Saturday, August 1, 2020

नया आकाश - धारावाहिक कहानी भाग १



" नया आकाश ’’

दोपहर के 1 बजे फोन की घंटी बजी, पलक के हेल्लो के जबाब में दूसरी तरफ से प्रणव की आवाज थी.

’’ पलक, बधाई हो ! तुम्हें इस साल तुम्हारे उपन्यास ’’ नीड़ ’’ के लिए सम्मानित किया जा रहा है.

’’ क्या ’’ खुशी व सुखद आश्चर्य से पलक की आवाज में कम्पन आ गया, शब्द गले में ठहर गए, अचानक आँखें नम हो गयीं, हदृय अपने उदगार व्यक्त करने में असमर्थ थे. जीवन में जो इक प्यास शेष थी, आज जैसे उस प्यासे को पानी मिल गया था.
’’ क्यों, विश्वास नहीं हो रहा है ? अभी - अभी मुझे संस्था से फोन आया था! अच्छा, शाम को मिलता हूँ फिर बात होगी। .’’ कह कर प्रणव ने फोन रख दिया. 

पलक जैसे ही फ़ोन रखकर मुड़ने लगी, कि फिर घंटी बजी. ’ हेल्लो’ के जबाब मे उधर से अाती हुई मधुर आवाज कानों में रस घोल गयी.

माँ - बधाई हो, मैं घर आ रही हूं.’’

’’अरे विनि, कैसी है, कब आ रही है, तुझे कैसे पता चला ’’ पलक ने एक ही सांस में प्रश्नों की झड़ी लगा दी।

’’ माँ, पापा का फोन आया था, अच्छा शाम को मिलतें हैं. अभी फोन रखती हॅू‘‘ कहकर विनि ने फोन रख दिया.

’’पता नही, सबको कितनी जल्दी रहती है’’ पलक धीरे से बडबडाई.

विनि से बात करके पलक की भीगी पलकें झरझर झरने लगीं। विनी उसके ह्रदय का टुकडा थी. जिसके बिना वह कोई कल्पना नहीं कर सकती थी. ऐसी ख़बरें आग की तरह फैल जाती है। उसके बाद बधाई का जो सिलसिला शुरू हुआ वह दोपहर 3 बजे तक चलता रहा.

आज जैसे पलक अपने अंदर ठहराव महसूस रही थी। स्वयं की पहचान हर इंसान के लिए मायने रखतीं है। वह पहचान ही जीवन में सम्पूर्णता का अहसास कराती है। वक़्त व नियति के चलते जो कुछ पीछे छूट गया था, आज ओस सी शीतलता बन हदृय को ठंडक प्रदान कर रहा था। ह्रदय के किसी कोने मे जो तम्मना दबी हुई थी,आज उसे एक गगन मिल गया. ह्रदय की धडकन व मन के तारों ने साज छेड रखा था. विनी ने ही अनजाने में उसके स्वप्नों को हवा दी थी। न चाहते हुए भी पलक अतीत की उन गलियों में विचरने लगी जहाँ सिर्फ दर्द और तन्हाई थी। मानसिक त्रासदी भी किसी यातना से कम नहीं होती है।

आज भी वह दिन याद है जब उसने शादी न करने के लिए जद्दोजहत की थी। आगे पढने व एक मुकाम हासिल करने का स्वप्न नैनों में तैर रहा था. पलक स्वभाव से शांत व संवेदनशील थी. वह दो बहनें थी. भाई नहीं था. पलक छोटी थी. माँ -पिताजी परंपरावादी न होकर बहुत सुलझे हुए इंसान थे. बेटियों को बेटे की तरह, बहुत जतन से पाला और जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। माँ का एक ही ध्येय था कि हम उच्च शिक्षित बने । हालाकिं माँ स्वयं शिक्षित होकर गृहणी ही थी। परंपरा के आगे उन्होंने घुटने टेक दिए थे. लेकिन उनका पूर्ण साथ व विश्वास हमें मिला था.

मध्यमवर्गीय परिवार होने के कारण हम हर परिस्थिति से झूझने के आदी थे। माँ - पिताजी ने हमारी शिक्षा के लिए पूर्ण त्याग किया ,हमें कभी कुछ कमी महसूस नहीं होने दी थी। हमने भी उनके विश्वास पर खरे उतरने की पूरी कोशिश की थी. दीदी प्रोफेसर बन गई व उनकी शादी उनके साथी प्रोफेसर से हो गई. मैने भी एम.ए, बीएड व पी.एच.डी करके आगे नौकरी करनी चाही परंतु मुझे वक्त ने ऐसा कोई मौका नहीं दिया. प्रणव के घर वालों ने एक दिन मुझे देखा और रिश्ता सामने से आया। प्रणव सरकारी नौकरी में थे। मैने माँ - पिताजी से मना किया, भूखी रही, पर उनके आगे एक न चली, माँ बोली -

’’ अच्छे लडके मुशकिल से मिलते है, सुन्दर शिक्षित लड़का है और क्या चाहिए। जो भी करना शादी के बाद करना " और बात वही खत्म हो गई. लोग पहले शादी को ही जीवन का अंत मानते थे. यहाँ आकर उन्होंने भी साथ छोड़ दिया।

हर लडकी की तरह आँखों में सतरंगी सपने लिए ससुराल की दहलीज पर कदम रखा। ससुराल की परिस्थिति ठीक ही थी। नए सफर की उंमगो में परिवार का साथ व प्यार महत्वपूर्ण होता है। माँ - पिताजी ने पहले ही कह दिया था. अपने संस्कारों का ध्यान रखना, किसी को शिकायत का मौका मत देना। सोचा था कि सबका दुलार मिलेगा, तो घर के साथ-साथ वह नौकरी भी कर सकती हैं। वह सब अच्छा करने की कोशिश करेगी; परंतु सपने आँख खुलने पर टूटते ही है. धीरे धीरे प्रणव के घर वालों का व्यवहार और विचार सामने आ ही गए।

प्रणव के परिवार वाले रूढ़िवादी व सर्कीण विचारों के थे. घर की बहू बाहर जाकर काम करे, उन्हें पसंद नहीं था. घर की परिस्थिति ठीक ठाक थी. जेठ, पिताजी के साथ दुकान पर बैठते थे. उस घर में सिर्फ प्रणव और मैं उच्च शिक्षित थे, बाकी सदस्यों ने डिग्री भी पूर्ण नही की थी. प्रणव एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर की नौकरी करते थे. उन्हें काम से फुरसत नहीं थी . प्रणव का स्वभाव गंभीर व अंर्तमुखी था. परिवार में उनकी दखलअंदाजी नहीं थी. वह परिवार के खिलाफ कुछ सुनना पसंद नहीं करते थे। हाथ की मेंहदी भी नहीं छूटी कि दूसरे दिन से घर की जिम्मेदारीयाँ कांधे पर आ गयीं. नवविवाहिता के कोमल सपने रसोई घर में सिमट कर रह गए.

जिठानी झगड़ालू प्रवृति की थी। जेठानी व सास की निसदिन खिट-पिट होती रहती थी, जिसमें पलक गेहूँ के घुन की तरह पिसती थी। सभी लोग आए दिन उसे अपना स्वत्व व दबाने की कोशिश करते थे। घर में सास की ज्यादा चलती थी. कब किस बात का गलत मतलब निकल जाए कह नही सकते थे. उनकी नजर में ज्यादा पढी-लिखी लडकी तेज होती है. ऐसे में पलक ने हमउम्र दोनों ननद को अपनी सहेली बनाने का असफल प्रयास किया। कहतें है जहाँ मन मे कॉम्प्लेक्स हो वहां मिठास नहीं हो सकती है। ईर्ष्या मति भ्रष्ट करती है. दोनों का प्रेम तो दूर; भाभी शब्द का संबोधन भी कभी मुख से नहीं निकला। दिन रात बहुत ईमानदारी से परिवार की जिम्मेदारी निभाई। किन्तु उसका मोल न मिला. घर वाले स्नेह देने में भी बहुत गरीब थे. उनके लिए मैं सिर्फ दूसरे घर की लड़की ही बनी रही. घर में भय की मातमी छाई रहती थी। न ज्यादा बात और न ही हंसी मजाक, किन्तु जिसे देखो मुझे सताने का मौका जरूर ढूंढता था, लेकिन प्रणव के सामने सब बहुत सीधे बनते थे । ऐसा द्विचरित्र मुखौटा पहली बार देखा था. जिसे देखो वह उस पर हावी होने का प्रयास करता था, पलक की हालत ऐसी थी कि काटो तो खून नहीं, किसी से खुलकर हँसने बोलने में भी डर लगताथा। चुप रहकर ही प्रतिकार किया, मैंने काम के बोझ तले अपने सपनों बिखरते देखा था.

क्रशम: - अगला भाग ..

