Monday, April 9, 2012

हरसिंगार.........2


   हरसिंगार
  जीने की आस
  बढ़ता उल्लास
  महकता जाये

  भीनी भीनी मोहक सुगंध
  रोम -रोम में समाये
 मदहोश हुआ मतवाला तन
बिन पिए नशा चढ़ता जाये
शैफाली के आगोश में लिपटा शमा
मधुशाला बनता जाये
पारिजात महकता जाये

संग हो जब सजन -सजनी
मन हरसिंगार
विश्वास -प्रेम के खिले फूल
जीवन में लाये बहार
प्यार का बढ़ता उन्माद
पल-पल शिउली सा
महकता जाये ...!

नयनो में समाया शीतल रूप
जीवन के पथ पर कड़कती धूप
न हारो मन के साथ
महकने की हो प्यास
कर्म ही है सुवास
मुस्काता उल्लास
जीवन हरसिंगार
महकता जाये ...!

:_---शशि पुरवार
 

19 comments:

  1. मह्मोहक.........सुगंधित................सम्पूर्ण श्रृंगार के साथ.............

    सुंदर प्रस्तुति.........

    सस्नेह.

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  2. बहुत ही बढ़िया।


    सादर

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  3. बहुत खुबसूरत रचना.
    शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामनाएं .

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  4. बहुत सुन्दर रचना...

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  5. हरसिंगार की खुशबू और महक बैचैन कर देती है कभी कभी ... इसका रूप श्रृंगार भी चार चाँद लगा देता है ... इस खूबसूरती को कैद किया है शब्दों में आपने ...

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  6. aap kaa harsingaar kabhee naa murjhaaye

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  7. हरसिंगार ने आपकी भी नींद हराम कर रखा है |बहुत -बहुत बधाई शशि जी |

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  8. हरसिंगार पर लिखी गयी आपकी यह रचना निश्चित रूप से प्रसंशनीय है .....!

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  9. बहुत सुन्दर रचना

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  10. सुरभित फूलों-सी महकती सुंदर कविता।

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  11. Beautiful. The starting of second and last paragraph is mind blowing...:)

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  12. फ़ैल गई चारों ओर खुशबू, हरसिंगार की....बेहद खुबसूरत रचना....

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  13. वाह! आपके ब्लॉग की इस् पोस्ट पर तो हरसिंगार की
    शानदार खुशबू बिखर रही है.महक से मन सराबोर हो
    गया है,शशि जी.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
    आपके अच्छे स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएँ.

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  14. इसकी भीनी भीनी खुशबु में हम भी खो गए ....

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