ब्लॉग सपने शशि में आप पढ़ेंगे जीवन के रंग अभिव्यक्ति के संग.. प्रेरक कहानियाँ, लेख और साहित्यिक रचनाओं का संसार ।आपका अपना संसार ।
ब्लॉग सपने - जीवन के रंग अभिव्यक्ति के साथ, प्रेरक लेख , कहानियाँ , गीत, गजल , दोहे , छंद
Tuesday, July 28, 2015
Sunday, July 5, 2015
जिंदगी चित्र
नमस्कार मित्रों , आज आपके लिए चित्र मय हाइकु -- शशि पुरवार


Wednesday, July 1, 2015
याद की खुशबु हवा में
गॉँव के बीते दिनों की,
याद आती है मुझे
याद की खुशबु हवा में
गुदगुदाती है मुझे.
धूल से लिपटी सड़क पर
पाँव नंगे दौड़ना
वृक्ष पर लटके फलों को
मार कंकर तोडना
जीत के हासिल पलों को
दोस्तों से बाँटना
और माँ का प्यार की उन
झिड़कियों से डाँटना
झिड़कियों से डाँटना
गंध साँसों में घुली है
माटी बुलाती है मुझे
याद की खुशबु हवा में....
नित सुहानी थी सुबह
हम खेलते थे बाग़ में
हाथ में तितली पकड़ना
खिलखिलाना राग में
मस्त मौला उम्र थी
मासूम फितरत से भरी
भोर शबनम सी खिली
नम दूब पर जादूगरी.
फूल पत्ते और कलियाँ
फिर रिझाती है मुझे
याद की खुशबु हवा में ....
गॉँव के परिवेश बदले
आज साँसे तंग है
रौशनी के हर शहर
जहरी धुएँ के संग है
जहरी धुएँ के संग है
पत्थरों के आशियाँ है
शुष्क संबंधों भरे
द्वेष की चिंगारियाँ है
नेह खिलने से डरे
वक़्त की सरगोशियाँ
पल पल डराती है मुझे।
गॉँव के बीते दिनों की
याद आती है मुझे
याद की खुशबु हवा में
गुदगुदाती है मुझे।
-- शशि पुरवार
अनहद कृति -- काव्य उन्मेष उत्सव में इस गीत को सर्वोत्तम छंद काव्य रचना के लिए चुना गया है।
गॉँव के बीते दिनों की
याद आती है मुझे
याद की खुशबु हवा में
गुदगुदाती है मुझे।
-- शशि पुरवार
अनहद कृति -- काव्य उन्मेष उत्सव में इस गीत को सर्वोत्तम छंद काव्य रचना के लिए चुना गया है।
Friday, June 19, 2015
बाँसुरी अधरों छुई
बाँसुरी अधरों छुई
बंशी बजाना आ गया
बांसवन में गीत गूँजे, राग
अंतस छा गया
चाँदनी झरती वनों में
बाँस से लिपटी रही
लोकधुन के नग्म गाती
बाँसुरी, मन आग्रही
रात्रि की बेला सुहानी
मस्त मौसम भा गया.
गाँठ मन पर थी पड़ी, यह
बांस सा तन खोखला
बाँस की हर बस्तियाँ , फिर
रच रही थीं श्रृंखला
पॉंव धरती में धँसे
सोना हरा फलता गया .
लुप्त होती जा रही है
बाँस की अनुपम छटा
वन घनेरे हैं नहीं अब
धूप की बिखरी जटा
संतुलन बिगड़ा धरा का,
जेठ,सावन आ गया
----- शशि पुरवार

Thursday, May 14, 2015
उजाले पाक है अच्छाईयों में ....
