1
जीवन में कुछ बनना है ,तो
अच्छी अच्छी बाते सीखो
अच्छी संगति जरुरी है .
वृक्षों को तुम मत काटना
हरियाली भी बचानी है
पेड़ों से ही हमको मिलता
अन्न ,दाना -पानी है
प्रदूषण को मिलकर मिटाओ
पेड लगाना भी जरुरी है
देश के तुम हो भावी प्रणेता
देश के तुम हो भावी प्रणेता
राहों में आगे बढ़ना
मुश्किलें कितनी भी आयें
हिम्मत से डटे रहना
भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना
चैनो -अमन भी जरुरी है
-------- शशि पुरवार
२८/ ९/ १३
------------------
१
चंदा मामा --
चंदा मामा
तुम जल्दी से आ जाना
हाँ प्यारे प्यारे सपने
मेरी इन आँखों में लाना
मामा तुम जब आते हो
मन को बहुत लुभाते हो
दीदी - भैया मुझे कहे
सब मुझे , यही कहते है
हमें कितना सताते हो।
चंदा मामा
तुम जल्दी से आ जाना। .......... !
मामा जब तुम आते हो
तो ,माँ भी आ जाती है
प्यारी प्यारी कहानियाँ
वह रात में सुनाती है
चंदा मामा ,
तुम जल्दी से आ जाना ………।
मामा जब तुम आते हो
माँ लोरी भी सुनाती है
खूब खेलती औ हँसती
फिर धीरे से कहती है
"लल्ला , अब तुम सो जाना "
चंदा मामा ,
तुम जल्दी से यहाँ आना
फिर वापिस मत जाना।
--- शशि पुरवार
----------------------
२ नाना - नानी
नाना - नानी कितने प्यारे
नाना - नानी कितने प्यारे
हमें खूब लाड लड़ाते है
जब भी हमसे मिलने आते
वह खेल खिलौने लाते है
हमें रोज शाम बगीचे में
हमें रोज शाम बगीचे में
टहलाने भी ले जाते है
रोज हमारे साथ खेलते
जमकर बातें करते है
मम्मी -पापा की डाँट से
हमें चुपके से बचाते है
लड्डू पेड़े और रसगुल्ले
गब्ब्बारे भी दिलावाते है
हमसे गलती हो जाने पर
बड़े प्यार से समझाते है
नयी नयी बातें सिखलाते
कथा -कहानियाँ सुनाते है
नाना - नानी सबसे प्यारे
हमें खूब लाड लड़ाते है।
--- शशि पुरवार
१३ / 12 / 13
३
सुबह सुबह -
कुकड़ू कु कुकड़ू कू
सुबह सुबह मुर्गा बोला
ढलती रात, निकलता दिन
मेरामन भी है डोला जब भोर को ठंडी हवा
पत्तों से टकराती है
चिड़िया भी दाना चुगने
झट से नीचे आती है
सूरज को निकलते देख
कौवा काँव काँव बोला
सुबह सुहानी धूप खिली
तो पंछी भी इतराये
बागों में कलियाँ झूमे
फिर ,भँवरे भी मँडराये
शुरू हुई चहल-पहल , फिर
तोता राम राम बोला।
-- शशि पुरवार
१३/१२/१३
------------
४
चींटी रानी
चींटी रानी बहुत सयानी
नहीं श्रम से घबराती है
अपने कद से ऊँचा भोजन
बहुत जतन से ले जाती है
वह मिलजुल के काम करे
अनुसाशन सिखलाती है
चीटियों के संग उनकी
ताकत भी दिखलाती है
नहीं रूकती नहीं हारती
सिर्फ कर्म करती जाती है
फल की चिंता छोड़कर ,बस
मंजिल के पथ पर जाती है
-- शशि पुरवार
सुबह सुबह -
कुकड़ू कु कुकड़ू कू
सुबह सुबह मुर्गा बोला
ढलती रात, निकलता दिन
मेरामन भी है डोला जब भोर को ठंडी हवा
पत्तों से टकराती है
चिड़िया भी दाना चुगने
झट से नीचे आती है
सूरज को निकलते देख
कौवा काँव काँव बोला
सुबह सुहानी धूप खिली
तो पंछी भी इतराये
बागों में कलियाँ झूमे
फिर ,भँवरे भी मँडराये
शुरू हुई चहल-पहल , फिर
तोता राम राम बोला।
-- शशि पुरवार
१३/१२/१३
------------
४
चींटी रानी
चींटी रानी बहुत सयानी
नहीं श्रम से घबराती है
अपने कद से ऊँचा भोजन
बहुत जतन से ले जाती है
वह मिलजुल के काम करे
अनुसाशन सिखलाती है
चीटियों के संग उनकी
ताकत भी दिखलाती है
नहीं रूकती नहीं हारती
सिर्फ कर्म करती जाती है
फल की चिंता छोड़कर ,बस
मंजिल के पथ पर जाती है
-- शशि पुरवार
very nice
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बाल रचनाएँ।
ReplyDeleteइतने गहरे विचार बहुत खूब
ReplyDeleteमैंने हाल ही में ब्लॉगर ज्वाइन किया है आपसे निवेदन करना चाहती हूं कि आप मेरे पोस्ट को पढ़े और मुझे सही दिशा निर्दश दे
https://shrikrishna444.blogspot.com/?m=1