Wednesday, April 11, 2012
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समीक्षा -- है न -
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
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मेहंदी लगे हाथ कर रहें हैं पिया का इंतजार सात फेरो संग माँगा है उम्र भर का साथ. यूँ मिलें फिर दो अजनबी जैसे नदी के दो किनारो का...
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हास्य - व्यंग्य लेखन में महिला व्यंग्यकार और पुरुष व्यंग्यकार का अंतर्विरोध - कमाल है ! जहां विरोध ही नही होना चाहिए वहां अ...
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साल नूतन आ गया है नव उमंगों को सजाने आस के उम्मीद के फिर बन रहें हैं नव ठिकाने भोर की पहली किरण भी आस मन में है जगाती एक कतरा धूप भी, ...
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आँखों के आगे घूम गया वो दर्दनाक मंज़र............
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति..
सस्नेह.
रोंगटे खड़े करने वाली सशक्त प्रस्तुति....रचना के भाव अंतस को झकझोर देते हैं...बहुत सुन्दर
ReplyDeletewaah bahut hi sundar lagi post.
ReplyDeletemaut kaa saamnaa
ReplyDeleteruh kaa kaanpnaa
manvyathit.....
मार्मिक और संवेदनशील
ReplyDeleteमार्मिक और संवेदनशील
ReplyDeleteatank ki saya ka sajeev chitran .....bahut hi bhavpoorn prastuti ..badhai Shashi ji
ReplyDeleteसुन्दर सृजन, सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteदर्द भरी लेखनी
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना निशब्द कर दिया आपने आपकी सोंच और लेखनी को नमन
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteबेहतरीन भाव पुर्ण निशब्द करती रचना,बहुत सुंदर कोमल अभिव्यक्ति,लाजबाब प्रस्तुति,....
ReplyDeleteRECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
Bahut sundar, the ending is mind blowing. I wish I can borrow few phrases from here for a hindi poem.
ReplyDeleteमार्मिक रचना!
ReplyDeleteअनुपम भाव लिए मार्मिक सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट .
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
आतंक पर एक मार्मिक कविता |
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