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Monday, February 16, 2015

गम की हाला - नवगीत



होठों पर मुस्कान सजाकर
हमने, ग़म की
पी है हाला

ख्वाबों की बदली परिभाषा
जब अपनों को लड़ते देखा
लड़की होने का ग़म ,उनकी
आँखों में है पलते देखा
छोटे भ्राता के आने पर
फिर ममता का
छलका प्याला 

रातों रात बना है छोटा
सबकी आँखों का तारा
झोली भर-भर मिली दुआये
भूल गया घर हमको सारा
छोटे के
लालन - पालन में
रंग भरे सपनो की माला

बेटे - बेटी के अंतर को
कई बार है हमने देखा
बिन मांगे,बेटा सब पाये
बेटी मांगे, तब है लेखा
आशाओं का
गला घोटकर
अधरों , लगा लिया है ताला
-- शशि पुरवार

9 comments:

  1. सुन्दर अर्थ और प्रेरणा से सजा गीत

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  2. वाह वाह..... गम्भीर बात आपने सहज ही कह दी....बस यही सोच समाज की बदलनी चाहिए ....बधाई

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार को '
    भोले-शंकर आओ-आओ"; चर्चा मंच 1892
    पर भी है ।

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  4. आज 19/ फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति…

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  6. सुंदर अतिसुंदर रचना।

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  7. बेटी बेटे के इस अंतर को ख़तम करना जरूरी है अब ...
    अच्छा नवगीत है ...

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