नमस्कार मित्रों , आज आपके लिए चित्र मय हाइकु -- शशि पुरवार
Sunday, July 5, 2015
Wednesday, July 1, 2015
याद की खुशबु हवा में
गॉँव के बीते दिनों की,
याद आती है मुझे
याद की खुशबु हवा में
गुदगुदाती है मुझे.
धूल से लिपटी सड़क पर
पाँव नंगे दौड़ना
वृक्ष पर लटके फलों को
मार कंकर तोडना
जीत के हासिल पलों को
दोस्तों से बाँटना
और माँ का प्यार की उन
झिड़कियों से डाँटना
झिड़कियों से डाँटना
गंध साँसों में घुली है
माटी बुलाती है मुझे
याद की खुशबु हवा में....
नित सुहानी थी सुबह
हम खेलते थे बाग़ में
हाथ में तितली पकड़ना
खिलखिलाना राग में
मस्त मौला उम्र थी
मासूम फितरत से भरी
भोर शबनम सी खिली
नम दूब पर जादूगरी.
फूल पत्ते और कलियाँ
फिर रिझाती है मुझे
याद की खुशबु हवा में ....
गॉँव के परिवेश बदले
आज साँसे तंग है
रौशनी के हर शहर
जहरी धुएँ के संग है
जहरी धुएँ के संग है
पत्थरों के आशियाँ है
शुष्क संबंधों भरे
द्वेष की चिंगारियाँ है
नेह खिलने से डरे
वक़्त की सरगोशियाँ
पल पल डराती है मुझे।
गॉँव के बीते दिनों की
याद आती है मुझे
याद की खुशबु हवा में
गुदगुदाती है मुझे।
-- शशि पुरवार
अनहद कृति -- काव्य उन्मेष उत्सव में इस गीत को सर्वोत्तम छंद काव्य रचना के लिए चुना गया है।
गॉँव के बीते दिनों की
याद आती है मुझे
याद की खुशबु हवा में
गुदगुदाती है मुझे।
-- शशि पुरवार
अनहद कृति -- काव्य उन्मेष उत्सव में इस गीत को सर्वोत्तम छंद काव्य रचना के लिए चुना गया है।
Friday, June 19, 2015
बाँसुरी अधरों छुई
बाँसुरी अधरों छुई
बंशी बजाना आ गया
बांसवन में गीत गूँजे, राग
अंतस छा गया
चाँदनी झरती वनों में
बाँस से लिपटी रही
लोकधुन के नग्म गाती
बाँसुरी, मन आग्रही
रात्रि की बेला सुहानी
मस्त मौसम भा गया.
गाँठ मन पर थी पड़ी, यह
बांस सा तन खोखला
बाँस की हर बस्तियाँ , फिर
रच रही थीं श्रृंखला
पॉंव धरती में धँसे
सोना हरा फलता गया .
लुप्त होती जा रही है
बाँस की अनुपम छटा
वन घनेरे हैं नहीं अब
धूप की बिखरी जटा
संतुलन बिगड़ा धरा का,
जेठ,सावन आ गया
----- शशि पुरवार
Thursday, May 14, 2015
उजाले पाक है अच्छाईयों में ....
एक ताजा गजल आपके लिए -
कदम बढ़ते रहे रुसवाइयों में
मिटा दिल का सुकूँ ऊँचाइयों में
जगत, नाते, सभी धन के सगे हैं
पराये हो रहे कठनाइयों में
मेरे दिल की व्यथा किसको सुनाऊँ
जलाया घर मेरा दंगाइयों में
दिलों में आग जब जलती घृणा की
दिखा है रंज फिर दो भाइयों में
बुरी संगत अंधेरों में धकेले
उजाले पाक हैं अच्छाइयों में
दिलों में है जवां दिलकश मुहब्बत
जुदा होकर मिले परछाइयों में
मिली जन्नत, किताबों में मुझे, अब
मजा आने लगा तन्हाईयों में
--- शशि पुरवार
Tuesday, May 5, 2015
नैन मटक्का ----
आजकल व्यंग विधा
अच्छा खासी प्रचलित हो गयी है. व्यंगकारों ने अपने व्यंग का ऐसा रायता फैलाया
है, कि बड़े बड़े व्यंगकार हक्के बक्के रह गए, अचानक इतने सारे व्यंगकारों का जन्म
कैसे हुआ, आपके इस रहस्य की गुत्थी हम सुलझाते है, इसका जन्मदाता फेसबुक है. जिसने
अनगिनत व्यंगकारों को अपनी गोदी में खिलाया, लिखना पढना सिखाया और उन्हें आसमान पर
बीठा दिया.अजी भेड़ चाल सब जगह कायम है तो फेसबुक पीछे कैसे रह सकता है.