..शशि पुरवार 



Wednesday, July 29, 2020

जहान है तो जान है  - कोरोना काल



जहान है तो जान है 


भोर  हुई मन बावरा, सुन पंछी का गान
गंध पत्र बांटे पवन  धूप रचे प्रतिमान

प्रकृति का सौंदर्य आज अपने पूरे उन्माद पर है. प्रकृति की अनुपम छटा आज पुनः  अपनी मधुरता का एहसास करा रही है. सुबह फिर सुहानी सी कलरव की मधुर आवाज से करवट बदलती  है तो शाम  की शीतल मधुर फुहार  व हवा में ताजगी का अनोखा अहसास, जीवन में रंग भर रहा है.  पावन गंगा निर्मल स्वच्छ होकर बह रही है, गंगा का पानी साफ हो गया है. धरती का अंग अंग प्रफुल्लित होकर खिल रहा है. गंगा में डॉल्फिन का दिखना, सड़कों पर जानवरों का विचरण करना, प्रकृति का सुखद संदेश है.  भय मुक्त प्राणी  मानव द्वारा तय की गई सीमा से बाहर स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं. ओजोन की परत पूर्णतः भर गई है प्रकृति के कितने विहंगम दृश्य हैं,उसका सौंदर्य अकल्पनीय है.   

अभी तक हम प्रकृति में हो रहे विनाश के लिए चिंतित थे. लेकिन प्रकृति ने स्वयं के घावों को भर लिया है. पात- पात डाल- डाल खिल रहे हैं. कोरोना काल का सबसे ज्यादा सकारात्मक प्रभाव प्रकृति पर दिखा है, प्रकृति  पुनः  अपनी प्राकृतिक सौंदर्य की पराकाष्ठा को दिखा रही है.  मैं आज तक उस पावन गंगा नदी को नहीं भूली हूँ. पटना में गंगा नदी के किनारे बचपन की अनेक यादें आज भी ताजा है. घर के पास बचपन में गंगा घाट पर बैठकर उसके पावन जल में डुबकी लगाना व प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को निहारकर नयनों में कैद करना तो वहीं प्रकृति की मार से विस्मित होना. जहां निर्मल पावन गंगा मानव के पाप धोते-धोते कलुषित हो गई थी. इस मानवी भूल व कुप्रथाओं का परिणाम हम सब ने देखा है.

देखा जाए तो कोरोना काल कुप्रथाओं को खत्म करने के लिए ही आया है. हम प्रकृति का दोहन करें,  किंतु उसके विनाश का कारण नहीं बने.  जहान है तो जान है.  आज हमें प्रकृति से जीने की प्रेरणा लेनी चाहिए

एक वायरस प्रकृतिक साधनो व जीव जंतु का कुछ भी अहित नहीं कर सका, लेकिन मानव के कलुषित मन से जन्मा वायरस आज मानव के लिए ही प्राण खाती बन गया है. कोरोना से डर कर नहीं उसके साथ जीने के तरीके सीखने  होंगे. जीने के अंदाज बदलने होंगे.  प्राचीन संस्कृति की अच्छी बातें पुनः याद कर के नया अध्याय लिखना होगा. जीवन जीने के मायने व तरीके बदलेंगे, कुप्रथाएं समाप्त होंगी और होनी भी चाहिए आखिर कब तक हम कुप्रथाओं के बोझ तले जीवन का पहिया खीचेंगे.  कुरीतियां कब तक अपने फन मारेगी. लाक डाउन ३ जान है, जहान है का मंत्र लेकर आया है

सरकार जीवन की गाड़ी धीरे-धीरे पटरी पर लाने का प्रयास सरकार कर रही है. रेड, ग्रीन, ऑरेंज जोन के साथ मानवीय चहल-पहल शुरू होगी. लेकिन यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम पूरी प्रकृति को ग्रीन जोन में परिवर्तित करें. कहतें है ना कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी. ऐसी स्थिति से बचने के लिए कदम कदम पर सावधानी जरूरी है. मैं तो यही कहूंगी कि जहान है जान है, दोनों एक दूसरे के पर्यायवाची हैं . जान के साथ जहान का भी ख्याल रखें तो जान अपने आप बची रहेगी. जीवन फिर पटरी पर आकर नए अंदाज में अपना नया अध्याय लिखेगा। 


 हम वायरस को खत्म तो नहीं कर सकते लेकिन उसकी चैन को जरूर तोड़ सकते हैं . उसकी चेन तोड़कर उसे अपने जीवन से समाप्त कर सकते हैं . हमें सावधानी के साथ जीवन का नए अध्याय  की शुरुआत करनी होगी.

मुंह पर मास्क लगाकर, 2 गज की दूरी बनाकर, अनावश्यक होने वाले समारोह सोशल कार्यक्रम एवं  दिखावे से दूर रहना होगा. भीड़ को इतिहास बनाना होगा. जीवन को सुचारु रूप से चलाना होगा .

आज मजदूर अपने अपने गांव जा रहे हैं. अगर दूसरे नजरिए से देखा जाए तो यह सुखद है. परिवार पूर्ण होंगे, गांव में भी रोजगार उत्पन्न होंगे. शहर व गांव दोनों गुलजार होंगे . गांव की सौंधी महक जो सिर्फ  पन्नों में सिमट कर रह गई थी, अब पुनः   अपना नया अध्याय लिखेगी 

जीवन आज नया अध्याय लिखने के लिए तैयार है .हमें डरकर नहीं कोरोना को हराकर जीना है . प्रण करें कि स्वयं के साथ प्रकृति की भी रक्षा करेंगे तो भविष्य में कोई भी आपदा अपना कुअध्याय नहीं लिखेंगी . यदि हम कांटे बोलेंगे तो फिर  फल कहां से पाएंगे इसीलिए तो कहती हूँ 
कांटे चुभते पांव में, बोया पेड़ बबूल
मिली ना सुख की छांव फिर केवल चुभते शूल 

 आज कोरोना के सकारात्मक प्राकृतिक परिणाम को देखते हुए हमें स्वयं को सकारात्मक रखना होगा. अपने आने वाले जीवन के लिए खुद को तैयार करना होगा. जीवन अपना नया अध्याय लिखने के लिए तैयार है, लॉक डाउन धीरे धीरे ख़त्म हो जायेगा , यह लॉक डाउन  हमें बहुत कुछ सीख देकर जा रहा है. सावधानी रखें, बुजुर्ग व बच्चों का विशेष ख्याल रखें. लॉक डाउन ३ को कोरोना का लॉक डाउन बनाये . हम पुनः खड़े होंगे, भारत कमजोर नहीं है ना ही यहाँ के लोग कमजोर है. हर परेशानी को काटना हमें आता है. इन पलों में स्वयं को मजबूत करें जिससे आने वाला समय सुखद पलों का साक्षी बने. अंत में यही कहना चाहूंगी-
आशा की रागिनी जीवन की शमशीर 
सुख की चादर तानकर फिर सोती है पीर 
शशि पुरवार 

Tuesday, July 28, 2020

जहाँ आदमी अपने को रोज बेचता है



   


 जहाँ आदमी अपने को रोज बेचता है

 मई महीने हम मजदूर दिवस मनाते थे और इसी महीने हम सबने मजदूरों की दुर्दशा होते हुए देखी है , लाक डाउन में मजदूरों की बेबसी सैलाब बनकर उमड़ी है। भूख लाचारी और तन की थकान दुर्घटना में जीवन लील रही है. पाँव में छाले पड़े हैं , बेबसी तड़प रही है और आँखें सूख रही है। हाल ही में मजदूरों की दर्दनाक मौत के हादसे कई प्रश्न उठा रहें है 


  आह पर भले ही वाह भारी पड़ गया और मौत ने,  न केवल जिंदगी को दिन – दहाड़े,  हजारो - लाखों लोगों के बीच शिकस्त दे दी। क्यों हथेली पर सरसों उगाने भर की भी जमीन उसे मयस्सर नहीं होती। खेतिहर, मजदूर की तरह खेतों में खटता रहता है।  यही नहीं गगनचुम्बी अट्टालिकाओं को बनाने में जिंदगी खपा देने के बाद भी उसे अपने छोटे से परिवार के लिए छत तक नसीब नहीं होती।

    घर से घाट तक और घाट से लेकर लादी धोने वाले सीधे –साधे पशु “ गर्दन “  के समान वह भी गोदाम से दुकान और दुकान से गोदाम तक माल ढोता - ढोता थक कर चूर हो जाता है।  फिर भी कदम – कदम पर उसका खाना – पीना, दर किनार  कर  खिड़की ही नसीब होती   है .


