चला
बटोही कौन दिशा में
पथ
है यह अनजाना
जीवन
है दो दिन का मेला
कुछ
खोना कुछ पाना
तारीखों
पर लिखा गया है
कर्मों
का सब लेखा
पैरों
के छालों को रिसते
कब
किसने देखा
भूल
भुलैया की नगरी में
डूब गया मस्ताना
डूब गया मस्ताना
जीवन
है दो दिन का मेला
कुछ
खोना कुछ पाना
मृगतृष्णा
के गहरे बादल
हर पथ पर छितराए
हर पथ पर छितराए
संयम
का पानी ही मन की
रीती
प्यास बुझाए
प्रतिबंधो
के तट पर गाअो
खुशहाली
का गाना
जीवन
है दो दिन का मेला
कुछ
खोना कुछ पाना
सपनों
का विस्तार हुआ,
तब
बाँधो
मन में आशा
पतझर
का मौसम भी लिखता
किरणों
की परिभाषा
भाव
उंमगों के सागर में
गोते खूब लगाना
गोते खूब लगाना
जीवन
है दो दिन का मेला
कुछ
खोना कुछ पाना
शशि
पुरवार