यहाँ भी
हमारे देखते देखते नए व्यंगकारों की अच्छी खासी जमात खड़ी हो गयी है. जिसे देखों
मुर्गे की एक टांग लिए हर किसी की चिकोटी काट रहा है, कोई कविता को लेकर फिरके कस
रहा है कोई किसी के फैशन की धज्जियाँ उड़ा
है. कोई महिलाओं की तस्वीरें देखकर गिरा पड़ा हुआ है तो कोई पुरुष अपनी हर
अदा दिखाने के लिए रोज तस्वीरें ऐसे बदलतें हैं जैसे विश्व सुंदरी अपने अलग अलग पोज
दुनियाँ को दिखाना चाहती है, हमारे यहाँ
के चम्मच मोटे थुलथुले शरीर में भी सौन्दर्य की सुंदरी वाली परिकाष्ठा अपनी बैचेन
नजरों से देखतें हैं. ऐसे फीता काटने वालों की कोई कमी नहीं है.
हाल ही मै भारत
वर्ल्ड कप में हार गया तो सारा ठीकरा अनुष्का शर्मा के सर पर फोड़ा गया, आखिर यह
गुत्थी सुलझी ही नहीं कि बालकनी में बैठी हुई अनुष्का मैच कैसे हरा सकती है या फिर
हमारे क्रिकेटरों का ध्यान मैच से ज्यादा विराट कोहली और अनुष्का शर्मा पर लगा हुआ
था. वैसे भी जनता यदि इंसान को भगवान
बनाएगी तो यही हाल होगा. एक किस्सा और जहन में ध्यान आ रहा है, कुछ पुरुष ऐसे भी
है जिनकी उम्र अपने अंतिम पड़ाव पर है और
वह नजरें सेकने से लेकर महिलाओं पर
कुदृष्टि डालने से बाज नहीं आतें हैं, नाम नहीं लेना चाहूंगी, बुजुर्ग हस्तियाँ इस
तरह के कार्य करके युवा पीडी को क्या सन्देश दे रहीं है, जहाँ भरोसा कायम होना
चाहिए वहां ऐसी बचकानी हरकतें , आखिर पूजने वाला उन्हें क्या दर्जा प्रदान करेगा.
ऐसी हरकतों पर धज्जिया उडाना कोई हमारे कुएँ के मेढकों से सीखे.
यही हाल कमोवेश
लगभग फेसबुक पर भी मौजूद है. घर से दुनीया को जोड़ने वाली खिड़की पर सभी की नजर है,
यहाँ भी रायता फ़ैलाने वालों की कमी नहीं है. कौन किससे चोंच लड़ा रहा है, कौन किसका
अच्छा मित्र शुभचिंतक है, खोजी नजरें अपना कार्य करके आग लगाने का कार्य बखूबी
पूर्ण शिद्दत से निभातीं है, आखिर व्यंग और कटाक्ष में हमारे जैसा सिस्टम मिलना
मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हैं.
एक दिन ऐसे ही अचानक हमारे जादुई बक्से की खिड़की
खुली और सन्देश मिला क्या बात है आप बहुत बहुत सुन्दर हैं, हर तरफ छाई हुई हैं,
जहाँ देखिये छप रहीं है. आखिर इन जनाब का हाजमा किस बात से बिगड़ा, कुछ समझ नहीं
आया, ऐसे लोगों को कोई क्या जबाब दे सकता है. एक और हमारे भलेमानस शुभचिंतक है, जो कहते है
सतर्क रहो आगे बढ़ाने वाले ही आपको पटकनी देंगे, कुछ प्यारे सखा सहेली आगे बढ़ने से
इतना नाराज हो गए कि कमतर दिखाने का कार्य पूर्ण शिद्दत से करने लगे और व्यंग के
सारे रंग हमें लगाने लगे, उन्हें यह समझ ही नहीं आया इससे उनकी ही कलई खुली है
हम तो वहीँ अपनी कछुए वाली निति चले जा रहें हैं. क्यूंकि हमें तो रेस में कोई
रूचि ही नहीं है .
