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Sunday, May 21, 2017

गंध फूलों की




फिर चलो इस जिंदगी को 

गुनगुनाएँ  हम 
बैठ कर बातें करें औ
मुस्कुराएँ हम 

लान कुर्सी पर मधुर 
संगीत को सुन लें  
चाय की चुस्की भरे हर 
स्वाद को गुन लें   

प्रीत के निर्झर पलों को 
गुदगुदाएं हम 
फिर चलो इस जिंदगी को 
गुनगुनाएँ  हम
अनकही बातें कहें जो  
शेष हैं मन में 
गंध फूलों की समेटे 
आज दामन में.

नेह की, नम दूब से 
शबनम चुराएँ हम
फिर चलो इस जिंदगी को 
गुनगुनाएँ  हम

इस समय की धार में 
कुछ ख्वाब हैं छूटे 
उम्र भी छलने लगी, पर 
साज ना टूटे 

साँझ के शीतल पलों को 
जगमगाएँ  हम 
फिर चलो इस जिंदगी को 
गुनगुनाएँ  हम

जिंदगी की धूप में 
बेकल हुई  कलियाँ 
साथ तुम चलते रहे, यूँ  
कट गयीं गलियाँ 

एक मुट्ठी चाँदनी  में  
फिर नहाएँ  हम 
फिर चलो इस जिंदगी को 
गुनगुनाएँ  हम
- शशि पुरवार 

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