ब्लॉग सपने शशि में आप पढ़ेंगे जीवन के रंग अभिव्यक्ति के संग.. प्रेरक कहानियाँ, लेख और साहित्यिक रचनाओं का संसार ।आपका अपना संसार ।
ब्लॉग सपने - जीवन के रंग अभिव्यक्ति के साथ, प्रेरक लेख , कहानियाँ , गीत, गजल , दोहे , छंद
Friday, August 17, 2012
Wednesday, August 15, 2012
जय भारत .....तुझे सलाम .
१ शूर की रसा
तरुण कंधो पे है
राष्ट्र की धारा.
२ भाषा अनेक
बंधुभाव है एक
राष्ट्र की शान .
३ वतन में जाँ
तिरंगे को सलाम
राष्ट्रीयगान .
4 जीवनशक्ति
मातृभूमि हमारी
भारत माता .
५ गौरवशाली
हिंद की जगद्योनि
जन्मे बाँकुड़ा .
6 मेरा भारत
स्वर्ग सा मनोरम
पावन गंगा .
7 दिल औ जान
तुझपे न्यौझावर
मेरे वतन .
8 धर्म संस्कृति
अमन की चाहत
साँसों में बसी .
9 जान से ज्यादा
तिरंगा हमें प्यारा
तुझे सलाम .
10 भारत है
हमको जां से प्यारा
जय भारत .
----- शशि पुरवार
सभी दोस्तों को 15 अगस्त की हार्दिक शुभकामनाय .............वन्दे मातरम .
Sunday, August 12, 2012
दोहे ........
1 सबसे कहे पुकार कर , यह वसुधा दिन रात
जितनी कम वन सम्पदा , उतनी कम बरसात .
2 इन फूलो के देखिये , भिन्न भिन्न है नाम
रूप रंग से भी परे , खुशबु भी पहचान .
3 समय- शिला पर बैठकर , शहर बनाते चित्र
सूख गई जल की नदी , सिकुड़े जंगल मित्र .
------------------- हाइकु -------------
क्लांत नदिया
वाट जोहे सावन
जलाए भानु .
...
आया सावन
खिलखिलाई धरा
नाचे झरने .
नाचे मयूर
झूम उठा सावन
चंचल बूंदे.
काली घटाए
सूरज को छुपाये
आँख मिचोली .
बैरी बदरा
घुमड़ घुमड़ के
आया सावन .
----- शशि पुरवार
Tuesday, August 7, 2012
नेह बरसते........
मौसम सुहाना
श्रावण का बहाना
सावनी तीज में
रिमझिम रिमझिम
सलोनो पे
नेह बरसते.
चंचल बचपन
रूसना - मनाना
लड़ना - झगड़ना
खेलते - हँसते ,
मृदुल मानस
पटल पे
अंकित मधुर
स्नेह के
पक्के रिश्ते .
बदली बेला की
परिपाटी
किया सोलह श्रृंगार
जवानो के संग
बहना भी तैयार ,
ह्रदय में सरगर्मी
मन में झंकार
उबलता लहू
मर मिटने को बेताब
गर्व से फूली छाती
नूर नैनो में भरते .
निमित्त भाव
मधुर बेला में
सुशोभित
तिलक ललाट
पाणी मूल पे रक्षा सूत्र
अधरों पे विजयगान
अग्रज तुम्हारे खंधो पे
है वतन का मान
गर्मजोशी भरे क्षण
करते सरहद पे विदा
पर नयनो से
मोती न झरते .
एक नयी पहल
संरक्षित हो
हरित चादर
बांध तरुवर को तागा
जेठ से किया वादा
खिलेगी सलोनी धरा
बरसेंगे फूल ,होगा
अवनि का उपहार
कर श्रावण का बहाना
इन्द्र भी झमाझम बरसते .
सुखमय पल
जीवन भर
होती मधुर यादें
रक्षाबंधन की सौगात
स्नेह और मिलन
का पर्व
वचन का पालन
वादों का सम्मान
रेशमी डोर से बंधे
ये रिश्ते खूब फलते .
---शशि पुरवार
श्रावण का बहाना
सावनी तीज में
रिमझिम रिमझिम
सलोनो पे
नेह बरसते.
चंचल बचपन
रूसना - मनाना
लड़ना - झगड़ना
खेलते - हँसते ,
मृदुल मानस
पटल पे
अंकित मधुर
स्नेह के
पक्के रिश्ते .
बदली बेला की
परिपाटी
किया सोलह श्रृंगार
जवानो के संग
बहना भी तैयार ,
ह्रदय में सरगर्मी
मन में झंकार
उबलता लहू
मर मिटने को बेताब
गर्व से फूली छाती
नूर नैनो में भरते .
