साल नूतन आ गया है
नव उमंगों को सजाने
आस के उम्मीद के फिर
बन रहें हैं नव ठिकाने
भोर की पहली किरण भी
आस मन में है जगाती
एक कतरा धूप भी, लिखने
लगी नित एक पाती
पोछ कर मन का अँधेरा
ढूँढ खुशियों के खजाने
साल नूतन आ गया है
नव उमंगों को सजाने
रात बीती, बात बीती
फिर कदम आगे बढ़ाना
छोड़कर बातें विगत की
लक्ष्य को तुम साध लाना
राह पथरीली भले ही
मंजिलों को फिर जगाने
साल नूतन आ गया है
नव उमंगों को सजाने
हर पनीली आँख के सब
स्वप्न पूरे हों हमेशा
काल किसको मात देगा
जिंदगी का ठेठ पेशा
वक़्त को ऐसे जगाना
गीत बन जाये ज़माने
साल नूतन आ गया है
नव उमंगों को सजाने
- शशि पुरवार