ब्लॉग सपने - जीवन के रंग अभिव्यक्ति के साथ, प्रेरक लेख , कहानियाँ , गीत, गजल , दोहे , छंद

Thursday, August 10, 2017

विकल हृदय


घुमड़ घुमड़ कर आये बदरा
मनभावन, बनी तसवीर.

घन घन घन, घनघोर घटाएँ
गाएँ मेघ - राग मल्हार
झूमे पादप, सर्द हवाएँ
खुशियों का करें इजहार।

चंचल बूँदों में भीगा, सुधियों  
से खेले मन - अबीर
घुमड़ घुमड़ कर आये बदरा ..!

अटे-पटे  से वृक्ष घनेरे
पात-पात  ढुलके पानी
दबी आग फिर लगी सुलगने
ज्यूँ  महकीं याद पुरानी  

शतदल के फूलों से गिरतें 
जल- कण, दिखतें हैं अधीर.
घुमड़ घुमड़ कर आये बदरा ..!

विकल ह्रदय से, प्रिय दिन बीता
याद तुम्हारी गरमाई
दादुर, झींगुर गान सुनाएँ
रात अँधेरी  गहराई.

मंद रौशनी में इक साया
गुने शब्द-शब्द तहरीर.
घुमड़ घुमड़ कर आये बदरा ..!
------- शशि पुरवार 
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