जीवन के रुपहले पर्दे से
बिखरते रिश्ते ...!
पतला होता खून
बढती धन की भूख
अपने होते है पराये
सुकून भी न घर में आए
भाई को भाई न भाए
सिमटते रिश्ते
क्या ननद क्या भौजाई
प्यारी लागे सिर्फ कमाई
सैयां मन को भावे
सैयां मन को भावे
कांच से नाजुक धागे
बूढ़े माँ - बाप भी बोझ लागे
खोखले होते रिश्ते
अब कहाँ वो आंगन
जहाँ खड़कते चार बर्तन
गूंजे अब न किलकारी
सिर्फ बंटवारे की चिंगारी
स्वार्थी होता खून
टूटते बिखरते रिश्ते .
नादाँ ये न जाने
कैसे बीज है बोये
माँ के कलेजे के टुकड़े कर
कैसे चैन से सोये
आने वाला कल
खुद को दोहराता है
वक्त तब निकल जाता है
प्राणी तू अब क्यो रोये
पीछे छुटते रिश्ते .
बिखरते रिश्ते ...!
:------शशि पुरवार
कड़वी सच्चाई है....
ReplyDeleteजाने क्या हो गया है लोगों को....मगर जब तुम ना बदले.हम ना बदले....तो आखिर बदला कौन???
सस्नेह.
आजे दौर को देखते हुए बहुत सटीक बात कही है आपने।
ReplyDeleteसादर
वाह!!!!!बहुत सुंदर रचना,रिश्तों की बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteMY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
क्या कहने
ReplyDeleteबहुत सुंदर
अब कहां वो आंगन,
जहां खड़कते चार बर्तन,
गूंजे ना अब किलकारी,
बस बटवारे की चिंगारी,
स्वार्थी होता खून
टूटते बिखरते रिश्ते
आपके ब्लाग पर पहली दफा आना हुआ, इंदौर आपको पसंद है। मुझे भी
http://aadhasachonline.blogspot.in/2012/01/blog-post_15.html
देखिए शायद ठीक लगे
सच...
ReplyDeleteखूंटियों पर टंगी भूली बिसरी तस्वीर हो गए हैं रिश्ते!
आने वाला कल
ReplyDeleteखुद को दोहराता है
वक्त तब निकल जाता है
प्राणी तू अब क्यो रोये
पीछे छुटते रिश्ते.
बहुत सुंदर लगा
खोखले रिश्तों की कड़वी सच्चाई को लिखा है ... बदलाव के दौर में रिश्तों के मानी खो रहे हैं ... चिंतन है ये रचना ...
ReplyDeletesach me aaj rishton ki koi ahamiyat hi nahi rahi paisa ,lalach eershyaa bas yahi rah gaye hain jeevan me.
ReplyDeleteaaj ki sachchaai se roobru karati rachna bahut umda.
सच ही तो है न , आज कल यही तो हो रहा है , बहुत खूबी से आपने अपने भावो को शब्द दिए है
ReplyDeletemain aur meraa
ReplyDeletejab rishton se
badh kar ho jaaye
koi rishtaa kaise
saabut rahegaa
yathaarth likhaa hai aapne
badhaayee
आज के समाज की सोच की बहुत सार्थक और प्रभावी अभिव्यक्ति...आज पैसे के पीछे भागदौड में रिश्ते बहुत पीछे छूट गये...
ReplyDeleteआज बहुत जगह यही माहौल है ....
ReplyDeleteबस अपने आप को बचाए चलें ...
शुभकामनायें ...
समेटना भी हमें ही है इन बिखरते रिश्तों को,नीव भरनी है गहरी...
ReplyDeleteसटीक,सुंदर रचना। सिखाती है सहेजो रिश्तों को।
sundar rachna nishabd kar diya aapne ...
ReplyDeletebahut sundar ahsas hai sach me aaj risto ki garima kho gayi hai. papa-mammi
ReplyDeleteयूँ बिखरते रिश्ते एकल परिवार की देना हैं ......पर आज भी बहुत से संयुक्त परिवार यही पर बसते हैं .....आभार
ReplyDeleteकटु किन्तु सत्य सुन्दर पोस्ट।
ReplyDeleteरिश्ते बिखरते हैं तो सब कुछ बिखरता है ..आधे-अधूरे लोग.. अच्छा लिखा है..
ReplyDeleteसुंदर कविता………………आभार
ReplyDeleteरिश्तों की व्याख्या करती अच्छी कविता |शशि जी बधाई |
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
ReplyDeleteइस सुंदर कविता के लिए बधाई स्वीकारें....शशि जी
https://pravinbhaikikalam.blogspot.com/2020/03/joint-family.html?m=1
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