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Friday, January 11, 2019









तन्हाई मुझको रास आने लगी है

याद की खशबू भी गहराने लगी है
पास होकर भी दूर हैं वह मुझसे
परछाई मुझे गले लगाने लगी है

शशि पुरवार

Monday, July 22, 2013

एक मुक्तक --


धरा खिलती है अंबर खिलता है
पौधे रोपिये जीवन मिलता है
उजियारा फैलता है कण कण में
धूप निकली जब सूरज जलता है .

- शशि पुरवार

जेन जी का फंडा सेक्स, ड्रिंक और ड्रग

    आज की युवा पीढ़ी कहती है - “ हम अपनी शर्तों पर जीना चाहते हैं समय बहुत बदल गया है   ….  हमारे माता पिता हमें हर वक़्त रोक टोक करते हैं, क्...

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