आजकल मानसून के बदमिजाज मौसम की तरह व्यंग बारिश कहीं भी शुरू
हो जाती है. व्यंग विधा में आये नए नए कई रचनाकारों ने बड़े बड़े रचनाकारों के कान
काटना शुरू कर दियें हैं. हरिशंकर परसाई जी के व्यंग नए कदमों को अपनी सिद्धहस्त
कला का ज्ञान प्रदान करतें हैं. किन्तु अचानक फेसबुकी स्टार बने हुए व्यंकारों ने
अपनी स्वयं की विधा को ईजाद कर लिया है, स्वयं को नामचीन व्यंगकार कहने वाले
फेसबूकी व्यंगकारों ने हर किसी को अपने लपेटे में लेना प्रारंभ कर दिया है. वे
वहां सर्वप्रथम संपादक को ढूंढते हैं , उनसे मित्रता बढ़ाते हैं और बार बार निवेदन
करके मित्रता की खातिर खुद को स्थापित करने का प्रयास करतें है, हाल ही में एक
किस्सा हुआ, हमने अभी अभी व्यंग विधा की गलियों में अपने पैर रखे, गाहे बगाहे
पाठकों ने स्वागत किया, तो जनाब सिखने के बहाने हमने अपनी कलम घिसना प्रारंभ कर दी.
हमारे प्रिय संपादकों को लेखन पसंद आया तो उन्होंने हमारी कलम को एक कुर्सी प्रदान
कर सम्मान से नवाज दिया, खैर हमने स्वयं को विधार्थी मान कर कुर्सी को गुरु बनाना
उचित समझा, किन्तु यह क्या फेसबुक के कई नए व्यंगकारों की नजर हमारी कुर्सी पर पड़ी
और उन्होंने चाट में चुपचाप मक्खन लगाना प्रारंभ कर दिया, हमारी रचना को भी छपवा
दीजिये, आप हमारी मित्र है, आपका बहुत नाम है ...आपको हर कोई छापता है वैगेरह वैगेरह ... मित्रता की खातिर हमने
उन्हें संपादकों के संपर्क की जानकारी प्रदान कर की, किन्तु वह सामग्री भेजने के
बाद भी प्रकाशित नहीं हुई . तो उन्ही नामचीन रचनाकारों के बीच हम अमित्र होने लगे
क्यूंकि हमारा यह दोष है कि उनकी रचना प्रकाशित नहीं हुई लो भाई नेकी भी की और कुएं
में धकलने की तैयारी भी हमारी ही की गयी है . हम तो यही कहंगे कर्म करते रहिये फल
की चिंता ना कीजिये . शुक्र है हमें कुर्सी का चस्का नहीं लगा और ना ही मक्खन की
डालियाँ हमें भगवान बना सकीं . हम तो वह पैदल है जो सिर्फचलना जानता है. बाकी के
दौंव पेंच खेलने के लिए अन्य लोग है तो यह कार्य उन्ही के जिम्मे छोड़तें हैं.
आसमान में चमक रहे फेसबूक के हर रंग का आनंद लेतें हैं .
------ शशि पुरवार
------ शशि पुरवार
Monday, April 27, 2015
प्रेम कहानी
१
दर्द की दास्ताँ
कह गयी कहानी
प्रेम रूमानी
२
एक ही धुन
भरनी है गागर
फूल सगुन
३
प्रेम कहानी
मुहब्बत ऐ ताज
पीर जुबानी
४
रूह में बसी
जवां है मोहब्बत
खामोश हंसी
५
धरा की गोद
श्वेत ताजमहल
प्रेम का स्त्रोत
६
ख़ामोश प्रेम
दफ़न है दास्ताँ
ताज की रूह
७
पाक दामन
अप्रतिम सौन्दर्य
प्रेम पावन
८
अमर कृति
हुस्न ऐ मोहब्बत
प्रेम सम्प्रति
९
ताजमहल
अनगिन रहस्य
यादें दफ़न
-
शशि।.
