Showing posts with label बाल साहित्य. Show all posts
Showing posts with label बाल साहित्य. Show all posts

Monday, November 17, 2014

नन्ही परी

मेरे मायके में नन्ही परी भतीजी बनकर आई है। स्नेह आशीष के साथ नामकरण करना था, तो नामकरण कविता के रूप में किया। बुआ की तरफ से नन्ही निर्वी  के लिए स्नेहाशीष -
`


बदल गया हैं घर का मौसम , ऋतु खुशियों की है आई
नन्ही नन्ही ,प्यारी निर्वी , घर - अँगना  रौनक लाई
दादा - दादी ,नाना -नानी , भूले दुख के सब अंधियारे
बचपन के संग  डूब  गए , फैले  हैं  सुख के उजियारे
ताऊ- ताई, मौसा - मौसी ,सब दूर देश के वासी
बुआ -फूफा, सौम्या -अवनि ,बोलें हम भी है अभिलाषी
नटखट गुड़ियाँ ने छेड़ी  हैं , बजी सबके मन झंकार
वाट्स आप बाबा के जरिये , सभी  मिलकर बाँटें प्यार
दादी पम्मो , घर के सारे, नाते - रिश्ते, जीता है  बचपन 
किलकारी से गूँज रहा है देखो, अब अपना  घर - आँगन
-- शशि पुरवार

Saturday, May 31, 2014

दो बाल कवितायेँ --

 
१ 
चंदा मामा --
चंदा  मामा
तुम जल्दी से आ जाना
हाँ  प्यारे प्यारे सपने
मेरी इन आँखों में लाना
मामा  तुम जब आते हो
मन को  बहुत लुभाते हो
सभी मुझे , यह कहते है
कितना हमें सताते हो।

चंदा मामा 
तुम जल्दी से आ जाना। .......... !

मामा जब तुम आते हो 
तो ,माँ भी आ जाती है 
प्यारी प्यारी नई  कथा
हमको रोज सुनाती  है  

चंदा मामा ,
तुम जल्दी से आ जाना  ………।  

मामा जब तुम आते हो 
माँ लोरी भी गाती  है 
हाथो से थपकी देकर 
मीठी नींद सुलाती है 
वह प्यार से सुलाती है 
चंदा मामा , 
तुम  जल्दी  से आ आ जाना   . 

 --- शशि पुरवार

----------------------
२  नाना - नानी

नाना - नानी सबसे प्यारे
हमको  लाड लड़ाते है
जब भी हमसे मिलने आते
खेल खिलौने लाते है
 
रोज पार्क में सुबह सवेरे  
हमको सैर करते है 
खूब खेलते साथ हमारे 
हँसकर मन बहलाते  है
मम्मी -पापा के गुस्से से
हमको रोज  बचाते है
 
लड्डू ,पेड़े, रसगुल्ले भी
ये हमको दिलावाते है
हमसे गलती हो जाती जब
खूब हमें समझाते है

नयी नयी बातें सिखलाते
कथा -कहानियाँ सुनाते है
नयी नयी बाते सिखलाकर 
मन सबका  बहलाते है. 

--- शशि पुरवार
 
उदंती पत्रिका मई २०१४ में प्रकाशित मेरी दोनों रचनाये , सम्पादकीय टीम का आभार।

Thursday, November 7, 2013

बाल साहित्य

जीवन में कुछ बनना है ,तो
लिखना पढना जरुरी है

रोज नियम से अभ्यास करो
मन लगाकर ही पढना
गर्मी की छुट्टी आये ,तब
खूब धमाल करना
न मेहनत से जी चुराओ
ज्ञान लेना भी जरुरी है .


झूठ कभी मत बोलना , तुम
सच्चाई का थामो हाथ
नेक राहों पर चलने से ,बड़ो
का मिलता है ,आशीर्वाद 
अच्छी अच्छी बाते सीखो
अच्छी संगति  जरुरी है .

वृक्षों को  तुम मत काटना
हरियाली भी बचानी है
पेड़ों से ही हमको मिलता
अन्न ,दाना -पानी है
प्रदूषण को मिलकर मिटाओ
पेड  लगाना  भी जरुरी है

देश के तुम हो भावी प्रणेता
राहों में आगे बढ़ना
मुश्किलें कितनी भी आयें
हिम्मत से डटे रहना
भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना
चैनो -अमन भी जरुरी है
-------- शशि पुरवार
२८/ ९/ १३

नवम्बर २०१३ के बाल  साहित्य विशेषांक  के अंक में प्रकाशित मेरी रचना  -- पाखी कविता के अंतर्गत   अभिनव इमरोज पत्रिका , पंजाब

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

https://sapne-shashi.blogspot.com/

linkwith

http://sapne-shashi.blogspot.com