जंग दौलत की छिड़ी है रार क्या
आदमी की आज है दरकार क्या १
जालसाजी के घनेरे मेघ है
हो गया जीवन सभी बेकार क्या२
लुट रही है राह में हर नार क्यों
झुक रहा है शर्म से संसार क्या ३
छल रहे है दोस्ती की आड़ में
अब भरोसे का नहीं किरदार क्या ४ गुम हुआ साया भी अपना छोड़कर
हो रहा जीना भी अब दुश्वार क्या ५
धुंध आँखों से छटी जब प्रेम की
घात अपनों का दिखा गद्दार क्या६
इन निगाहों में खलिस थी पल रही
आइना भी खोलता है सार क्या ७
इन निगाहों में खलिस थी पल रही
आइना भी खोलता है सार क्या ७
खिड़कियाँ तो बंद हिय की खोलिए
माफ़ अपनों को करो ,तकरार क्या८
धड़कने क्यों हो रही है अजनबी
रंग जीवन के सभी उपहार क्या ९
बाँट लो खुशियाँ सभी जीवन है कम
ख्वाब अँखियों के करे साकार क्या १०
"शशि " कहे तुम रंज अपने भूलकर
बढ़ चलो राहों में अपनी ,वार क्या ११
----------- शशि पुरवार
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबाँट लो खुशियाँ सभी जीवन है कम
ख्वाब अँखियों के करे साकार क्या १०
"शशि " कहे तुम रंज अपने भूलकर
बढ़ चलो राहों में अपनी ,वार क्या ११
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल ....
ReplyDeleteअनु
खिड़कियाँ तो बंद हिय की खोलिए
ReplyDeleteमाफ़ अपनों को करो ,तकरार क्या८ --vaah bahut sundar gazal
uttam rachna. ek sujhav 'rahon men' ke sthan par 'rahon pe' hona chaiye. rah men gitee-mitee / rah par kadam ya raah par yatree... men = ke andar, par/pe = ke oopar. kripaya anyatha n lengee.
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल ..
ReplyDeleteऔर क्या ,बेकार की बातें छोड़ कर ऐसा कुछ करें जिससे जीवन सँवरे -अच्छा संदेश पिरोया है शशि !
ReplyDeleteसुंदर लेखनी आपकी , शशि जी धन्यवाद !
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waah waah waah!!!!!!!!!
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज मंगलवार को चुरा ली गई है- चर्चा मंच पर ।। आइये हमें खरी खोटी सुनाइए --
ReplyDeleteउत्कृष्ट!
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना !
ReplyDeleteक्या कहते हैं ये सपने ?
Happy Birth Day "Taaru "
संग्रह योग्य ....
ReplyDeleteइन निगाहों में खलिस थी पल रही
ReplyDeleteआइना भी खोलता है सार क्या ७
...वाह...लाज़वाब ग़ज़ल..सभी अशआर बहुत उम्दा...
बहुत ही खूब निर्बहन किया है गज़ल का आपने
ReplyDeleteबधाई आपको।
Behtreen Panktiyan
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट खामोश भावनाओं की ऊपज पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है। शुभ रात्रि।
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