यह महामारी और लॉक डाउन मजदूरों के लिए आफत लेकर आया है. हर तरफ अफरा-तफरी मची हुई है . खाने के लिए भोजन नहीं और रहने के लिए  घर नहीं है . सड़क पर बेहाल  मजदूर परिवार,  अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ थके हुए कदमों से गांव लौट रहे हैं . मीलो लंबा रास्ता, सुनसान सडक, मंजिल दूर है, उस पर हो रही दुर्घटनाएं मौत का पैगाम लिख रही है. लाखों की संख्या में मजदूरों का पलायन  उनकी दुर्दशा हमारे समाज की  पोल खोल रहा है . कहीं-कहीं  ऐसी हालत में  मकान मालिक  किराया भी मांग रहे हैं ? जिसके पास तन ढकने के लिए कपड़ा नहीं  पेट की आग बुझाने के लिए दो निवाला नहीं  है, वह वापस नहीं लौटेगा तो और क्या करेगा ?



   मजदूरों का अगर वर्गीकरण किया जाये तो कलम थक जाएगी। ईंट - भट्टा मजदूर फेफड़े गंवाकर रोजी कमाने में लगे हैँ।  लाखों चूड़ी मजदूर, लोहा पीट - पीट कर उसे कलात्मक रूप देने वाले, गाड़ियाँ - लोहार  से लेकर जिंदगी चलाने के लिए हम कदम - कदम पर मजदूरों का इस्तेमाल करतें हैं।  लेकिन उन्हें पेट भर खाना नसीब हो इसके लिए कभी नहीं सोचतें हैं और सरकारी योजनायें बनती भी है तो पंजीकरण के नाम पर, दफ्तर में ही कैद हो जातीं है।  


      नगर के हर बड़े चौराहे पर रोज मजदूरों का हुजूम लगता है। जहाँ आदमी रोज अपने को बेचता है। हमें तनिक भी लज्जा नहीं आती, जब आदमी- आदमी का वजन उठाता है।  रिक्शे पर बैठकर हम मोबाइल पर बतियातें रहतें हैं और बेचारा रिक्शे वाला हाँफता हुआ पसीना पोंछता हुआ सवारियों को खीचता रहता है।  हम अकड़ते हुये निर्लज्ज बैठे रहतें हैं। हम कब इस न्याय - अन्याय को परखने वाले तराजू के पसंगा बनकर अपनी लोक लुभावन भूमिका निभाते रहेंगे ? 


समाज और देश के निर्माण में मजदूरों का महत्वपूर्ण योगदान होता है  . समाज, देश व संस्था उद्योग में काम करने वाले मजदूर श्रमिक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है . लेकिन अब समय बदल गया है, इस महामारी ने हमें आत्मनिर्भरता का पाठ पढाया है.

कोरोना संकट के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है. महामारी के संकट में सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योग,  श्रमिक मजदूर, व किसान सभी आत्मनिर्भर बनेंगे और यह पैकेज उन सभी के लिए लाभदायक होगा. यह निश्चित तौर पर  महामारी से जूझ रहे इस आर्थिक संकट में  महत्वपूर्ण भूमिका  अदा करेगा .  सूक्ष्म लघु उद्योग मध्यम उद्योग श्रमिक मजदूर किसान को आत्मनिर्भर बनाने में लाभदायक सिद्ध होगा .  इस योगदान का सबसे बड़ा लाभ, देश की अर्थव्यवस्था को भी संबल मिलेगा.  लेकिन मन में संशय उपज रहा है  कि क्या इस योजना का पूर्ण लाभ  उन हाथों तक पहुंचेगा?


आत्मनिर्भर भारत का मंत्र हमें याद रखना होगा . आत्मनिर्भर भारत का सीधा सीधा अर्थ है कि विदेशी तजो और देशी अपनाअो. आज संकट की इस घड़ी में हम लोकल चीजें के भरोसे ही लाक डाउन काट रहे है. लोगों का रुझान लोकल के प्रति हुआ है और होना भी चाहिए. आखिर कब तक हम ब्रांड के पीछे भागेंगे. भारत में कारीगरों की कमी नहीं है जो उत्तम सामान कम लागत में तैयार करते हैं. हमारे लोकल का सामान भी ब्रांडेड बन सकते हैं . मैंने कई शहरों व गांवों में प्रवास किया है वहां की लोकल वस्तुओं को भी आजमाया है और उनकी क्वालिटी और गुणवत्ता में कोई कमी नहीं थी.


हमें आत्मनिर्भर बनना होगा, इससे रोजगार के साधन भी उपलब्ध होंगे. बेरोजगारी कम होगी. संसाधन उपलब्ध होनें तो रोजगार के लिएविदेश जाने की जरूरत महसूस नहीं होगी . देश में रोजगार के साधन उत्पन्न होंगे और अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा संबल मिलेगा. हमारी हर कोशिश हमारे साथ - साथ समाज को भी उन्नत करेगी . लाक डाउन धीरे धीरे हटेगा. हमें जीवन को फिर से पटरी पर लाना है लेकिन जीवन को सुरक्षित भी रखना होगा. सकारात्मक पहल द्वारा ही जीवन को पटरी पर लाने में हम सभी सफल होगें.
जय जवान जय किसान

शशि पुरवार

   

Monday, July 20, 2020

कोरोना अभिशाप में भी वरदान








कोरोना अभिशाप में भी वरदान

आज भी रोज सूरज सुबह उगता है , सांझ रात के आगोश में सपनों की मीठी गोली दे कर सो जाती है, न मौसम के चक्र बदले​, ना पृथ्वी का घूमना. आज भी चांद अपनी चांदनी यूं ही बिखेरता है. ना रात का सौंदर्य बदला, ना ही दिन की तपिश. आज भी मौसम बदल रहा है. ​ आज भी धरती तप रही है. ना प्रकृति की माया बदली , ना प्रकृति का सौंदर्य. अगर बदला है तो वह है मानव का जीवन.

कोरोना अभिशाप में भी वरदान बनकर सिद्ध हुआ है. प्रकृति से लेकर जीवन तक सकारात्मक बदलाव आने वाले समय की आहट सुना रहे हैं. प्रकृति ने स्वयं के घावों को भर लिया है. प्रकृति के लिए कोरोना जहां वरदान बना है वही मानव के लिए सबक लेकर आया है. आज हमें अपनी उन गलतियों को दोहराना नहीं है अपितु उसे सुधारकर, जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास, पूर्ण ईमानदारी से करना होगा।


जिंदगी बेतहाशा भाग रही थी . समय का अभाव मृगतृष्णा की दौड़ ने लोगों को अंधा बना दिया था. गांव मिटने की कगार पर थे और शहरों की जिंदगी बेतहाशा सरकती हुई गाड़ी के पहियों के संग रेंग रही थी . आत्मिक सुख से ज्यादा क्षणिक बाह्य सुख के लिए हम भूल भुलैया में दौड़ रहे थे. हम दौड़ रहे थे तो दुनिया दौड़ रही थी. पर किस सुख के लिये व क्यों दौड़ रहे थे ? माया साथ नही रहती, एक समय के बाद यह नश्वर शरीर नही रहता तो फिर किस दौड में हम शामिल थे व क्यों? उत्तर अंतहीन प्रश्न की तरह है. किंतु दौड़ते दौड़ते जिंदगी ही रेस से बाहर हो जाती थी . आज लोगो ने कम संसाधनों में जीवन का यापन करना पुन: सीखा है. गांवों से पलायन कर चुके क़दमों का पुनः गॉंवो में वापिस लौटना, भविष्य में गांवों के अस्तित्व को बचाने का सुखद सन्देश है .

​ कोरोना महामारी के कारण आर्थिक पारिवारिक व समय की दोहरी मार से लोगों की हालत बिगड़ रही हैं . लोग डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं . आज आत्मिक मंथन के साथ-साथ हमें व्यापक दृष्टि से मंथन करने की आवश्यकता है चाहे वह वैश्विक स्तर पर हो या आत्मिक स्तर पर . देश के अलग-अलग भागों में नेतृत्व कर रहे लोगों पर हो या जिन्हें हमने अपना बहुमूल्य वोट दिया है या खुद का आंकलन करना हो. लेकिन आंकलन करना जरुरी है। आईने की तरह स्थितियां साफ हो रही हैं कि कौन इस संकट की घड़ी में सारथी बनकर बाहर ले जाने में सक्षम है, या कौन इस परिस्थिति में अडिग रहकर भविष्य के निर्धारण में अपना योगदान देने में सक्षम है या कौन अपना ही आइना ​दिखा रहा है​.

​​ नास्त्रेदमस ने हजारों वर्ष पूर्व होने वाली इस तबाही के लिए आगाह किया था वहीँ शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है लेकिन यदि वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो जब भी पृथ्वी पर भार बढ़ता है तब इस तरह की तबाही आती है . अंग्रेजी के s और jशब्द दोनों ही पृथ्वी की संरचना को जाहिर करतें है s पृथ्वी का संतुलन दर्शाता है वही j शब्द बढ़ती ही जनसंख्या को दर्शाता है . जहाँ पृथ्वी का भार बढ़ता चला जा रहा था. बढ़ती हुई जनसंख्या,कटते हुए वन , रासायनिक उत्पादनो का प्रयोग, दूषित होता पानी , नदी नालों का भरना​ हर तरह से पृथ्वी के सौंदर्य व अस्तित्व को खतरे मे डाल रहा था

​जब जब प्रकृति पर इस तरह का संकट आता है . वह तबाही का अनकहा संदेश प्रत्यक्ष ​अप्रत्यक्ष रुप में दर्शा देती है. भूकंप के झटके, सुनामी हो या हाहाकार मचाती हुई महामारी , जैसे पृथ्वी का बोझ कम कर रही हैं . देखा जाए तो कोरोना काल को कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए ही आया है।हम प्रकृति का दोहन करें लेकिन उसके विनाश का कारण नहीं बने तो इस तरह की समस्याएं कभी जन्म ही नही लेंगी .

