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Tuesday, August 28, 2018

एक पहेली

१ 
सुबह सवेरे रोज जगाये
नयी ताजगी लेकर आये
दिन ढलते, शीतल रंग रूप
क्या सखि साजन ?
ना सखी  धूप 

साथ तुम्हारा सबसे प्यारा
दिल चाहे फिर मिलूँ दुबारा
हर पल बुझे  एक पहेली
क्या सखि साजन ?
नहीं सहेली। 
रोज,रात -दिन, साथ हमारा  
चाहे तुमको दिल बेचारा  
समय भगाता, मैं  वहीँ खड़ी 
क्या सखि साजन ?
ना सखी घडी। 
तुमसे ही संसार हमारा  
मिले नहीं तो दिल बेचारा
तुमको पाकर हुई धनवान  
क्या सखि साजन ?
ना सखी ज्ञान।
 ५

रोज सुबह चुपके से आना
हौले से फिर नींद उड़ाना
देख न पाती तुमको जी भर
क्या सखि साजन?
न सखी, दिनकर। 

बहुत दिनों में मिलने आया
जब आया तब मन हर्षाया
तन मन बरसा, पवित्र नेह
क्या सखि साजन ?
ना सखी मेह। 
दिनभर आँखें वह दिखलाए
तन मन उससे निज घबराए
रूप बिगाड़े, क्यों अचरज ?
क्या सखि साजन ?
न सखी सूरज। 

रातों को वह मिलने आए 
सोने ना दे, नींद उड़ाए 
बातें करते, बढे उन्माद
क्या सखि साजन 
ना सखी याद 
९ 
हर पल का है साथ हमारा 
बिना तुम्हारे नहीं गुजारा 
प्रिय दूर करे वह तन्हाई 
क्या सखि साजन ?
ना परछाई 
१० 
उजला प्यारा रूप तुम्हारा 
तुमको देखा दिल भी हारा 
पहना है उलफत का फंदा 
क्या सखि साजन ?
न सखी चंदा 
शशि पुरवार 



Friday, December 2, 2016

बूझो तो जाने। ..

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१ 
सुबह सवेरे रोज जगाये 
नयी ताजगी लेकर आये 
दिन ढलते, ढलता रंग रूप 
क्या सखि साजन ?
नहीं सखि  धूप
२ 

साथ तुम्हारा सबसे प्यारा 
दिल चाहे फिर मिलूँ दुबारा 
हर पल बूझू , एक पहेली 
क्या सखि साजन ?
नहीं सहेली।
३ 

रोज,रात -दिन, साथ हमारा  
तुमको देखें दिल बेचारा  
पल जब ठहरा, मैं, रही खड़ी 
क्या सखि साजन ?
ना सखी घडी।
४ 

तुमसे ही संसार हमारा  
ना मिले तो दिल बेचारा
पाकर तुमको हुई धनवान  
क्या सखि साजन ?
नहीं सखि ज्ञान।

शशि पुरवार 

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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