shashi purwar writer

Thursday, November 28, 2019

गाअो खुशहाली का गाना




चला बटोही कौन दिशा में
पथ है यह अनजाना
जीवन है दो दिन का मेला
कुछ खोना कुछ पाना

तारीखों पर लिखा गया है
कर्मों का सब लेखा
पैरों के छालों को रिसते
कब किसने देखा

भूल भुलैया की नगरी में
डूब गया मस्ताना
जीवन है दो दिन का मेला
कुछ खोना कुछ पाना

मृगतृष्णा के गहरे बादल
हर पथ पर छितराए
संयम का पानी ही मन की
रीती प्यास बुझाए

प्रतिबंधो के तट पर गाअो
खुशहाली का गाना
जीवन है दो दिन का मेला
कुछ खोना कुछ पाना

सपनों का विस्तार हुआ, तब
बाँधो मन में आशा
पतझर का मौसम भी लिखता
किरणों की परिभाषा

भाव उंमगों के सागर में
गोते खूब लगाना
जीवन है दो दिन का मेला
कुछ खोना कुछ पाना


शशि पुरवार 

7 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (29-11-2019 ) को "छत्रप आये पास" (चर्चा अंक 3534) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    -अनीता लागुरी 'अनु'

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  2. "जीवन है दो दिन का मेला कुछ खोना कुछ पाना"

    बहुत खूब

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  4. बेहतरीन सृजन आदरणीया
    सादर

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  5. बहुत सरस सुंदर काव्यात्मक सृजन।

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  6. बेहतरीन ख्यालों को समेटे खूबसूरत रचना।

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