१
लहक उठी है जेठ की, नभ में उड़ती धूल
कालजयी अवधूत बन, खिलते शिरीष फूल।
२
चाहे जलती धूप हो, या मौसम की मार
हँस हँस कर कहते सिरस, हिम्मत कभी न हार.
३
लकदक फूलों से सजा, सिरसा छायादार
मस्त रहे आठों पहर, रसवंती संसार।
४
हरी भरी छतरी सजा, कोमल पुष्पित जाल
तपकर खिलता धूप में, करता सिरस कमाल।
५
फल वृक्षों के कर रहे, मौसम से अनुबंध
खड़खड़ करती बालियाँ, लिखें मधुरतम छन्द।
-- शशि पुरवार