एक ताजा गजल आपके लिए -
कदम बढ़ते रहे रुसवाइयों में
मिटा दिल का सुकूँ ऊँचाइयों में
जगत, नाते, सभी धन के सगे हैं
पराये हो रहे कठनाइयों में
मेरे दिल की व्यथा किसको सुनाऊँ
जलाया घर मेरा दंगाइयों में
दिलों में आग जब जलती घृणा की
दिखा है रंज फिर दो भाइयों में
बुरी संगत अंधेरों में धकेले
उजाले पाक हैं अच्छाइयों में
दिलों में है जवां दिलकश मुहब्बत
जुदा होकर मिले परछाइयों में
मिली जन्नत, किताबों में मुझे, अब
मजा आने लगा तन्हाईयों में
--- शशि पुरवार
Monday, April 27, 2015
प्रेम कहानी
१
दर्द की दास्ताँ
कह गयी कहानी
प्रेम रूमानी
२
एक ही धुन
भरनी है गागर
फूल सगुन
३
प्रेम कहानी
मुहब्बत ऐ ताज
पीर जुबानी
४
रूह में बसी
जवां है मोहब्बत
खामोश हंसी
५
धरा की गोद
श्वेत ताजमहल
प्रेम का स्त्रोत
६
ख़ामोश प्रेम
दफ़न है दास्ताँ
ताज की रूह
७
पाक दामन
अप्रतिम सौन्दर्य
प्रेम पावन
८
अमर कृति
हुस्न ऐ मोहब्बत
प्रेम सम्प्रति
९
ताजमहल
अनगिन रहस्य
यादें दफ़न
-
शशि।.
Saturday, April 25, 2015
जब मुकद्दर आजमाना आ गया
जब मुकद्दर आजमाना आ गया
वक़्त भी अपना सुहाना आ गया
झूमती हैं डालियाँ गुलशन सजे
ये समां भी कातिलाना आ गया
ठूंठ की इन बस्तियों को देखिये
शामे गम महफ़िल सजाना आ गया
आदमी जब राम से रावण बने
आग में खुद को जलाना आ गया
दर्द जब मन की हवेली के मरे
रफ्ता रफ्ता मुस्कुराना आ गया
भागते हैं लोग अंधी दौड़ में
मार औरों को गिराना आ गया
जालिमों के हाथ में हथियार हैं
खौफ़ो वहशत का ज़माना आ गया
मौत से अब डर नहीं लगता मुझे
जिंदगी को गुनगुनाना आ गया
-- शशि पुरवार
Tuesday, April 21, 2015
हाइकु -- सुख की ठाँव
सुख की ठाँव
जीवन के दो रंग
धूप औ छाँव
भ्रष्ट अमीरी
डोल गया ईमान
तंग गरीबी
शब्दो का मोल
बदली परिभाषा
थोथे है बोल
मन के काले
धूर्तता आवरण
सफेदपोश
--- शशि पुरवार
Monday, April 20, 2015
कागा -- मन के भोले
१
एक ही धुन
भरनी है गागर
फूल सगुन
२
दर्द की नदी
कहानी लिख रही
ये नई सदी
३
तन के काले
मूक सक्षम पक्षी
मुंडेर संभाले
४
कर्कश बोली
संकट पहँचाने
कागा की टोली
५
मूक है प्राणी
कौवा अभिमानी
कोई न सानी।
६
भोली सूरत
क्यों कागा बदनाम
छलिया नाम
७
कोयल साथी
धर्म कर्म के नाम
कागा खैराती
--- शशि पुरवार
आपके समक्ष एकसत्य घटना साझा करना चाहती हूँ कोई माने या ना माने एक सत्य को मैंने यह सत्य करीब से जिया है , इस निरीह प्राणी को स्नेह समझ आता है बोली समझ आती है। एक दो पोस्टिंग पर मैंने यह अनुभव लिया है , कौवा रोज सुबह रसोईघर की खिड़की पर बैठकर वही भोजन मेरे हाथों से खाता था जो बनाती थी , धीरे धीरे उसके भाव समझने की कोशिश की तब यह आश्चर्य था उसे जो भी चाहिए उस वस्तु पर हाथ रखो तो वही खाने के लिए कॉँव कॉँव करता था , जो नहीं चाहिए उस पर से नजर हटा दी । कोई और दे तो नहीं खाता था घर वाले हैरान थे वह मेरी बात समझ रहाहै जब वह शहर छोड़ा तब २ दिन कागा ने कुछ नहीं खाया , ट्रक में जैसे ही सामान भर गया, मैंने किसी का रोदन सुना , कोई आसपास नहीं दिखा , तब एक पेड़ पर वही कौवा बैठा था , उसके गले की हलचल और आवाज देखकर मै हैरान थी कि पक्षी रो रहा है। वहां खड़े लोगों ने यह आश्चर्य देखा है। सोचा जाते जाते पानी पिला देती हूँ पानी भर कर रखा वहउतरा किन्तु उसने पानी नहीं पिया। यह हृदय को छू गयी सत्य घटना है जिसने कागा के लिए मेरी सोच बदल दी। स्नेह सर्वोपरि है.
