाकर, 2 गज की दूरी बनाकर, अनावश्यक होने वाले समारोह सोशल कार्यक्रम एवं दिखावे से दूर रहना होगा. भीड़ को इतिहास बनाना होगा. जीवन को सुचारु रूप से चलाना होगा .
आज मजदूर अपने अपने गांव जा रहे हैं. अगर दूसरे नजरिए से देखा जाए तो यह सुखद है. परिवार पूर्ण होंगे, गांव में भी रोजगार उत्पन्न होंगे. शहर व गांव दोनों गुलजार होंगे . गांव की सौंधी महक जो सिर्फ पन्नों में सिमट कर रह गई थी, अब पुनः अपना नया अध्याय लिखेगी
जीवन आज नया अध्याय लिखने के लिए तैयार है .हमें डरकर नहीं कोरोना को हराकर जीना है . प्रण करें कि स्वयं के साथ प्रकृति की भी रक्षा करेंगे तो भविष्य में कोई भी आपदा अपना कुअध्याय नहीं लिखेंगी . यदि हम कांटे बोलेंगे तो फिर फल कहां से पाएंगे इसीलिए तो कहती हूँ
कांटे चुभते पांव में, बोया पेड़ बबूल
मिली ना सुख की छांव फिर केवल चुभते शूल
आज कोरोना के सकारात्मक प्राकृतिक परिणाम को देखते हुए हमें स्वयं को सकारात्मक रखना होगा. अपने आने वाले जीवन के लिए खुद को तैयार करना होगा. जीवन अपना नया अध्याय लिखने के लिए तैयार है, लॉक डाउन धीरे धीरे ख़त्म हो जायेगा , यह लॉक डाउन हमें बहुत कुछ सीख देकर जा रहा है. सावधानी रखें, बुजुर्ग व बच्चों का विशेष ख्याल रखें. लॉक डाउन ३ को कोरोना का लॉक डाउन बनाये . हम पुनः खड़े होंगे, भारत कमजोर नहीं है ना ही यहाँ के लोग कमजोर है. हर परेशानी को काटना हमें आता है. इन पलों में स्वयं को मजबूत करें जिससे आने वाला समय सुखद पलों का साक्षी बने. अंत में यही कहना चाहूंगी-
आशा की रागिनी जीवन की शमशीर
सुख की चादर तानकर फिर सोती है पीर
शशि पुरवार
समीक्षा -- है न -
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
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मेहंदी लगे हाथ कर रहें हैं पिया का इंतजार सात फेरो संग माँगा है उम्र भर का साथ. यूँ मिलें फिर दो अजनबी जैसे नदी के दो किनारो का...
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हास्य - व्यंग्य लेखन में महिला व्यंग्यकार और पुरुष व्यंग्यकार का अंतर्विरोध - कमाल है ! जहां विरोध ही नही होना चाहिए वहां अ...
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साल नूतन आ गया है नव उमंगों को सजाने आस के उम्मीद के फिर बन रहें हैं नव ठिकाने भोर की पहली किरण भी आस मन में है जगाती एक कतरा धूप भी, ...