​आज हमें जिंदगी को जीने के तरीके बदलने होंगे . समय की वही पुरानी तस्वीर आंखों के समक्ष सामने तैर रही है . सुकून हमें अपने भीतर तलाशना होगा। समय कभी एक सा नहीं रहता है। यह वक्त भी गुजर जायेगा, कोरोना भी जीवन से निकल जायेगा। लेकिन सावधानी बेहद जरुरी है। कोरोना का बढ़ता ग्राफ हमारी असावधानी को दर्शा रहा है। जीवन अनमोल है। गलतियां न करे . अगर अभी नही चेते तो बहुत देर हो जायेगी.

इस विकट विषम परिस्थिति में स्वयं को भी संभाल​ना होगा ​ और स्वयं के साथ देश को भी आगे ले जाने का प्रयत्न करना होगा . मानसिक रुप से हमें स्वयं को मजबूत बनाना होगा .कोरोना से बाहर निकल कर वर्तमान पथरीली जमीन का साक्षात्कार करना होगा. ​आत्मसंयम, सबूरी , धैर्य व आत्मिक सुख की अनुभूति को महसूस कर, आने वाले भविष्य में प्रगति के नए मार्ग खोलने होंगे . इस संकट से निकल कर आने वाले भविष्य का नव निर्माण करना होगा।

​बेहतर होगा अपने इस समय को सार्थक कार्यों व योजनाओं को क्रियान्वित करने में लगाएं। जो भविष्य में सुखद जीवन का आधार बनेगी। लॉक डाउन में इससे बेहतर वक्त नहीं मिलेगा जब जब हम अपनी नकारात्मकता को खत्म करके सकारात्मक ऊर्जा को प्रवाहित कर सकतें है।

एक नयी सोच के नए जीवन का आगाज करें। कोरोना को अभिशाप नहीं वरदान समझें। संभले , सीखे व जीवन के बदलते स्वरुप को सहजता से स्वीकार करें . अंत में यही कहना चाहूंगी


खोलो मन की खिड़कियां, उसमे भरो उजास
धूप ठुमकती सी लिखे , मत हो हवा उदास

शशि पुरवार

Tuesday, July 14, 2020

समय की दरकार

 समय की दरकार

बेबसी में जल रहे हैं पांव तो कहीं भूख से बिलख रहे हैं गांव, हर तरफ फैली हुई त्रासदी है. मौत का हाहाकार और जिंदगी में उदासी है . यह समय इतिहास के पन्नों पर स्याह दिवस की कालिख मल रहा है. हर तरफ लाशें बिछ रही है. कहीं कोरोना जिम्मेदार है तो कहीं भूख बेबसी और लाचारी बनी हथियार है .

औरंगाबाद में हुए रेलवे ट्रैक पर मजदूरों के साथ जो हादसा हुआ है वह झकझोर देने वाला है . पलायन सतत शुरू है . कोरोना महामारी और लाचारी है तो कहीं रोटी की भूख जिंदगी पर भारी है . आज हर वर्ग,  हर उम्र के लोग इस जीवन से सीख ले रहे हैं. सबके अपने-अपने अनुभव है . छोटे-छोटे बच्चे घरों में बंद हैं . बाहर क्यों नहीं जाना है जैसे प्रश्नों पर मासूमियत दंग है.  जवाब आता है, कोरोना बाहर है इसीलिए हम घरों में बंद हैं. वृद्ध चेहरे उदास हैं ,लाक डाउन की परेशानियां चहुँ  ओर से घिर रही हैं.  हर तरफ एक ही बात नजर आती है. कहीं न कहीं किसी भी कारन से जिंदगी हार रही है . लाशों का ढेर है . समस्या विकराल होती जा रही है . धीरे-धीरे लोगों को इसकी आदत पड़ने लगी है . संकट परेशानी सभी को आ रही है . छोटी-छोटी समस्या से हम सभी दो-चार हो रहे हैं.  कल क्या होगा जैसे प्रश्न सबके जहन में कौधतें हैं .  जीवन की परी पथरीली जमीन हमें मजबूत बना रही हैं.  इस पथरीली   जमीन का सामना मैंने भी बहुत किया है,  शायद यही वजह है कि हर संकट में मन और ज्यादा सकारात्मक व मजबूत हो जाता है .

  अर्थव्यवस्था से उबरने के लिए सरकार ने शराब की दुकान है क्या खोली, मय के प्याले छलकने के लिए बेकरार हो उठे. मय का नशा ऐसा सिर पर चढ़ा कि कोरोना मन से उतर गया.  हर वर्ग के लोग लाइन में मौजूद थे. जिस घर में खाने के लिए दो वक्त का भोजन नहीं था वहां बर्तन व  घर का सामान बेचकर मय के प्याले भरने के लिए कुछ लोग बेकरार हो उठे . तो कुछ लोग कहने लगे कि कितने कष्ट भरे दिन थे 40 दिन से हम सोए नहीं . तो क्या मयखाना  जिंदगी को मौत का आगोश में जाने के  बचा सकता है . शराब के लिये लोगों ने सारे नियम कायदे ताक पर रख दिए . यह उन लोगों के प्रति भी असंवेदनशीलता है जो कोरोना की जंग जीतने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं. चाहे वह कोरोना कैरियर हो या कोरोना रक्षक. साथ ही वह लोग जो पूरे नियम कायदे से लाक डाउन का पालन करके घरों में बंद है. जिन्होंने इतने लंबे समय से एक कदम भी घर के बाहर नही निकाला है . जो बाहर के संकट के साथ घर में आए संकट से भी जूझ रहे हैं. कोरोना आ गया तो क्या अन्य बीमारियां समाप्त हो गई है ?  घरों की अर्थव्यवस्था देश की अर्थव्यवस्था सभी बिगड़ रही है . इसे पटरी पर लाने की बहुत आवश्यकता है जीवन सुचारु रुप से चले इसके लिए सभी को नियम कायदे के साथ चलने का प्रयत्न करना होगा . अपना योगदान देना होगा . भूख कभी लॉक नहीं होती है .पेट की आग बुझाने के लिए रोजगार आवश्यक है लोग फंसे पड़े हैं.  बुजुर्ग बीमार हैं बच्चे बेहाल हैं.

  अभी हमें अनिश्चितकाल तक भयावह मंजर से जूझना होगा. ऐसे में स्वयं को मजबूत बनाना ही होगा . सकारात्मक भाव से ही हम कोरोना से पूर्णत: जीत सकते हैं 
शशि पुरवार 

Saturday, July 11, 2020

जीवन जैसे हॉलीवुड फिल्मों की तरह होने लगा

जीवन जैसे हॉलीवुड फिल्मों की तरह होने लगा

 कोरोना से पहले व कोरोना के बाद का जीवन कुछ अलग रूख ले रहा है. लॉक होने के बाद से ही जिंदगी ने करवट बदलनी  शुरू कर दी थी .एक तरफ कोरोना पहाड़ जैसा खड़ा है तो दूसरी तरफ घेरती प्राकृतिक आपदाएं , टिड्डिओं की मार, भय का आतंक या फिर  बारिश अपने, तबाही के निशान छोड़ने पर आमादा है।  उस पर पड़ोसी देशों के नापाक इरादे मानवता का मजाक उडा रहे हैं. विश्व महामारी  लड़ रहा है  वहीं इनके दिमाग का फितूर विस्फोट करने पर आतुर है। सब मिलकर जैसे दुनिया को तबाह करने में लगे हुए हैं .

दुनिया रहस्यमई लगने लगी है . जहां भी नजर घुमाओ हाहाकार मचा हुआ है . हॉलीवुड फिल्मों की तरह जीवन कीडे मकोडे सा रेंगता नजर आता है. हर तरफ चलता फिरता इंसान जैसे कोरोना नजर आता है. मौत स्वंाग रचकर कब आपके दरवाजे पर दस्तक दे, कब अपने आगोश में ले, पता नही चलेगा . खाने के सामान हो या सब्जीयां, हर वस्तु शक के दायरे में है. पहले शक जीवन को बर्बाद करता था. अब शक ही जीवन को अाबाद का जरिया बनेगा. हर सामान व इंसान कोरोना शक के घेरे में है. आज अपने ही घर में हवा भी शक के दायरे मे आ गयी है. हर सामान को हाथ लगाने से पहले उसे धोते रहो, जिदंगी पानी व साबुन के बीच सिमट गई है.

