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Sunday, March 6, 2022

महक उठी अँगनाई - shashi purwar







चम्पा चटकी इधर डाल पर
महक उठी अँगनाई
उषाकाल नित
धूप तिहारे चम्पा को सहलाए
पवन फागुनी लोरी गाकर
फिर ले रही बलाएँ

निंदिया आई अखियों में और
सपने भरे लुनाई .

श्वेत चाँद सी
पुष्पित चम्पा कल्पवृक्ष सी लागे
शैशव चलता ठुमक ठुमक कर
दिन तितली से भागे

नेह अरक में डूबी पैंजन -
बजे खूब शहनाई.

-शशि पुरवार

Monday, January 30, 2017

बेटी घर की शान


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माँ बाबा की लाडली, वह जीवन की शान 
ममता को होता सदा,  बेटी पर अभिमान। 

बेटी ही करती रही, घर- अँगना गुलजार
मन की शीतल चाँदनी, नैना तकते द्वार।

बेटी ही समझे सदा, अपनों की हर पीर 
दो कुनबों को जोड़ती, धरें ह्रदय में धीर     

प्रेम डोर अनमोल हैं, जलें ख़ुशी के दीप 
माता के आँचल पली, बेटी बनकर सीप। 
      --  शशि  पुरवार 

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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