निमित्त भाव
मधुर बेला में
सुशोभित
तिलक ललाट
पाणी मूल पे रक्षा सूत्र
अधरों पे विजयगान
अग्रज तुम्हारे खंधो पे
है वतन का मान
गर्मजोशी भरे क्षण
करते सरहद पे विदा
पर नयनो से
मोती न झरते .
एक नयी पहल
संरक्षित हो
हरित चादर
बांध तरुवर को तागा
जेठ से किया वादा
खिलेगी सलोनी धरा
बरसेंगे फूल ,होगा
अवनि का उपहार
कर श्रावण का बहाना
इन्द्र भी झमाझम बरसते .
सुखमय पल
जीवन भर
होती मधुर यादें
रक्षाबंधन की सौगात
स्नेह और मिलन
का पर्व
वचन का पालन
वादों का सम्मान
रेशमी डोर से बंधे
ये रिश्ते खूब फलते .
---शशि पुरवार
Sunday, August 5, 2012
बैरी बदरा
क्षणिकाएँ,
बैरी बदरा
घुमड़ घुमड़
आये भावन
देखो झूम के
बरस गया सावन .
बूंदो को लड़ी
बरखा सी झड़ी
पवन मतवाली
इठला के चली
चूमती पर्णों को
कर्ण में मिसरी सी घुली !
पर्ण के कोरो पे
पड़ित बूंदें जैसे
बिखरे धवल मणि .
मखमली हरित बिछोना
फूली अमराई
कानन मे
विशालकाय गिरि पे
व्योम ने
भीनी चुनर उढाई
मदमाता सा बहे
जलप्रपात
उदधि का गर्जन
परिंदो का कलरव
दरिया का उफनना
पुरंदर के इशारे
जम के बरसे घन.
सावन के पड़े झूले
गाँवो मे लगे मेले
हिंडोले लेता मन
करतल पे रची हिना
हरी हरी चूड़ियाँ
पहने गाँव की गोरियां
इठलाती सी ये
अल्हड परियां .......!
---------- शशि पुरवार
Friday, August 3, 2012
रक्षाकवच ....
हाइकु
१ आया है पर्व
राखी का त्यौहार
स्नेह उल्लास .
२ सजी दुकाने
कलावे रंगबिरंगे
रेशमी धागे .
३ आई है बहना
सजी पूजा की थाली
रेशमी डोरी .
४ पूजा की थाली
रोली चावल बाती
अन्न मिष्ठान .
५ ललाट टीका
सजा रोली चावल
नेह बरसे .
६ राखी की डोर
स्नेह का है प्रतिक
रक्षाकवच .
७ रक्षाबंधन
आत्मीयता स्नेह
मिश्री मिठास .
८ नाजुक डोरी
बंधी कलाई पर
है रक्षाक्षूत्र .
९ खास तोहफा
बरसते आशीष
जीवन भर .
१० भैया हमारा
सर्वदा सकुशल
यही है अर्ज .
--------शशि पुरवार
सदोका ---
१ स्नेह प्रतीक
बंधा है मणिबंध
रेशम के तागे से
रक्षाकवच
अटूट है बंधन
बहिन का भाई से .
२ सजे बाजार
शबल परिधान
मखमली राखियाँ
अन्न मिष्ठान
पूजा की थाली संग
है स्नेहिल मुस्कान .
३ सजी रंगोली
किया है अनुष्ठान
पूजा व्रत विधान
भाई के नाम
ईश्वर से कामना
सर्वथा संरक्षित .
४ भैया मोरे तू
रिश्ते की प्रतिष्ठा
अब तेरे ही हाथ
रक्षाकवच
सदा रहेगा साथ
स्नेहिल ये बंधन .
------- शशि पुरवार
१ आया है पर्व
राखी का त्यौहार
स्नेह उल्लास .
२ सजी दुकाने
कलावे रंगबिरंगे
रेशमी धागे .
३ आई है बहना
सजी पूजा की थाली
रेशमी डोरी .
४ पूजा की थाली
रोली चावल बाती
अन्न मिष्ठान .
५ ललाट टीका
सजा रोली चावल
नेह बरसे .
६ राखी की डोर
स्नेह का है प्रतिक
रक्षाकवच .
७ रक्षाबंधन
आत्मीयता स्नेह
मिश्री मिठास .
८ नाजुक डोरी
बंधी कलाई पर
है रक्षाक्षूत्र .
९ खास तोहफा
बरसते आशीष
जीवन भर .
१० भैया हमारा
सर्वदा सकुशल
यही है अर्ज .
--------शशि पुरवार
सदोका ---
१ स्नेह प्रतीक
बंधा है मणिबंध
रेशम के तागे से
रक्षाकवच
अटूट है बंधन
बहिन का भाई से .
२ सजे बाजार
शबल परिधान
मखमली राखियाँ
अन्न मिष्ठान
पूजा की थाली संग
है स्नेहिल मुस्कान .