लॉक से लेकर अनलॉक तक जिंदगी  हर कदम पर करवट बदल रही है व दिन पर दिन हालात बिगड रहे है. अाज बाजारों में दुकाने खुली है तो ग्राहक नदारद हैं . मॉल खुले हैं तो उनकी दुकानें बंद हैं . रोजमर्रा के सामान सब्जी मंडी , किराना व खाने की दुकाने जहाँ भीड़ उमड़ रही है पर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जिया भी उड रही है . यह जगह कोरोना विस्फोटक  सेंटर नजर आने लगा है .

किसान मजदूरों की तरह बाहर निकलकर टिड्डिओं को भगाने में लगे हैं. होटल खुले हैं लेकिन वहां के नजारे तो देखिए कि सोशल डिस्टेंसिंग , हाथ में ग्लोब्स व  मुंह पर मास्क है जैसे हम किसी सर्जिकल कार्य के लिए जा रहे हो. तो कही ठेले पर एेसी भीड उमडी जैसे भूखे के सामने व्यंजन रख दिये हो. कोरोना हमें खाए या हम ही इसे खा ले.

मास्क जीवन बचाने की आज पहली जरुरत है। जगह जगह कोविड सेंटर तैयार की जा रहे हैं लेकिन बढता संक्रमण व बेड  का हाउसफुल होना  हमारी लचर व्यवस्था को उजागर कर रहा है।

   अंदर की तस्वीर कुछ और ही बयां करती है. एक बार जो कोविड सेंटर के अंदर चला गया उसका बाहरी दुनिया से नाता ही टूट जाता है . बाहर क्या हो रहा है और अंदर क्या हो रहा है . रहस्य की तरह है. अंदर किसी बात की जानकारी नही मिलती. रोज लाशे दखने के बाद अस्पताल भी अभ्यस्त हो गये है. वे कम सुविधा में किसे बचायेगे, लाखों का पैसा भी जीवन बचाने में असफल है . जो सलामत बाहर आ गया वह जंग जीत गया .तालियां और फूल  उसका स्वागत करते हैं , अगर नहीं तो  बिना किसी क्रिया के सीधे शव गृह में जला दिया जाता है . मेरे करीबी मित्र के यहां कोरोना संक्रमण हुआ तो पूरा परिवार बिखर गया .  परिवार में 4 लोग चारों कोरोंनटाइन हुये. एक दूसरे से मिलना तो दूर से बात तक नही हो सकी . एक – दूसरे की उन्हें कुछ खबर ही नहीं थी।  कुछ दिनों बाद सूचना मिली कि एक सदस्य जीवन ही हार गया और उसके शव को अन्य रिश्तेदार को दूर से दिखाकर जला दिया . शेष अपने जीवन से लड रहे है.  

 अस्पतालों में सुविधआ की खस्ता हालत मरीजों की बढ़ती संख्या जिसे संभावना मुश्किल है।  प्रतीत होता  है कि अस्पताल उस गुफा के समान हो गए हैं जहाँ जाने के बाद अाप दुनिया से  क्या जीवन से कट रहे है. वहाँ जाना ही कोरोना को साथ लाना है. कोरोना की बढ़ती रफ़्तार कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड है लेकिन सरकार मानने के लिए तैयार ही नहीं है . हमारी लचर   व्यवस्था से लोगो की जान पर बन आयी है।  सबने अपने हाथ खड़े किए हुए हैं . लेकिन राजनिति में नेता दल बदल करने में लगे है. चहुँ अोर मौत अपने स्वांग रचकर अा रही है. पिक्चर अभी बाकी है.


कोरोना फिल्म का दी एंड तो किसी को नहीं पता , लेकिन लोगों में जन्में मानसिक विकार व  ऐसे समय भी सरहदों पर चल रही गर्मा गर्मी मानसिक विकृति का ताजा उदाहरण है . जहां  संवेदनाएं पूर्णतः मर गई है. फिलीपींस जैसे देशों में भूख के कारण बदहाल   होती जिंदगी को बचाने के लिए लोगों ने अपने बच्चों का उपयोग करना शुरू कर दिया . उनके पोर्न वीडियो बनाकर 1000 में बेचने लगे है।  छोटे-छोटे बच्चों के साथ मानसिक और शारीरिक अत्याचार होने लगा है। भूख कहीं लोगो को आदिम ना बना दें. स्वार्थ की लालसा में आज जीवन नये चौराहे पर है. बहलाने के लिए बाते बहुत है, विकास के साधन बहुत है, लेकिन जमीनी हकीकत अपने निशान छोडने लगी है.

  हाशिये पर खड़ी जिंदगी जैसे एक कोरोना  विस्फोट के बाद तबाही  की नयी तस्वीर लिखेगी .  तबाही का मंजर आंखों के सामने होगा . लाशों में हम क्या व किसे ढूंढेगे बेहतर होगा जिंदगी को बचाने के तरीके ढूंढें. छोटी सी लापरवाही पल भर में  जिंदगी की तस्वीर बदल सकती है। 

शशि पुरवार .

Sunday, July 5, 2020

कोरोना काल के दोहे -2

बदला बदला वक्त है, बदले हैं प्रतिमान 
संकट में जन आज है, कल का नहीं ठिकान

खोलो मन की खिड़कियां, उसमे भरो उजास 
धूप ठुमकती सी लिखे, मत हो हवा उदास 

जाती धर्म को भूल जा, मत कर यहाँ विमर्श 
मानवता का धर्म है, अपना भारत वर्ष 

शहरों से जाने लगे, बेबस बोझिल पाँव 
पगडण्डी चुभती रही, लौटे अपने गाँव 

काँटे चुभते पांव में,बोया पेड़ बबूल 
मिली न सुख की छाँव फिर, केवल चुभते शूल 

राहों में मिलते रहे, अभिलाषा के वृक्ष 
डाली से कटकर मिला, अवसादों का कक्ष 

जब तक साँसें हैं सधी, करों न मन का हास
तूफां आते हैं सदा, होते सकल प्रयास 

शशि पुरवार 

Friday, July 3, 2020

कोरोना काल के दोहे

रौनक फीकी पड़ गयी, सड़कें भी सुनसान 
दो कौड़ी का अब लगे, सुविधा का सामान 

सुविधा के साधन सभी, पल भर में बेकार 
कैद घरों में जिंदगी, करे प्रकृति वार 

सूरज भी तपने लगा, सड़कें भी सुनसान 
परछाई मिलती नहीं, पहरे में दरबान 

घी चुपड़ी, रोटी, नमक, और साथ में चाय 
जीरावन छिड़को जरा, स्वाद, अमृत, मन भाय 
 

थमी हुई सी जिंदगी, साँसें भी हलकान 
सिमटा सुख का दायरा, रोटी और मकान 

भाग रही थी जिंदगी, समय नहीं था पास
पर्चा बाँटा काल ने, करा दिया अहसास 


 शशि पुरवार 

Sunday, June 28, 2020

जहान है तो जान है



भोर  हुई मन बावरा, सुन पंछी का गान
गंध पत्र बांटे पवन  धूप रचे प्रतिमान

प्रकृति का सौंदर्य आज अपने पूरे उन्माद पर है. प्रकृति की अनुपम छटा आज पुनः  अपनी मधुरता का एहसास करा रही है.  सुबह फिर सुहानी सी कलरव की मधुर आवाज से करवट बदलती  है तो शाम  की शीतल मधुर फुहार  व हवा में ताजगी का अनोखा अहसास, जीवन में रंग भर रहा है.  पावन गंगा निर्मल स्वच्छ होकर बह रही है, गंगा का पानी साफ हो गया है. धरती का अंग अंग प्रफुल्लित होकर खिल रहा है. गंगा में डॉल्फिन का दिखना, सड़कों पर जानवरों का विचरण करना, प्रकृति का सुखद संदेश है.  भय मुक्त प्राणी  मानव द्वारा तय की गई सीमा से बाहर स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं. ओजोन की परत पूर्णतः भर गई है प्रकृति के कितने विहंगम दृश्य हैं,उसका सौंदर्य अकल्पनीय है.   

अभी तक हम प्रकृति में हो रहे विनाश के लिए चिंतित थे. लेकिन प्रकृति ने स्वयं के घावों को भर लिया है. पात- पात डाल- डाल खिल रहे हैं. कोरोना काल का सबसे ज्यादा सकारात्मक प्रभाव प्रकृति पर दिखा है, प्रकृति  पुनः  अपनी प्राकृतिक सौंदर्य की पराकाष्ठा को दिखा रही है.  मैं आज तक उस पावन गंगा नदी को नहीं भूली हूँ. पटना में गंगा नदी के किनारे बचपन की अनेक यादें आज भी ताजा है. घर के पास बचपन में गंगा घाट पर बैठकर उसके पावन जल में डुबकी लगाना व प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को निहारकर नयनों में कैद करना तो  वहीं प्रकृति की मार से विस्मित होना. जहां निर्मल पावन गंगा मानव के पाप धोते-धोते कलुषित हो गई थी. इस मानवी भूल व कुप्रथाओं का परिणाम हम सब ने देखा है.

