यूँ न मुझसे रूठ जाओ मेरी जाँ निकल न जाये
तेरे इश्क का जखीरा मेरा दिल पिघल न जाये
मेरी नज्म में गड़े है तेरे प्यार के कसीदे
मै जुबाँ पे कैसे लाऊं कहीं राज खुल न जाये
मेरी खिड़की से निकलता मेरा चाँद सबसे प्यारा
न झुकाओ तुम निगाहे कहीं रात ढल न जाये
तेरी आबरू पे कोई कहीं दाग लग न पाये
मै अधर को बंद कर लूं कहीं अल निकल न जाये
ये तो शेर जिंदगी के मेरी साँस से जुड़े है
मेरे इश्क की कहानी ये जुबाँ फिसल न जाये
ये सवाल है जहाँ से तूने कौम क्यूँ बनायीं
ये तो जग बड़ा है जालिम कहीं खंग चल न जाये
---- शशि पुरवार
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
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