दूध मलाई जब डले स्वाद अमृत बन जाए
कुल्लड़ वाली चाय की, सोंधी सोंधी गंध
और इलाइची साथ में,पीने का आनंद
बांचे पाती प्रेम की, दिल में है तूफान
नेह निमंत्रण चाय का, महक रहे अरमान
कागज कलम दवात हो और साथ में चाय
स्फूर्ति तन मन भरे, भाव खिले मुस्काय
गप्पों का बाजार है मित्र मंडली संग
चाय पकौड़े के बिना, फीके सारे रंग
मौसम सैलानी हुए रोज बदलते गांव
बस्ती बस्ती चाय की, टपरी वाली छांव
सुबह सवेरे लान मे, बाँच रहे अखबार
गर्म चुस्की चाय की,खबरों का दरबार
मित्र,पड़ोसी,नाते सभी, जूही जैसी शाम
स्वागत करते चाय से, घर आए मेहमान
अदरक तुलसी लाइची,और पुदीना भाय
बिना दूध की चाय है,गुण, औषध बन जाय
घर घर से उड़ने लगी, सुबह चाय की गंध
उठो सवेरे काम पर,जीने की सौगंध
चाहे महलों की सुबह, या गरीब की शाम
सबके घर हँसकर मिली,चाय नहीं बदनाम
थक कर सुस्ताते पथिक, या बैठे मजदूर
हलक उतारी चाय ही, तंद्रा करती दूर
चाय न देखे जाति धर्म, देख रहा संसार
टपरी होटल हर गली, मिलती सागर पार
एक नशा यह चाय भी,तलब करें हलकान
अलग-अलग स्वाद फिर, फूँकें तन में जान
घी चुपड़ी, रोटी, नमक, और साथ में चाय
जीरावन छिड़को जरा, स्वाद, अमृत, मन भाय
कुहरे में लिपटी हुई छनकर आयी भोर
नुक्कड़ पर मचने लगा, गर्म चाय का शोर