  देखा जाए तो कोरोना काल कुप्रथाओं को खत्म करने के लिए ही आया है. हम प्रकृति का दोहन करें,  किंतु उसके विनाश का कारण नहीं बने.  जहान है तो जान है.  आज हमें प्रकृति से जीने की प्रेरणा लेनी चाहिए

एक वायरस प्रकृतिक साधनो व जीव जंतु का कुछ भी अहित नहीं कर सका, लेकिन मानव के कलुषित मन से जन्मा वायरस आज मानव के लिए ही प्राण खाती बन गया है. कोरोना से डर कर नहीं उसके साथ जीने के तरीके सीखने  होंगे. जीने के अंदाज बदलने होंगे.  प्राचीन संस्कृति की अच्छी बातें पुनः याद कर के नया अध्याय लिखना होगा. जीवन जीने के मायने व तरीके बदलेंगे, कुप्रथाएं समाप्त होंगी और होनी भी चाहिए आखिर कब तक हम कुप्रथाओं के बोझ तले जीवन का पहिया खीचेंगे.  कुरीतियां कब तक अपने फन मारेगी. लाक डाउन ३ जान है, जहान है का मंत्र लेकर आया है

सरकार जीवन की गाड़ी धीरे-धीरे पटरी पर लाने का प्रयास सरकार कर रही है. रेड, ग्रीन, ऑरेंज जोन के साथ मानवीय चहल-पहल शुरू होगी. लेकिन यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम पूरी प्रकृति को ग्रीन जोन में परिवर्तित करें. कहतें है ना कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी. ऐसी स्थिति से बचने के लिए कदम कदम पर सावधानी जरूरी है. मैं तो यही कहूंगी कि जहान है जान है,  दोनों एक दूसरे के पर्यायवाची हैं . जान के साथ जहान का भी ख्याल रखें तो जान अपने आप बची रहेगी. जीवन फिर पटरी पर आकर नए अंदाज में अपना नया अध्याय लिखेगा। 

 हम वायरस को खत्म तो नहीं कर सकते लेकिन उसकी चैन को जरूर तोड़ सकते हैं .  उसकी चेन तोड़कर उसे अपने जीवन से समाप्त कर सकते हैं . हमें सावधानी के साथ जीवन का नए अध्याय  की शुरुआत करनी होगी.

 मुंह पर मास्क लगाकर, 2 गज की दूरी बनाकर, अनावश्यक होने वाले समारोह सोशल कार्यक्रम एवं दिखावे से दूर रहना होगा.  भीड़ को इतिहास बनाना होगा. जीवन को सुचारु रूप से चलाना होगा .

आज मजदूर अपने अपने गांव जा रहे हैं.  अगर दूसरे नजरिए से देखा जाए तो यह सुखद है. परिवार पूर्ण होंगे, गांव में भी रोजगार उत्पन्न होंगे.  शहर व गांव दोनों गुलजार होंगे. गांव की सौंधी महक जो सिर्फ  पन्नों में सिमट कर रह गई थी, अब पुनः अपना नया अध्याय लिखेगी 

जीवन आज नया अध्याय लिखने के लिए तैयार है .हमें डरकर नहीं कोरोना को हराकर जीना है . प्रण करें कि स्वयं के साथ प्रकृति की भी रक्षा करेंगे तो भविष्य में कोई भी आपदा अपना कुअध्याय नहीं लिखेंगी. यदि हम कांटे बोलेंगे तो फिर  फल कहां से पाएंगे इसीलिए तो कहती हूँ 

कांटे चुभते पांव में, बोया पेड़ बबूल
मिली ना सुख की छांव फिर केवल चुभते शूल 

 आज कोरोना के सकारात्मक  प्राकृतिक परिणाम को देखते हुए हमें स्वयं को सकारात्मक रखना होगा. अपने आने वाले जीवन के लिए खुद को तैयार करना होगा.  जीवन अपना नया अध्याय लिखने के लिए तैयार है, लॉक डाउन धीरे धीरे ख़त्म हो जायेगा , यह लॉक डाउन  हमें बहुत कुछ सीख देकर जा रहा है. सावधानी रखें, बुजुर्ग व बच्चों का विशेष ख्याल रखें.    कोरोना का लॉक डाउन बनाये . हम पुनः खड़े होंगे, भारत कमजोर नहीं है ना ही यहाँ के लोग कमजोर है.  हर परेशानी को काटना हमें आता है. इन पलों में स्वयं को मजबूत करें जिससे आने वाला समय सुखद पलों का साक्षी बने. अंत में यही कहना चाहूंगी-

आशा की रागिनी जीवन की शमशीर 
सुख की चादर तानकर फिर सोती है पीर 

शशि पुरवार 


Saturday, June 27, 2020

जीवन बचाने के लिए चिंतन जरूरी- कोरोना काल


  जीवन बचाने के लिए चिंतन जरूरी

मनुष्य व प्रकृति को बचाने के लिए चिंतन करना आज जीवन की महत्वपूर्ण वजह बन गई है. अपराधी सिर्फ वह लोग नहीं हैं जो खूंखार कृत्यों को अंजाम देते हैं अपितु प्रकृति के अपराधी आप और हम भी हैं, जो प्रकृति पर किए गए अन्याय में जाने -अनजाने सहभागी बने हैं.

मौसम के बदलते मिजाज प्रकृति के  जीवन चक्र में हस्तक्षेप करने का नतीजा है.   लाक डाउन के बाद भी  कोरोना  के बढ़ते कदम विनाश की तरफ जा सकते हैं, जिसे रोकना बेहद जरूरी है.

मानव ने  चाँद  पर कदम रखकर फतेह हासिल  की  व आज भी अन्य ग्रहों पर जाकर फतेह करने का जज्बा कायम है . लेकिन क्या प्रकृति पर काबू पाया जा सकता है ? प्रकृति जितनी सुंदर है वहीं उसे बंजर बनाने में मानव का बहुत बडा हाथ है. धरती को रासायनिक उर्वरों व संसाधनों द्वारा बंजर व शुष्क बनाकर मानव, आग में घी डालने का काम कर रहा है. क्योंकि प्रकृति जहरीली गैसों से भरा बवंडर भी है. हम मानव निर्मित संसाधनों द्वारा प्रकृति से खिलवाड़ करके अपनी ही सांसों को रोकने का प्रबंध कर रहे हैं. आज हम विश्व स्तर पर प्रकृति से युद्ध लड़ रहें  हैं. जिसमें उसका हथियार एक अदृश्य सूक्ष्म जीव है . जिसने आज  जगत  ,में  कहर मचा रखा है. प्रकृति ने समय-समय पर अपनी ताकत का एहसास मनुष्य जाति को कराया है. लेकिन मानव फिर भी नहीं सँभला . विकास को विनाश में परिवर्तित करने वाली स्मृतियां इतिहास में आज भी सुरक्षित हैं.

हम सबने प्रकृति का विध्वंस स्वरूप भी देखा है. कटते वन, पर्यावरण प्रदूषण, रासायनिक संसाधनों का दुरुपयोग, प्लासटिक, कचरा ...इत्यादि के कारण बदलते मानसून , भूकंप, बादल फटना, महामारी, सूख, प्रलय ... आदि प्रकृति के जूवन चक्र में   हस्तक्षेप करने का दुष्परिणाम है. पहले भी कई महामारी आई, धरा का संतुलन बिगडा, उसके बाद जीवन को पुन: पटरी पर लाने के लिए बहुत जद्दोजहद करनी पडी है. हम सबने  सुना  है कि जब जब धरती पर बोझ बढता है वह विस्फोट करती है. प्रकृति अपने अस्तित्व को बचाने के लिए मूक वार करके अपना विरोध जाहिर कर देती है . लेकिन दंभ में डूबा यह मानव मन कहाँ कुछ समझना चाहता है?

मानव की मृगतृष्णा,अंहकार की पिपासा के कारण ही संपूर्ण विश्व पर संकट मंडरा रहा है . कुछ देशों द्वारा स्वयं को शक्तिशाली घोषित करने के लिए किसी भी हद तक जाना शर्मनाक कृत्य है. इन विषम परिस्थिति में सीमा पर गोलीबारी होना , सीजफायर तोड़ना, किसी आतंकवादी होने से कम नहीं है .यह उनके कुंसगत मन का घोतक है. क्या एेसे तत्व मानवता के प्रतीक हैं ? चीन द्वारा जैविक हथियार बनाना उसी की दूषित करनी का फल है. यह कैसी लालसा है जिसमें उसने करोडो जीवन दांव पर लगा दिये. उसकी लोभ पिपासा महामारी बनकर जीवन को लील रही है. जिसका खामियाजा संपूर्ण विश्व भुगत रहा है. मानव जाति का अस्तित्व खतरेें में है .स्वयं को शक्तिशाली घोषित करने के लिए विश्व की शक्तियां किसी भी स्तर तक गिर सकती है , जहां से सिर्फ पतन ही होगा . लेकिन अभी इन बातों से इतर जीवन को बचाना महत्वपूर्ण है.