३ सजी रंगोली
किया है अनुष्ठान
पूजा व्रत विधान
भाई के नाम
ईश्वर से कामना
सर्वथा संरक्षित .
४ भैया मोरे तू
रिश्ते की प्रतिष्ठा
अब तेरे ही हाथ
रक्षाकवच
सदा रहेगा साथ
स्नेहिल ये बंधन .
------- शशि पुरवार
Friday, July 27, 2012
चपाती
चपाती कितनी तरसाती
गरीबो की थाली उसे
रास ही नहीं आती .
किसान बोये धान
और सबको दे मुस्कान
दो जून रोटी की खातिर
छोटे बड़े मिलकर
करते श्रमदान
पर लुटेरो को उनकी
पीड़ा नजर ही नहीं आती
छीन कर ले जाते निवाला
लोलुपता ही उन्हें नजर आती .
तन की भूख मिटाने को
बस मन में है लगन
आएगा कुछ धन तो
मिट जाएगी पेट की अगन
पर माथे की शिकन मिट
ही नहीं पाती , और
महँगी हो जाती चपाती .
श्रम का नहीं मिलता मोल
दुनिया भी पूरी गोल
थाली में आया सिर्फ भात ,
सूनी कर गरीबो की आस
पंच सितारा,होटलो
और बंगले में
इठला के चली गयी चपाती .
इतनी शान बान
अचंभित हर इंसान
चांदी के बर्तनो में
परोसी गयी चपाती
पर यह क्या, हाथ में रह
गए सिर्फ ड्रिंक ,और
चमचमाती थाली में
छूट गयी चपाती .
झूठन में फेककर
कचरे में मिलकर
पुनः जमीं पर आती
भूखे लाचार इंसानो
की भूख मिटाती,
नहीं तो वहीँ पे पड़ी -पड़ी
मिटटी में मिल जाती चपाती .
चपाती कितनी तरसाती
गरीबो की थाली उसे
रास ही नहीं आती ...........!
-------शशि पुरवार----------
Thursday, July 12, 2012
अकेला आदमी
अधुनातन लम्हो में
स्वतः ही खनकती
हंसी को टटोलता
अकेला आदमी .
लोलुपता की चाह में
बिखर गए रिश्ते
छोड़ अपनी रहगुजर
फलक में
उड़ चला आदमी .
उपलब्धियो के
शीशमहल में
सुभिताओं से
लैस कोष्ठ में ,
खुद को छलता ,
दुनिया से
संपर्क करता ,
पर एक कांधे को
तरसता आदमी .
उतंग पर खड़ा ,
कल्पित अवहास
अभिवाद करता
अज्ञात मुखड़ो
को तकता ,
भीड़ में भी
इकलंत आदमी .
----- शशि पुरवार
Saturday, July 7, 2012
माँ उदास ....!
माँ उदास
मारती रही औलाद
तीखे संवाद ,
भयी कोख उजाड़ .
बरसा सावन तो
पी गए नयन
दबी सिसकियां
शिथिल तन
उजड़ गयी कोख
तार तार दामन .
खून से सने हाथ
भ्रूण न ले सके सांस
चित्कारी आह
हो रहा गुनाह
माँ की रूह को
छलनी कर
सिर्फ पुत्र चाह .
जिस कोख से जन्मे देव
उसी कोख के
अस्तित्व का सवाल
सृष्टि की सृजक नारी
आत्मा जार जार
हो रहा कत्लोआम
परिवर्तन की पुकार .
माँ उदास ......भयी कोख उजाड़ ....!
------- शशि पुरवार
Wednesday, July 4, 2012
बारिश की बूंदे.....
बारिश की बूंदे
जरा जोर से बरसो
घुल कर बह जाये आंसू
न दिखे कोई गम
जिंदगी में नहीं मिलती है
जो , ख़ुशी चाहते हम ...!
अंदर -बाहर है तपन
दिल में लगी अगन
दर्द की भी चुभन
झिम झिम बरसे जब सावन
क्या अम्बर क्या नयन
बह जाये सारे गम
बूंदे जरा जोर से बरसो
भीग जाये तन -मन ....!
टप-टप करती बूंदे
छेड़े है गान
पवन की शीतलता
पात भी करे बयां
सौधी खुशबु नथुनो से
रूह तक समाये
चेहरे पर पड़ती बूंदे
मन के चक्षु खोल
अधरो पे मुस्कान बिछाये
गम की लकीरें पेशानी से
कुछ जरा कम हो जाये
बूंदे जरा जोर से बरसो ...!
:--शशि पुरवार
=====================
एक क्षणिका भी छोटी सी --
आई बारिश
खिल उठा मन
झूम उठा मौसम
जीभ को लगी अगन
चाय -पकोड़े का
थामा दामन ,
गर्म प्याली चाय की
ले एक चुस्की , और
भूल जा सारे गम
इन खुशगवार पलों का
है बस आनंदम ....!
-----शशि पुरवार
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