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Monday, September 16, 2013

मन के भाव। ….




मन के भाव
शांत उपवन में 
पाखी से उड़े .

उड़े है  पंछी
नया जहाँ बसाने
नीड़ है खाली।

मन की पीर
शब्दों की अंगीठी से
जन्मे है गीत।

सुख औ दुःख
नदी के दो किनारे
खुली किताब।

मै कासे कहूँ
सुलगते है भाव
सूखती जड़े।

मोहे न जाने
मन का सांवरिया
खुली पलकें

मन चंचल
बदलता मौसम
सर्द रातों में।

मन उजला
रंगों की चित्रकारी
कलम लिखे।

 
-- शशि पुरवार


9 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (17-09-2013) मंगलवारीय चर्चा 1371---तेरे द्वार खडा भगवान , भगत... में "मयंक का कोना" पर भी है!
    हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. मन की मन में,
    नित जीवन में,
    हलचल, प्रतिपल,
    गति अँखियन में।

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  3. मन की बातें
    चित्रित हाइकु में
    मनोहारी हैं ।

    ReplyDelete
  4. मन की पीर
    शब्दों की अंगीठी से
    जन्मे है गीत ...
    मन में पीर हो तो शब्द स्वतः ही जन्म ले लेते हैं ...
    भावपूर्ण हाइकू ...

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  5. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  6. सुंदर हाइकू
    शुभकामनाएं!

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  7. सभी हाइकु बहुत भावपूर्ण, बधाई.

    ReplyDelete

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