कोविड-19 के कहर से संपूर्ण विश्व ग्रस्त है . वैश्विक संकट गहराता जा रहा है . तेजी से बढ़ता संक्रमण चिंता का विषय है, लेकिन साथ में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा अमानवीय व्यवहार करना, हमारी प्राचीन संस्कृति व सभ्यता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं.

यह कैसी प्रगति है क्या हमारे कदम आगे बढ़े हैं? या हमें दो कदम पीछे जाकर चिंतन करने की आवश्यकता है? क्या मानवीय संवेदनाअों की मृत्यु हो गई है? या संवेदनाएं ठहरने लगी है. हिंसा का यह दौर किस पृष्ठभूमि से जन्मा है? किताबी ज्ञान, साहित्य, समाज व मनन चिंतन के अतिरिक्त हमें अपनी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के गलियारों में घूमने की आवश्यकता है. पीडा से ग्रस्त जीवन घरों में कैद है, कहीं वह विकृति को जन्म दे रहा है तो कहीं शारीरिक व मानसिक हिंसा द्वारा जीवन के मूल्यों का हृास हो रहा है.

संकट के इस दौर में असामाजिक तत्वों द्वारा हिंसा के समाचार मानवीय पतन का परिचायक है. सेवा कर्मचारी, डाक्टर, कुछ लोग, कई संस्थाएं अपनी जान जोखिम में डालकर निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहीं हैं . इनके साथ दुर्व्यवहार करने की खबरें मन को आहत करती है. कोविड-19 को हिंसा द्वारा नहीं संयम द्वारा ही जीता जा सकता है आज इस संयम की संपूर्ण विश्व में आवश्यकता है.

जीवन महत्वपूर्ण है, जान है तो जहान है. मानव ही मानव को बचाने का माध्यम बना है . एक दूसरे की मदद करना, सोशल डिस्टसिंग एवं स्वयं के संक्रमित होने की सही जानकारी सरकार को प्रदान करना जिससे एक नहीं हजारों - लाखों जीवन को बचाया जा सकता है. जिसमें सामर्थ है वह मदद करें जिससे गरीबों की परेशानियों का हल भी निकल सकता है.कोरोना की चैन को तोड़ना आवश्यक है वरना यह नरसंहार विश्व में तबाही का बहुत बड़ा कारण बनेगा.

राज्य सरकारी धीरे-धीरे लॉक डाउन बढ़ा रही है . जीवन को गति देने के लिए नियमों का पालन करना बेहद जरूरी है किंतु अभी मैं बहुत से लोग नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं, ऐसा करके वह स्वयं की जिंदगी को भी खतरे में डाल रहे हैं. शांत रहें, नियमों का पालन करते हुए काम करें . असंयमित, अस्त व्यस्त हुए जीवन को आज संयम, चिंतन व अनुशासन द्वारा ही बचाया जा सकता हैं. जिससे हम सभी को कोरोना के भय से निजात मिले.

शशि पुरवार 




Wednesday, June 17, 2020

बाल कवितायेँ




1
जीवन में कुछ बनना है ,तो
लिखना पढना जरुरी है
रोज नियम से अभ्यास करो
मन लगाकर ही पढना
गर्मी की छुट्टी आये ,तब
खूब धमाल करना
न मेहनत से जी चुराओ
ज्ञान लेना भी जरुरी है .


झूठ कभी मत बोलना , तुम
सच्चाई का थामो हाथ
नेक राहों पर चलने से ,बड़ो
का मिलता है ,आशीर्वाद 
अच्छी अच्छी बाते सीखो
अच्छी संगति  जरुरी है .
वृक्षों को  तुम मत काटना
हरियाली भी बचानी है
पेड़ों से ही हमको मिलता
अन्न ,दाना -पानी है
प्रदूषण को मिलकर मिटाओ
पेड  लगाना  भी जरुरी है

देश के तुम हो भावी प्रणेता
राहों में आगे बढ़ना
मुश्किलें कितनी भी आयें
हिम्मत से डटे रहना
भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना
चैनो -अमन भी जरुरी है
-------- शशि पुरवार
२८/ ९/ १३

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१ 
चंदा मामा --
चंदा  मामा
तुम जल्दी से आ जाना
हाँ  प्यारे प्यारे सपने
मेरी इन आँखों में लाना
मामा  तुम जब आते हो
मन को  बहुत लुभाते हो
दीदी - भैया मुझे कहे  
सब मुझे , यही कहते है
हमें  कितना सताते हो।

चंदा मामा 
तुम जल्दी से आ जाना। .......... !

मामा जब तुम आते हो 
तो ,माँ भी आ जाती है 
प्यारी प्यारी कहानियाँ 
वह रात में सुनाती  है  


चंदा मामा ,
तुम जल्दी से आ जाना  ………।  

मामा जब तुम आते हो 
माँ लोरी भी सुनाती है 
खूब खेलती औ  हँसती
फिर धीरे से कहती है  
"लल्ला , अब तुम सो जाना "

चंदा मामा , 
तुम  जल्दी  से यहाँ आना 
फिर वापिस मत जाना।  
 --- शशि पुरवार

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२  नाना - नानी

नाना - नानी कितने प्यारे
हमें खूब लाड लड़ाते है
जब भी हमसे मिलने आते
वह खेल खिलौने लाते है

हमें  रोज शाम बगीचे में 
टहलाने  भी ले  जाते है
रोज हमारे साथ खेलते
जमकर  बातें करते है
मम्मी -पापा की डाँट से
हमें चुपके से बचाते है


लड्डू पेड़े और  रसगुल्ले
गब्ब्बारे भी दिलावाते है
हमसे गलती हो जाने पर
बड़े प्यार से समझाते है


नयी नयी बातें सिखलाते
कथा -कहानियाँ सुनाते है
नाना - नानी सबसे प्यारे
हमें खूब लाड लड़ाते है।

--- शशि पुरवार
१३  / 12 / 13 



सुबह सुबह -
कुकड़ू कु  कुकड़ू  कू

सुबह सुबह मुर्गा बोला

ढलती रात
, निकलता दिन
 मेरामन  भी है  डोला
जब भोर को ठंडी हवा
पत्तों से टकराती है
चिड़िया भी दाना चुगने
झट से नीचे आती है

सूरज को निकलते देख
कौवा काँव काँव बोला

सुबह सुहानी धूप खिली
  तो पंछी भी इतराये
बागों में कलियाँ झूमे
फिर
,भँवरे भी  मँडराये  

शुरू हुई चहल-पहल , फिर
तोता राम राम बोला।

 -- शशि पुरवार
१३/१२/१३

------------

४ 

चींटी रानी
चींटी रानी बहुत सयानी
नहीं श्रम से घबराती है
अपने कद से ऊँचा भोजन
बहुत जतन  से ले जाती  है


वह मिलजुल के काम करे
अनुसाशन सिखलाती  है
चीटियों के संग उनकी
ताकत भी  दिखलाती है
नहीं रूकती नहीं हारती 
सिर्फ कर्म करती जाती है
फल की चिंता छोड़कर ,बस
मंजिल के पथ पर जाती है


 -- शशि पुरवार

Monday, June 15, 2020

सपनों में रंग भरे


सपनों में रंग भरे
सपनो में रंग भरे
नैना सजल हुये
जितने भी जतन करे।

पहन रहे हैं गहना
हार बिंदी कंगन
फूल खिले मन, अंगना

छेड़ रही है साली
जीजा घर आये
खुशियों की दीवाली

फिर सजनी ने माँगा
सोने का गहना
साजन बोले ताँगा

संध्या में दीप जलें
खुशियों के पाहून
घर - अँगना ज्योति खिले

यह चंदा मेरा है
मन को अति भाये
तन, रूप चितेरा है

सपनो में रंग भरो
नैना सजल हुये
जितने भी जतन करो।

पहन रहे हैं गहना
हार बिंदी कंगन
फूल खिले मन, अंगना


छेड़ रही है साली
जीजा घर आये
खुशियों की दीवाली
१० 
फिर सजनी ने माँगा
सोने का गहना
साजन बोले ताँगा
११
संध्या में दीप जलें
खुशियों के पाहून
घर - अँगना ज्योति खिले
१२
यह चंदा मेरा है
मन को अति भाये
तन, रूप चितेरा है
१३
बच्चों की शैतानी
माँ बचपन जीती
नयनों झरता पानी

१४
माँ ममता की धारा
पावन ज्योति जले
मिट जाए अँधियारा

१५
मन चंदन सा महके
ममता का आँचल
भोला बचपन चहके
 शशि पुरवार 


Tuesday, June 9, 2020

बेटियां अनमोल हैं

 
   
   ब्रम्हा जी की  स्रष्टि की सबसे अनुपम कृति है बेटियाँ .  ब्रम्हा जी ने संसार की उत्पत्ति के समय देवी रुपी कन्या की कृति बहुत मनोयोग से बनायीं और उसे सर्वगुण संपन्न   का वरदान देकर पृथ्वी पर  अवतरित किया।  नर और नारी दोनों ही संसार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है परन्तु कन्या  इस संसार को नवजीवन  प्रदान करती  है , जिस कार्य   को पुरुष अकेला नहीं कर सकता वह कार्य    नारी  द्वारा ही संभव है .. एक बेटी के रूप में जन्मी परी को उस  देवी के समान माना गया है जो सिर्फ खुशियाँ ही बाँटती  है , परन्तु आज उस देवी रुपी कन्या का अस्तित्व ही खतरे में है , आज मानव रुपी दानव उन्हें जड़ से उखाड़ फेकने  पर आमादा है . 