मेरे लिएयह रोमांचकारी था ,एक किस्सा और बताती हों मै जब मावा बनाती थी तब वह मावा विशेष रूप से पसंद करता था जब तक नहीं दो कॉँव कॉँव बंद ही नहीं होती थी। यह हमें ज्ञात है कि पशुपक्षी केलिए घी तेल हानिकारक होते हैं इसीलिए ऊँगली में जरा सा मावा रखकर खिड़की से बाहर हाथ रखती थी और वह इधर उधर ऐसे देखता था कि कोई देख तो नहींरहा और चुपचाप हाथ पर रखा मावा नजाकत से चोंच से उठाकर खाता था , , यहमूक प्राणी कोई भी हों स्नेह समझतें है और वफादारी भी निभातें है। ऐसे रोमांच जीवनपर्यन्त यादगार होतें है , मै हरजगह किसी न किसी मूक प्राणी से रिश्त बनाने का प्रयास जरूर करतीं हूँ।
Friday, April 10, 2015
आईना सत्य कहता है।
लघुकथा
आज आईने में जब खुद का अक्स देखा तो ज्ञात हुआ वक़्त कितना बदल गया है। जवां दमकते चहरे, काले बाल, दमकती त्वचा के स्थान पर श्वेत केश, अनुभव की उभरी लकीरें, उम्र की मार से कुछ ढीली होती त्वचा ने ले ली है, झुर्रियां अपने श्रम की कहानी बयां कर रही हैं। उम्र को धोखा देने वाली वस्तुओं पास मेज पर बैठी कह रही थी मुझे आजमा लो किन्तु मन आश्वस्त था इसीलिए इन्हे आजमाने का मन नहीं हुआ. चाहे लोग बूढ़ा बोले किन्तु आइना तो सत्य कहता है। मुझे आज भी आईने के दोनों और आत्मविश्वास से भरा, सुकून से लबरेज मुस्कुराता चेहरा ही नजर आ रहा है। उम्र बीती कहाँ है, वह तो आगे चलने के संकेत दे रही है। होसला अनुभव , आत्मविश्वास आज भी कदम बढ़ाने के लिए तैयार है।
शशि पुरवार
Wednesday, March 25, 2015
आदमी ने आदमी को चीर डाला है।
चापलूसों का
सदन में बोल बाला है
आदमी ने आदमी
को चीर डाला है
आँख से अँधे
यहाँ पर कान के कच्चे
चीख कर यूँ बोलतें, ज्यों
हों वही सच्चे.
राजगद्दी प्रेम का
चसका निराला है
रोज पकती है यहाँ
षड़यंत्र की खिचड़ी
गेंद पाले में गिरी या
दॉंव से पिछड़ी
वाद का परोसा गया
खट्टा रसाला है
आस खूटें बांधती है
देश की जनता
सत्य की आवाज को
कोई नहीं सुनता
देख अपना स्वार्थ
पगड़ी को उछाला है
आदमी ने आदमी को चीर डाला है
-- शशि पुरवार
Thursday, March 5, 2015
भंग दिखाए रंग - होली है
होरी आई री सखी ,दिनभर करे धमाल
हरा गुलाबी पीत रंग , बरसे नेह गुलाल .1
द्वारे पे गोरी खड़ी , पिया गए परदेश
नेह सिक्त पाती लिखी ,आओ पिया स्वदेश2
भेद भाव से दूर ये ,होरी का त्यौहार
डूबा जोशो जश्न में , यह सारा संसार 3
होरी के हुडदंग में , हुरियारों की जंग
मिल जाए जो सामने ,फेको उस पर रंग .4
अम्मा से बाबू कहे , खेलें होरी आज
कहा तुनक कर उम्र का , कुछ तो करो लिहाज .5
होरी की अठखेलियाँ , पकवानों में भंग
बिना बात किलकारियाँ , भंग दिखाए रंग 6
-----------------------------------------------------
कुण्डलियाँ
होली के हुडदंग में , हुरियारों की जंग
मिल जाए जो सामने, उस पर फेको रंग
फेको उस पर रंग , नीले पीले गुलाबी
घेरो सब चहुँ ओर, यह टोली है नबाबी
मस्ती का उन्माद , संग मित्रों के ठिठोली
जोश जश्न उल्लास , खेलो प्रेम की होली .
