1
अच्छाई की राह पर, नित करना तुम काज
सच्चाई मिटटी नहीं, बनती है सरताज
बनती है सरताज, झूठ की परतें खोले
मिट जाए संताप, मौन सी सरगम डोले
कहती शशि यह सत्य, प्रेम से मिटती खाई
दंभ, झूठ का हास, चमकती है सच्चाई।
2
दलदल ऐसा झूठ का, राही धँसता जाय
एक बार जो फँस गया, निकल कभी ना पाय
निकल कभी ना पाय, मृषा के रास्ते खोटे
मति पर परदा डाल, लोभ के चशमें मोटे
कहाँ साँच को आँच, चित्त को देता संबल
कर देता बर्बाद, झूठ का ऐसा दलदल
एक बार जो फँस गया, निकल कभी ना पाय
निकल कभी ना पाय, मृषा के रास्ते खोटे
मति पर परदा डाल, लोभ के चशमें मोटे
कहाँ साँच को आँच, चित्त को देता संबल
कर देता बर्बाद, झूठ का ऐसा दलदल
--- शशि पुरवार