    इतिहास गवाह है कि  बेटियों ने भी बेटो की तरह  अपने  परिवार ,समाज और वतन में  अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।  घर और बाहर की दुनिया में वे पूरी निष्ठां के साथ अपने कार्य को अंजाम देती हुई ही नजर  आतीं हैं .अनगिनत नाम है जिन्होंने देश और समाज में  द्वारा सुनहरे अक्षरों में अपना नाम अंकित किया . रानी लक्ष्मी बाई . झलकारी बाई , अहिल्या बाई  होलकर ,सावित्री फुले , इंदिरा गाँधी , कल्पना चावला  ........वगैरह  अनेक नाम ऐसे है जो वतन का नाम रोशन कर गए . 

                       आज भी हर क्षेत्र में बेटियों  अएक विशिष्ट स्थान बनाया है ,चाहे वह खेल हो . राजीनीति , व्यापार बिजनिस ,चित्रपटल , पत्रकारिता ,या देश का सर्वोच्च शिखर  हर जगह बेटियों ने अपने कार्य से पताका फहरा रखा है .परन्तु  आज भी दोहरा मापदंड समाज में कायम है  और यह पाखंडी समाज अपनी ही जननी को जड़ से उखाड़  फेकने पर आमादा है ,  बेटी को पराई कहने वालो ने ह्रदय से बेटी को कभी नहीं स्वीकारा . बेटी का शोषण तो परिवार से ही शुरू हो जाता है , शादी के पहले भी बेटी पराई  अमानत ही मानी जाती  है और शादी के बाद भी पराई ही कहलाती है .
                   वक़्त  बदल गया है परन्तु  फिर भी स्थिति  बेहद चिंताजनक है क्यूंकि  आज बेटियों की  संख्या में कमी पाई गयी है  . बेटियों की  हत्या कोख  में ही कर दी जाती है . यह  गलत परंपरा सिर्फ अशिक्षित , निम्न ,और मध्यमवर्गी वर्ग ही नहीं अपितु शिक्षित व उच्चवर्गीय वर्ग भी उसी  गलत परंपरा की अर्थी को कन्धा दे रहा है .

          इस घ्रणित  कार्य का खुलासा तब हुआ जब  भारत की जनगणना में आंकड़े सामने आये देश के सम्रद्ध राज्यों  में यह प्रवृति  अधिक देखने को मिली . देश की जनगणना के अनुसार 2001 एक में 1000 बालको में बेटियों की संख्या पंजाब में 789 , हरियाणा में 819 और गुजरात में 883 पाई गयी थी . जो चौकाने वाले आंकड़े थे , 2012 तक कहीं कहीं स्थिति में थोडा सा सुधार  हुआ , परन्तु आज भी संकट कायम है बेटियों पर .हम अक्सर समाचार पत्रों में पढ़ते रहते है भ्रूण हत्या के मामले के बारे में  .     

             मानव यह क्यूँ भूल जाता है कि  उसे जन्म देने वाली भी एक स्त्री ही होती है जिस कोख से वे जन्म लेते है आज उसी के अस्तित्व को नकार रहे है .परन्तु यह खेद जनक है कि  जिस कोख से देव जन्मे आज  उसे ही कोख में मार दिया जाता है  .  सिर्फ बेटो को जन्म देने से कुछ नहीं होगा ,नहीं तो एक वक़्त ऐसा आएगा की बेटियों की कम जन्मदर  , भविष्य में एक नया ही चित्रपटल बनाएगी , आज शादी के लिए लोग लड़का ढूंढते है परन्तु  वह वक़्त दूर नहीं होगा  ,जब  चिराग लेकर बेटियाँ ढूंढेंगे .हर तरफ सिर्फ बेटे ही बेटे होंगे तो सोचिये कैसा स्वरुप होगा समाज का ...........!

         सिर्फ साउथ में ही हमें स्त्रिया  ज्यादा देखने को मिलती है और वहां संपत्ति की वारिस सिर्फ लडकियां ही होती है , इसीलिए वहां बेटियों का ज्यादा महत्व ज  है . पश्चिमी सभ्यता में नारी और पुरुष को समान  अधिकार प्राप्त है .नारी को पूरा मान सम्मान प्रदान किया जाता है .

  बेटियाँ बहुत अनमोल है उनकी रक्षा कीजिये, नहीं तो हमेशा के लिए सिर्फ यादों में रह जाएँगी बेटियाँ . जहाँ कहीं भी यह घ्रणित  कार्य होते हुए देखें तो कानून का सहारा जरूर लीजिये और जिंदगी की रक्षा कीजिये .
    कानूनी कानूनी अधिकार    क़ानून में नारी अधिकारों के लिए कुछ नियम बने है जिन्हें हर नारी को जानना जरूरी है .
  - अपने अधिकारों का उपयोग करना चाहिए , अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है यदि आप अन्याय सहते है तो आप भी उतने ही गुनाहगार होते है .
---  यदि कोई भी परिवार में नारी पर जुल्म करता है तो घरेलु हिंसा के तहत सजा का प्रावधान है  .
 घरेलु  हिंसा के तहत  माता -पिता और ससुराल वाले  दोनों को ही क़ानून में समान माना गया है .
---- खानदानी सम्पति में भी नारी का अधिकार सामान रूप से है .
--- अत्याचार करने  या घर से प्रताड़ित किये जाने पर भी सजा का प्रावधान है .
------ मानसिक एवं शारीरिक दोनों रूप से प्रताड़ित किये जाने पर भी संविधान में सजा का प्रावधान है .
-------- विधवा , अविवाहित , तलाकशुदा के लिए अभिरक्षा व भरणपोषण का अधिकार है .
--- छेड़छाड़ के विरुद्ध भी सजा है और जुर्माना भी .
----दहेजप्रथा के खिलाफ भी सजा का प्रावधान है
--- कानून में बहुत से नियम ऐसे है जो नारी की हर छोटी छोटी समस्याओं को दूर कर , उसका अधिकार उसे दिलाते है , तो नारी को अपने सभी मौलिक अधिकारों के मामले में सजग रहना चाहिए .
---हिंसा की  शिकार हुई  नारी अपने साथ हुए अन्याय के  लिए कानून की मदद ले सकती है .
----  आज क़ानून में  भ्रूण हत्या के लिए भी  सजा का प्रावधान है .
------ लिंग भेद करने पर डाक्टर का सर्टिफिकेट रद्द किया जा  सकता  है
-------  लिंग भेद कानूनन अपराध  है .
---- यदि कोई स्त्री गर्भ धारण के बाद अपने बच्चे को किसी भी प्रकार से हानि पहुचाती है तो वह भी गुनाहगार है और सजा की हकदार .
----- किसी भी प्रकार की बेटियों पर यदि जुल्म होता है तो सभी को सजा दी जाती है .
----- आनैतिक , और अस्मिता से खिलवाड़ करने वालो के लिए कानून में जुर्माना और सजा का प्रावधान है
     आजकल  फास्ट ट्रेक , फॅमिली , क्रिमिनल कोर्ट  सभी जगह इन मामलो को जल्दी से सुलझाया जाता है .लोक अदालत में भी कई मामले जल्दी से निपटाए जाते है  तो इसका सहारा जरूर लेना चाहिए , यह अधिकार है नारी का .

              नारी एवं पुरुष दोनों ही सृष्टि के अहम् किरदार है , दोनों  एक दूसरे के पूरक है . दोनों को आपसी तालमेल और समझदारी की आवश्यकता है , जो सारी समस्याओं को जड़ से दूर कर देगा   .
कोर्ट में इन मामलो  की अलग से सुनवाई होती है . बेटियों के प्रति नजरिये को बदलना बहुत आवश्यक है .
 ----------- शशि  पुरवार


समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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