शशि पुरवार
समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा
है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रंग बड़ी ख़ूबसूरती से समेटे हुए है
मुकेश कुमार सिन्हा बेहद संवेदनशील कवि है।वे विज्ञान के विद्यार्थी रहे है उन्होंने प्रेम के अनेक रूपों को गणितीय अंदाज़ में प्रस्तुत करके एक नया प्रयोग किया है.
प्रेम की कोमल संवेदनशीलता, प्रेम का अपवर्तनांक नामक कविता , प्रेम के हर त्रिकोण व समय को रेखांकित कर रही है।रेखाओं का गमन, रसायन विज्ञान का आकर्षण, अपरिवर्तित किरण या दो कप चाय की उष्णता में प्रेम का क्रिस्पी होना, ह्रदय की धड़कनो का बढ़ना .,, व चाय की पत्ती सा उबलता मन … सारे पैरामीटर को नज़रों के सम्मुख प्रस्तुत करता है.
मुकेश सिन्हा की कविताओं का कहन सहजता व सरलता से लब्ध है।यह अंदाज ह्रदय पाठकों के अंतस को छूने में सक्षम है।
“सुनो न “ कोमल शब्दों में पुकारती प्रेम आवाज , एक अंतहीन सफर पर ले जाती है। प्रेम कब कहाँ कैसे हो जाये कह नहीं सकते लेकिन उस प्रेम को विविध रूपों में अभिव्यक्त करके मुकेश ने प्रेम व विज्ञानं को का रासायनिक मिश्रण तैयार किया है जो अतुकांत कविता में नए आयाम स्थापित करता है।
प्रेम युद्ध ही तो है.। सुनो ना ये ही इंतज़ार ख़त्म नहीं होता। तुम देर से आए और मैं बन गया मील का पत्थर । सुनो ना ह्रदय के जज्बात को खगोलीय पिंडों से जोड़ना और उसके चक्कर लगाना बिम्बो का अप्रतिम उदाहरण है।कितबी बातों को प्रेमिका के साथ करने के बाद मुकेश ने उसे अपनी कविता के ढाला है जैसे उस प्रेम को हृदय तल से जी रहें हो।
सुन भी लिया करो, मेरी लोड स्टार सुन रही हो न। .।इतनी नज़ाकत से उलाहना व मिठास का रंग कविता में भरा है जैसे ह्रदय को चीर कर रख दिया है।
थिरकते तारों की आग़ोश में। बर्फ़ हो चुका सीना । मेरे तोंद को उंगली में दबाकर ,,, मोटे हो जैसे शब्दों का प्रयोग व बेशक मत मानो प्रेम है तुमसे । किसी फ़िल्मी चरित्र को चरितार्थ करता है स्टील आय लव हर .। प्रेम की पराकाष्ठा के विविध आयाम है।
देह की यात्रा भी नायिका के लिए गुलाब की पंखुड़ी भरा प्रेम प्रणय निवेदन, वहीँ नायिका का बातों को पूर्ण विराम लगाकर रोकना नजाकत से प्रेम की अभिव्यक्ति और कल्पना की पराकाष्ठा , एक कोमल दुनिया में प्रवेश करती है.
प्रेम की भूल भुलैया। चश्मे की डंडिया । प्रेम के विविध रूप अभिव्यक्ति की कोमल संवेदनाएं हैं।
यदि मुकेश को प्रेम का गणितीय गुरु कहे विस्मय न होगा। उन्होंने कविता में गणित, विज्ञान ,रसायन फिजिक्स ,जूलॉजी के अनगिनत शब्दों को कविता में डाल कर नया सुंदर प्रयोग किया है। जो अपने अलग बिम्ब प्रस्तुत करता है शायद ऐसा पहली बार हुआ है.
मुकेश कुमार सिंह की कविताएँ जितनी कोमल है उतनी ही विज्ञान की गणितीय एक्वेशन को सॉल्व करके नए आयाम भी स्थापित करती है। भाषा और शैली की सहज सरल अभिव्यक्ति पाठकों को बाँधने में सक्षम है
बोसा, पिघलता कोलेस्ट्रोल , एहसासों का आवेग , असहमति , ब्यूटी लाई इन बिहोल्डर्स आइज प्रेम की नयी परिभाषा को व्यक्त करती है.
पीड़ा और दर्द खींचकर भी उम्मीद का अभिमन्यु , स्मृतियों को जीवित करना । स्पर्श करके की प्रेम के भूगोल को समझना, स्किपिंग रोप से प्रेम का ग्रैंड ट्रंक रोड बनाना और प्रेम की उम्मीदों को अनंत तक ले जाने में कविताएँ सक्षम है।
गोल्ड फ्लैग किंग साइज़ की कश की बात हो या उम्रदराज़ प्रेम की अभिव्यक्ति। हमें सोचने पर विवश करती है आख़िर मुकेश कितनी बारीकियों से इन्हे अपनी रचनाओं में रेखांकित करते हैं। प्रेम उम्र से परे होता है और उसे बेहद ख़ूबसूरती से बयां किया गया है। मुकेश सिन्हा की एक खासियत है कि वे वे गहन कथित को हल्के फुल्के अंदाज़ में इस तरह कह जाते हैं कि वो हृदय में चुभते नहीं अपितु धड़कनों को धड़कने पर मजबूर करते है।
प्रेम रोग ,ब्लड प्रेशर गोली एम्लो डोपिंग ,कॉकटेल, एंजियोप्लास्टी, एंटीबायोटिक, पाईथोगोरस प्रमेय शब्दों का प्रयोग,टू हॉट टू हैंडल , समकोण त्रिभूज अनगिनत शब्द का कविता में प्रयोग सफलतापूर्वक नए आयाम और स्थापित करता है। यह हमारी कल्पना से परे हैं कि विज्ञान के ये शब्द हम कविता में प्रेम के प्रतीक के। रूप में उपयोग करेंगे। प्रेम और गणितीय अंदाज़ का प्रेमी मुकेश ही ऐसी कविता लिख सकतें हैं
पहला खंड प्रेम स्पेशल संग्रह “ है ना “ प्रेम कवितायेँ , बर्फ़ होती सवेदना की विस्फोट पंखुरी खुशबु पाठकों को बाँधने में सक्षम है। दूसरे खंड कोई अन्य कविताएँ विस्थापन उम्र के पड़ाव। पिता व बेटे की उम्मीदें अपने ख़ास अंदाज़ में बहुत कुछ कहती है। अमीबा हो गयी मरती हुई संवेदनाएं, प्रोटोप्लाज़्म के ढेर में सिमटी हुई ज़िंदगी, अनगिनत छोटी i कविताएँ बेहद ख़ूबसूरती से प्रेम के विविध रंगों को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रही है।
कुल मिलाकर संग्रह है ना बहुत ही कोमल प्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति है।उनके इस संग्रह में विज्ञान के समीकरण व शब्दावली का यह रूप बेहद पसंद आया। जहाँ बच्चे विज्ञान और गणित , रसायन को लेकर भयभीत होते हैं वहीं मुकेश की रचनाएँ बेहद प्यारे रंग घोलकर हमें आकर्षित करती है विज्ञान कठिन कहाँ है वह तो सहज प्रेम की अभिव्यक्ति है।
मुकेश कुमार सिन्हा को उनके संग्रह है न के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं। यूँ नये नये रंग अपनी रचनाओं में बिखेरते रहे। मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ है।
शशि पुरवार