Friday, April 13, 2012

रफ्ता -रफ्ता.....

रफ्ता -रफ्ता यादो के बादल छाते है
हम तेरे शहर से दूर अब जाते है .
 
वक्त का सितम तो कुछ कम नहीं है
पर तेरी बेरूखी से हम तो मरे जाते है .

ज़माने में रुसवा न हो जाये प्यार मेरा
चुपके से नजरे झुका के निकल जाते है .

इन्तिहाँ है यह सच्चे प्यार व इंतजार की
तेरी खातिर हम झूठी मुस्कान दिखाते है .

सदैव खुश रहे तू यही दुआ है मेरी
तेरी खातिर हम खुदा के दर भी जाते है .

रफ्ता -रफ्ता .......!

:---शशि पुरवार

17 comments:

  1. बहुत ख़ूबसूरत रचना...

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है ।

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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. raftaa raftaa ham padhte jaate hein
    khud bhee yaadon mein kho jaate hein
    raftaa raftaa......

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  5. अनुपम भाव लिए बहुत सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट,...शशि जी...
    .
    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

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  6. वक्त का सितम कुछ भी नहीं ................क्या बात है अच्छा शेर मुबारक हो

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  7. तुस्सी ना जाओ.................

    इतनी प्यारी रचनाएँ कौन लिखेगा???
    :-)

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    1. sunil ji , rajendra ji anu ji , yashwant ji , ansaari ji dheerendra ji , nisha ji , verma ji ..........aap sabhi ka hardik abhar aapne bahumulye tipni se nawaja .rachna ko

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  8. waah !!! poori tarah samrpit,,,pyar ke liye bas jiye chale jaate hai'n....behad jazbaati rachna....

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  9. सुंदर भावों से सजी खूबसूरत रचना !

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