Saturday, April 25, 2015
जब मुकद्दर आजमाना आ गया
जब मुकद्दर आजमाना आ गया
वक़्त भी अपना सुहाना आ गया
झूमती हैं डालियाँ गुलशन सजे
ये समां भी कातिलाना आ गया
ठूंठ की इन बस्तियों को देखिये
शामे गम महफ़िल सजाना आ गया
आदमी जब राम से रावण बने
आग में खुद को जलाना आ गया
दर्द जब मन की हवेली के मरे
रफ्ता रफ्ता मुस्कुराना आ गया
भागते हैं लोग अंधी दौड़ में
मार औरों को गिराना आ गया
जालिमों के हाथ में हथियार हैं
खौफ़ो वहशत का ज़माना आ गया
मौत से अब डर नहीं लगता मुझे
जिंदगी को गुनगुनाना आ गया
-- शशि पुरवार
Tuesday, April 21, 2015
हाइकु -- सुख की ठाँव
सुख की ठाँव
जीवन के दो रंग
धूप औ छाँव
भ्रष्ट अमीरी
डोल गया ईमान
तंग गरीबी
शब्दो का मोल
बदली परिभाषा
थोथे है बोल
मन के काले
धूर्तता आवरण
सफेदपोश
--- शशि पुरवार
Monday, April 20, 2015
कागा -- मन के भोले
१
एक ही धुन
भरनी है गागर
फूल सगुन
२
दर्द की नदी
कहानी लिख रही
ये नई सदी
३
तन के काले
मूक सक्षम पक्षी
मुंडेर संभाले
४
कर्कश बोली
संकट पहँचाने
कागा की टोली
५
मूक है प्राणी
कौवा अभिमानी
कोई न सानी।
६
भोली सूरत
क्यों कागा बदनाम
छलिया नाम
७
कोयल साथी
धर्म कर्म के नाम
कागा खैराती
--- शशि पुरवार
आपके समक्ष एकसत्य घटना साझा करना चाहती हूँ कोई माने या ना माने एक सत्य को मैंने यह सत्य करीब से जिया है , इस निरीह प्राणी को स्नेह समझ आता है बोली समझ आती है। एक दो पोस्टिंग पर मैंने यह अनुभव लिया है , कौवा रोज सुबह रसोईघर की खिड़की पर बैठकर वही भोजन मेरे हाथों से खाता था जो बनाती थी , धीरे धीरे उसके भाव समझने की कोशिश की तब यह आश्चर्य था उसे जो भी चाहिए उस वस्तु पर हाथ रखो तो वही खाने के लिए कॉँव कॉँव करता था , जो नहीं चाहिए उस पर से नजर हटा दी । कोई और दे तो नहीं खाता था घर वाले हैरान थे वह मेरी बात समझ रहाहै जब वह शहर छोड़ा तब २ दिन कागा ने कुछ नहीं खाया , ट्रक में जैसे ही सामान भर गया, मैंने किसी का रोदन सुना , कोई आसपास नहीं दिखा , तब एक पेड़ पर वही कौवा बैठा था , उसके गले की हलचल और आवाज देखकर मै हैरान थी कि पक्षी रो रहा है। वहां खड़े लोगों ने यह आश्चर्य देखा है। सोचा जाते जाते पानी पिला देती हूँ पानी भर कर रखा वहउतरा किन्तु उसने पानी नहीं पिया। यह हृदय को छू गयी सत्य घटना है जिसने कागा के लिए मेरी सोच बदल दी। स्नेह सर्वोपरि है.
मेरे लिएयह रोमांचकारी था ,एक किस्सा और बताती हों मै जब मावा बनाती थी तब वह मावा विशेष रूप से पसंद करता था जब तक नहीं दो कॉँव कॉँव बंद ही नहीं होती थी। यह हमें ज्ञात है कि पशुपक्षी केलिए घी तेल हानिकारक होते हैं इसीलिए ऊँगली में जरा सा मावा रखकर खिड़की से बाहर हाथ रखती थी और वह इधर उधर ऐसे देखता था कि कोई देख तो नहींरहा और चुपचाप हाथ पर रखा मावा नजाकत से चोंच से उठाकर खाता था , , यहमूक प्राणी कोई भी हों स्नेह समझतें है और वफादारी भी निभातें है। ऐसे रोमांच जीवनपर्यन्त यादगार होतें है , मै हरजगह किसी न किसी मूक प्राणी से रिश्त बनाने का प्रयास जरूर करतीं हूँ।
Friday, April 10, 2015
आईना सत्य कहता है।
लघुकथा
आज आईने में जब खुद का अक्स देखा तो ज्ञात हुआ वक़्त कितना बदल गया है। जवां दमकते चहरे, काले बाल, दमकती त्वचा के स्थान पर श्वेत केश, अनुभव की उभरी लकीरें, उम्र की मार से कुछ ढीली होती त्वचा ने ले ली है, झुर्रियां अपने श्रम की कहानी बयां कर रही हैं। उम्र को धोखा देने वाली वस्तुओं पास मेज पर बैठी कह रही थी मुझे आजमा लो किन्तु मन आश्वस्त था इसीलिए इन्हे आजमाने का मन नहीं हुआ. चाहे लोग बूढ़ा बोले किन्तु आइना तो सत्य कहता है। मुझे आज भी आईने के दोनों और आत्मविश्वास से भरा, सुकून से लबरेज मुस्कुराता चेहरा ही नजर आ रहा है। उम्र बीती कहाँ है, वह तो आगे चलने के संकेत दे रही है। होसला अनुभव , आत्मविश्वास आज भी कदम बढ़ाने के लिए तैयार है।
शशि पुरवार
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