गम की हाला - नवगीत
होठों पर मुस्कान सजाकर
हमने, ग़म की
पी है हाला
ख्वाबों की बदली परिभाषा
जब अपनों को लड़ते देखा
लड़की होने का ग़म ,उनकी
आँखों में है पलते देखा
छोटे भ्राता के आने पर
फिर ममता का
छलका प्याला
रातों रात बना है छोटा
सबकी आँखों का तारा
झोली भर-भर मिली दुआये
भूल गया घर हमको सारा
छोटे के
लालन - पालन में
रंग भरे सपनो की माला
बेटे - बेटी के अंतर को
कई बार है हमने देखा
बिन मांगे,बेटा सब पाये
बेटी मांगे, तब है लेखा
आशाओं का
गला घोटकर
अधरों , लगा लिया है ताला
-- शशि पुरवार
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
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ReplyDeleteवाह वाह..... गम्भीर बात आपने सहज ही कह दी....बस यही सोच समाज की बदलनी चाहिए ....बधाई
ReplyDeleteमार्मिक व्यथा।
ReplyDeleteअच्छी रचना।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार को '
ReplyDeleteभोले-शंकर आओ-आओ"; चर्चा मंच 1892
पर भी है ।
आज 19/ फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति…
सुंदर अतिसुंदर रचना।
ReplyDeleteबेटी बेटे के इस अंतर को ख़तम करना जरूरी है अब ...
ReplyDeleteअच्छा नवगीत है ...