हाइकु -
१
होली है प्यारी
रंग भरी पिचकारी
सखियाँ न्यारी
२
मारे गुब्बारे
लाल पीले गुलाबी
रंग लगा रे
३
प्रेम की होली
दूर बैठी सखियाँ
मस्तानी टोली
४
होली की मस्ती
प्रेम का है खजाना
दिलों की बस्ती
५
चढ़ा के भंग
मौजमस्ती संग
बजाओ चंग
----- शशि पुरवार
आप सभी ब्लॉगर मित्रों को होली की हार्दिक रंग भरी शुभकामनाएँ
Monday, February 23, 2015
अब कहाँ जाएँ।
बाहर
की आवाजों
का शोर,
सड़क रौंदती
गाड़ियों की चीख
जैसे मन की पटरी पर
धड़धड़ाती हुई रेलगाड़ी
और इन सब से बेचैन मन
शोर शराबे से दूर,
एक बंद कमरे में
छोड़ा मैंने बोझिल मन को ,
निढाल होते तन के साथ
नर्म बिस्तर की बाहों में
शांति से बात करने के लिए
पर अब पीछा कर रही थीं
श्वासोच्छवास की दीर्घ ध्वनि
धड़कनों की पदचाप
बंद पलकों में
चहलकदमी करने लगीं पुतलियाँ
उमड़ते हुए विचारों की भीड़
करने लगी कोलाहल
अंतर की हवा में ज्यादा प्रखर है प्रदुषण
खुद से भागते हुए
शांति की तलाश में अब कहाँ जाएँ।
सड़क रौंदती
गाड़ियों की चीख
जैसे मन की पटरी पर
धड़धड़ाती हुई रेलगाड़ी
और इन सब से बेचैन मन
शोर शराबे से दूर,
एक बंद कमरे में
छोड़ा मैंने बोझिल मन को ,
निढाल होते तन के साथ
नर्म बिस्तर की बाहों में
शांति से बात करने के लिए
पर अब पीछा कर रही थीं
श्वासोच्छवास की दीर्घ ध्वनि
धड़कनों की पदचाप
बंद पलकों में
चहलकदमी करने लगीं पुतलियाँ
उमड़ते हुए विचारों की भीड़
करने लगी कोलाहल
अंतर की हवा में ज्यादा प्रखर है प्रदुषण
खुद से भागते हुए
शांति की तलाश में अब कहाँ जाएँ।
- शशि पुरवार
Monday, February 16, 2015
गम की हाला - नवगीत
होठों पर मुस्कान सजाकर
हमने, ग़म की
पी है हाला
ख्वाबों की बदली परिभाषा
जब अपनों को लड़ते देखा
लड़की होने का ग़म ,उनकी
आँखों में है पलते देखा
छोटे भ्राता के आने पर
फिर ममता का
छलका प्याला
रातों रात बना है छोटा
सबकी आँखों का तारा
झोली भर-भर मिली दुआये
भूल गया घर हमको सारा
छोटे के
लालन - पालन में
रंग भरे सपनो की माला
बेटे - बेटी के अंतर को
कई बार है हमने देखा
बिन मांगे,बेटा सब पाये
बेटी मांगे, तब है लेखा
आशाओं का
गला घोटकर
अधरों , लगा लिया है ताला
-- शशि पुरवार
Monday, February 9, 2015
रोजी रोटी की खातिर
रोजी रोटी की खातिर,फिर
चलने का दस्तूर निभाये
क्या छोड़े, क्या लेकर जाये
नयी दिशा में कदम बढ़ाये।
चिलक चिलक करता है मन
बंजारों का नहीं संगमन
दो पल शीतल छाँव मिली, तो
तेज धूप का हुआ आगमन
चिंता ज्वाला घेर रही है
किस कंबल से इसे बुझाये।
हेलमेल की बहती धारा
बना न, कोई सेतु पुराना
नये नये टीले पर पंछी
नित करते हैआना जाना
बंजारे कदमो से कह दो
बस्ती में अब दिल न लगाये।
क्या खोया है, क्या पाया है
समीकरण में उलझे रहते
जीवन बीजगणित का परचा
नितदिन प्रश्न बदलते रहते
अवरोधों के सारे कोष्टक
नियत समय पर खुलते जाये।
-- शशि पुरवार
Monday, February 2, 2015
