Sunday, April 15, 2012
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समीक्षा -- है न -
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
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bahut hi sarthak rachna
ReplyDeleteमौजूदा दौर में यही स्थिति है....सही चित्रण शशि जी
ReplyDeletemai aur meraa
ReplyDeletehee jab hotaa hai sab kuchh
patan nischit...
जहां ‘मैं‘ है, वहां अहंकार है।
ReplyDeleteअच्छी पंक्तियां।
जब मैं दिखने लगता है तो तुम दिखना बंद हो जाता है.......
ReplyDeleteपतन तो होगा ही..........
बहुत सुंदर रचना शशि जी..
बधाई.
निश्चित ही अहंकार पतन का मार्ग है
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...शशि जी
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
मैं' और अहम' ..
ReplyDeleteअंतरद्वंद चित्रण
अहंकार - पतन का मार्ग का मार्ग है ....जिसने किया अहंकार ...उस-उस का हुआ विनाश ....सुंदर अभिव्यक्ति ..........Shashi ji ..
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
कभी कभी लगता है ये पतन का मार्ग भी इश्वर ही दिखाता है ...
ReplyDeleteमैं भी तभी तो आता है ...
जीवन में अपनाने की जरूरत है मंथन करने योग्य सार्थक पोस्ट आभार
ReplyDeleteवाह शशि जी,बहुत खूब...आपकी रचना.
ReplyDelete"जब मै था तब हरि नहीं अब हरि हैं मै नाहि"
बहुत ही गहन रचना आपकी कलम से...बधाई स्वीकारें :)))