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Friday, December 21, 2012

ताल का जल


बढ़ रहा शैवाल बन
व्यापार काला
ताल का जल
आँखें मूंदे सो रहा

रक्त रंजित हो गए
सम्बन्ध सारे
फिर लहू जमने लगा है
आत्मा पर
सत्य का सूरज
कहीं गुम गया है

झोपडी में बैठ
जीवन रो रहा

हो गए ध्वंसित यहाँ के
तंतु सारे
जिस्म पर ढाँचा कोई
खिरने लगा है
चाँद लज्जा का
कहीं गुम हो गया

मान भी सम्मान
अपना खो रहा .

-- शशि पुरवार

24 comments:

  1. बेहद सुन्दर प्रस्तुति

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  2. "हो गए ध्वन्सित यहाँ के तंतु सारे
    जिस्म पर ढांचा कोई खिरने लगा है
    चाँद लज्जा का कहीं गम हो गया है
    मान भी सम्मान अपना खो रहा है"

    लाजवाब

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  3. बहुत खूब शशि जी |नववर्ष की शुभकामनाएँ |

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  4. "हो गए ध्वन्सित यहाँ के तंतु सारे
    जिस्म पर ढांचा कोई खिरने लगा है
    चाँद लज्जा का कहीं गम हो गया है
    मान भी सम्मान अपना खो रहा है"
    वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार

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  5. दुग्ध धवल सा बहता जो जल,
    आज ढूढ़ता एक वन निर्मल।

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  6. बहुत सही लिखा आपने

    सादर

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  7. सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

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  8. बेहतरीन,सार्थक अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,

    recent post: वजूद,

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  9. बहुत स्तरीय कविता है आपकी शशि जी
    फिर लहू जमने लगा है
    आत्मा पर
    सत्य का सूरज
    कहीं गुम हो गया है

    झोपड़ी में बैठ
    जीवन रो रहा है ..... आपका यह नवगीत मेरे लिये चावल के उस दाने की तरह है जिसे देखकर बर्तन के बाकी सारे चावलों का अंदाज़ा लगाया जा सकता है ...शेष फिर कभी यदि समय और मन ने कहा तो पढ़ने की कोशिश अवश्य करूँगा !

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  10. मैं यायावर हूँ मेरा कोई लिंक नहीं :)

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  11. सुन्दर ओ सार्थक रचना

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  12. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 26/12/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  13. भाव पूर्ण सुन्दर प्रस्तुत्ति !!

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  14. भाव पूर्ण गीत मन के धरातल को छूता हुआ------बधाई

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  15. सत्य है इस सत्य के सूरज को आज ग्रहण लग गया है ...
    प्रभावी नव-गीत ...

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  16. ♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
    ♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
    ♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥




    रक्त रंजित हो गए
    सम्बन्ध सारे
    फिर लहू जमने लगा है
    आत्मा पर
    सत्य का सूरज
    कहीं गुम गया है

    झोपडी में बैठ
    जीवन रो रहा
    वाऽह ! क्या बात है !
    आदरणीया शशि पुरवार जी
    आपने तो सुंदर नवगीत लिखा है ...
    अब तक मैं आपकी मुक्त छंद रचनाओं से ही परिचित था

    आपकी लेखनी से सदैव सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन हो …
    नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार

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