Saturday, April 21, 2012

देव नहीं मै

 
देव नहीं मै
साधारण मानव
मन का साफ़
बांटता हूँ मुस्कान

चुप रहता
कांटो पर चलता
कर्म करता
फल की चिंता नहीं

मन की यात्रा
आत्ममंथन , स्वयं
अनुभव से
छल कपट से परे

कभी दरका
भीतर से चटका
स्वयं से लड़ा
फिर से उठ खड़ा

जो भी है देखा
अपना या पराया
स्वार्थ भरा
दिल तोड़े जमाना

आत्मा छलनी
खुदा से क्या मांगना
अन्तः रूदन
मन को न जाना

शांत हो मन
छोड़ो कल की बात
जी लो पलो को
नासमझ जमाना
खुद को संभालना

:--शशि पुरवार

10 comments:

  1. aapki ye kshanikaayen bahut uttam lagi jeevan ki sachchaai ko kholti abhivyakti bahut khoob.

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  2. चुप रहता
    कांटो पर चलता
    कर्म करता
    फल की चिंता नहीं ... :) Ossam....

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  3. बहुत ही बढ़िया।


    सादर

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  4. बहुत सुंदर............

    बहुत अच्छी रचना..................

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  5. बहुत्ब गहन सन्देश है आज और सिर्फ आज ही सत्य है ।

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  6. जिंदगी का सच .....वाह बहुत खूब

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  7. जीवन को क्या खूब दिखाया,जीवन को है गले लगाया....खूबसूरत रचना शशि जी...

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  8. सीख देती हुई अच्छी कविता।

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  9. Everybody feels like that at one point or other.Profound work Shashi...

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  10. .


    स्वयं को सम्हालना …
    और बिना विचलित हुए परिस्थितियों के अनुरूप निर्णय ले'कर
    चलते चलना ही समझदारी की बात है …

    अच्छी कविता के लिए साधुवाद !

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