Monday, April 9, 2012
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समीक्षा -- है न -
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मह्मोहक.........सुगंधित................सम्पूर्ण श्रृंगार के साथ.............
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.........
सस्नेह.
Bahut Sunder Rachna....
ReplyDeleteबेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,सुन्दर रचना...
ReplyDeleteRECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
बहुत खुबसूरत रचना.
ReplyDeleteशीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामनाएं .
बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteहरसिंगार की खुशबू और महक बैचैन कर देती है कभी कभी ... इसका रूप श्रृंगार भी चार चाँद लगा देता है ... इस खूबसूरती को कैद किया है शब्दों में आपने ...
ReplyDeleteaap kaa harsingaar kabhee naa murjhaaye
ReplyDeleteहरसिंगार ने आपकी भी नींद हराम कर रखा है |बहुत -बहुत बधाई शशि जी |
ReplyDeleteहरसिंगार पर लिखी गयी आपकी यह रचना निश्चित रूप से प्रसंशनीय है .....!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसुरभित फूलों-सी महकती सुंदर कविता।
ReplyDeleteBeautiful. The starting of second and last paragraph is mind blowing...:)
ReplyDeleteफ़ैल गई चारों ओर खुशबू, हरसिंगार की....बेहद खुबसूरत रचना....
ReplyDeletekhubsurat ahsaas
ReplyDeleteवाह! आपके ब्लॉग की इस् पोस्ट पर तो हरसिंगार की
ReplyDeleteशानदार खुशबू बिखर रही है.महक से मन सराबोर हो
गया है,शशि जी.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
आपके अच्छे स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएँ.
sundar rachna
ReplyDeletebahut hi sunder poem..
ReplyDeleteइसकी भीनी भीनी खुशबु में हम भी खो गए ....
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