एक ताजा गजल आपके लिए -
कदम बढ़ते रहे रुसवाइयों में
मिटा दिल का सुकूँ ऊँचाइयों में
जगत, नाते, सभी धन के सगे हैं
पराये हो रहे कठनाइयों में
मेरे दिल की व्यथा किसको सुनाऊँ
जलाया घर मेरा दंगाइयों में
दिलों में आग जब जलती घृणा की
दिखा है रंज फिर दो भाइयों में
बुरी संगत अंधेरों में धकेले
उजाले पाक हैं अच्छाइयों में
दिलों में है जवां दिलकश मुहब्बत
जुदा होकर मिले परछाइयों में
मिली जन्नत, किताबों में मुझे, अब
मजा आने लगा तन्हाईयों में
--- शशि पुरवार



