मौसम ठिकाने आ गए
आ गए जी आ गए
मौसम ठिकाने आ गए
सूर्य ने बदला जो रस्ता
दिन सुहाने आ गए।
धुंध कुहरे की मिटाने
ताप छनकर आ रहा
खेत में बैठा बिजूखा
धुप से गरमा रहा
धूप की
अठखेलियों के
दिन पुराने आ गए।
प्रेम पाती बाँचकर, यह
स्वर्ण किरणें चूमती
इंद्रधनुषी रंग पहने
तितलियाँ भी झूमती
स्वप्न आँखों में
बसंती
दिल चुराने आ गए।
नींद से जागा शहर
टहलाव,
सड़कों पर मिला
सुगबुगाती टपरियोँँ पर
चुसकियों का सिलसिला
लॉन में फिर
चाय पीने
के बहाने आ गए।
बात करते खिलखिलाते
साथ जोड़े चल रहे
घाट पर गप्पें लड़ाते
कुछ समय को छल रहे
हाथ नन्हे डोर थामे
नभ रिझाने आ गए
--- शशि पुरवार
Monday, January 26, 2015
६६ गणत्रंत्र दिवस
आप सभी भारतीय मित्रों को ६६ वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ , जय हिन्द - जय भारत
सीना चौड़ा कर रहे ,वीर देश की शान
हर दिल चाहे वर्ग से ,करिए इनका मान
करिए इनका मान , हमें धरती माँ प्यारी
वैरी जाये हार , यह जननी है हमारी
दिल में जोश उमंग ,देश की खातिर जीना
युवा देश की शान ,कर रहे चौड़ा सीना .
- शशि पुरवार
Sunday, January 25, 2015
गजल - वक़्त लुटेरा है
कुछ पलों का घना अँधेरा है
रैन के बाद ही सवेरा है.
जग नजाकत भरी अदा देखे
रात्रि में चाँद का बसेरा है.
हर नियत पाक दिल नहीं होती
जाल सठ का बुना घनेरा है.
रंज जीवन नहीं रजा ढूंढो
हर कदम हर्ष का फुलेरा है.
इश्क है हर नदी को सागर से
इल्म है जोग भी निबेरा है.
मै मसीहा नहीं मुसाफिर हूँ
मुफलिसी ने मुझे ठठेरा है.
जिंदगी इम्तिहान लेती है
वक़्त सबसे बड़ा लुटेरा है।
- शशि पुरवाररात्रि में चाँद का बसेरा है.
हर नियत पाक दिल नहीं होती
जाल सठ का बुना घनेरा है.
रंज जीवन नहीं रजा ढूंढो
हर कदम हर्ष का फुलेरा है.
इश्क है हर नदी को सागर से
इल्म है जोग भी निबेरा है.
मै मसीहा नहीं मुसाफिर हूँ
मुफलिसी ने मुझे ठठेरा है.
जिंदगी इम्तिहान लेती है
वक़्त सबसे बड़ा लुटेरा है।
Sunday, January 18, 2015
कुण्डलियाँ - भाग रही है जिंदगी,
1
भाग रही है जिंदगी, कैसी जग में दौड़
चैन यहाँ मिलता नहीं, मिलते अंधे मोड़
मिलते अंधे मोड़, वित्त की होवे माया
थोथे थोथे बोल, पराया लगता साया
जलती कुंठा आग, गुणों को त्याग रही है
कर्मो का सब खेल, जिंदगी भाग रही है
2
थोडा हँस लो जिंदगी , थोडा कर लो प्यार
समय चक्र थमता नहीं , दिन जीवन के चार
दिन जीवन के चार ,भरी काँटों से राहे
हिम्मत कभी न हार , मिलेगी सुख की बाहें
संयम मन में घोल , प्रेम से नाता जोड़ा
खुशिया चारो ओर , भरे घट थोडा थोडा
-- शशि पुरवार
Tuesday, January 13, 2015
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आज की युवा पीढ़ी कहती है - “ हम अपनी शर्तों पर जीना चाहते हैं समय बहुत बदल गया है …. हमारे माता पिता हमें हर वक़्त रोक टोक करते हैं, क्...
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