आज देश लाइन में लगा है, वैसे भी लोगों को लाइन में लगने की आदत सी है, कोई नयी फिल्म का पहला दिन हो तो टिकिट खिड़की पर लंबी लाइन ,जैसे पहले दिन ही किला फतह करना हैं. फ़िल्मी सितारों के दर्शन हों या लालबाग का राजा , स्कूल में एडमिशन हो या परीक्षा के फॉर्म,जिओ फ्री फ़ोन मिले या रिचार्ज , राशन - पानी या पेट्रोल - या चौकी धानी, हर जगह लाइन का अनुशासन बरक़रार है इसीलिए सरकार को हमारी दरकार है। फिर नोट बदलने के लिए इस लंबी लाइन पर विपक्ष काहे भड़क रहा है, अब का करें मिडिया को भी रोज तमाशा देखने की आदत पड़ गयी है। तमाशा करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैं। हर तरफ मचा हुआ हाहाकार हैं। सालों पहले ५ -१० पैसा, चवन्नी और रूपया न जाने कितने सिक्के गुमनाम हो चुके हैं ..
हमारी आम जनता पहले भूख से मरती थी आज लाइन से मर रही है. गरीब बेचारा मरता क्या न करता, पेट की दरकार है ,अव्यवस्था व्याप्त है। धन मिले तो धान्य मिले। इसी बात की तकरार है।
अब घर कैसे चले, आज हम भी उसी स्थिति में है. आठ दिन हो गए सब्जी का मुँह नहीं देखा,थाली से सब्जी गायब हो गयी। कभी दाल गायब तो कभी सब्जी गायब। क्या थाली को भी चैन नहीं मिलता है. जो धन था वह धन न रहा, सरकार जीजान कोशिशों के बाबजूद आज भी एटीम का पेट खाली है, पैसा बैंक में आ रहा है तो कहाँ जा रहा है ?
हम जब बैंक गए तो वहां कोई बड़े धनवान सज्जन ने मैनेजर से कहा डेढ़ लाख जमा करना है और निकालना भी है। मैनेजर गाय की तरह सिर हिलाकर बोला - सर एक दिन रुकिए ,काम हो जायेगा, अभी बैंक खाली है। भाई डेढ़ एक लाख एक दिन में खा लेंगे ? अब समझ में आया गरीब, किसान ,मध्यमवर्गीय की लाइन कम क्यों नहीं हो रही है।
बाजार में लोग मक्खी मारने की कोशिश कर रहें हैं किन्तु मक्खियाँ भी होशियार निकली। कहीं नजर नहीं आ रही है। हमने एक आदमी से पूछा फैसला गलत है क्या ? बेचारे ने सिंह बनकर ऐसी नज़रों से हमें देखा जैसा अभी खा जायेगा। ऑटो वाले साथ बैठकर समय गुजार रहें है. सवारियाँ नहीं है फिर भी संतोषजनक मुद्रा है। इस कतार ने देश में भाईचारा बढ़ा दिया है।जिसे पिंक रानी मिल गयी उसे मुस्कुरा कर ऐसे ख़ुशी से विदा कर रहें है। जैसे कोई विजेता।
हमें भी बड़ी तकलीफों के बाद एटीम से एक गुलाबी नोट मिला सोचा रेजगारी ले आएं। कल हम एक सेन्डविच की दुकान पर गए दो सेन्डविच लेकर खाये तो उसने १०० की पत्ती ले ली. हमने कहा भैया इतना मँहगा क्यों?तो बोला छुट्टे पैसे नहीं है। सब्जी वाले के पास गए तो बोला - पूरा १०० की ले लो छुट्टे पैसे नहीं है। एक पत्ती थी वह भी गयी , कोई गुलाबी नया धन लेने के लिए तैयार नहीं है। हे राम कैसे दिन आ गए. हर जगह मारामारी है, पर बाजार में रेजगारी नहीं है, जो लोग खर्च कर रहें हैं वह पैसा कहाँ जा रहा है। भाई हमें तो अब छुपाने से भी डर लगता है।
काला धन कहाँ है काले धन वाले कहाँ है, सोशल मीडिया में वोटिंग की जा रही है कि फैसला सही है या गलत. दुनिया भर के अखबार इस फैसले पर सकारात्मक मोहर लगा चुके हैं , हर जगह वाह वाही है ,भाई उन्हें तो शब्द खर्च करने हैं यहाँ आकर पैसा खर्च करें कतार में लगे तो समझ आएगा। पैसा है फिर भी पेट खाली है।
हमें काला धन तो पता नहीं लेकिन गुलाबी नया धन हमारी नैया पार नहीं कर पा रहा है। हम बेचारे ईमानदारी के मारे हैं. न पैसा है न वोट , हम तो सबसे हारें हैं। फिर भी ससुरे कह रहें है अच्छे दिन आने वाले हैं. अच्छे दिन का पता नहीं लेकिन नियम कायदे रोज भेष बदल कर जिंदगी में सेंध लगा रहें हैं.नित नए कायदे से हम जैसी आम पत्नियां घबरा सी गयी हैं। बेचारी पति से धन बचाकर सोना खरीदती थी आज वह भी टैक्स माँग रहा है, हाय री किस्मत पतिदेव का बस चले तो हमें काला पानी की सजा दे दें। पहले गृहणी इस कला के कारण सुघड़ मानी जाती थी लेकिन अब हमारी सुघड़ता की कला ने हमारे धन को संदिग्धता के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया था. भले ही सरकार ने इस राशि को मान्यता दी है किन्तु पतिदेव की प्रश्नवाचक निगाहों ने इसे अमान्य करार कर दिया। हाय धन भी गया और भेखुल गया. हाथ खाली के खाली। बेचारा दिल कहता है -- जाने वाले हो सद के तो लौट के आना।
भाई नुक्स निकालना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. देश हो या नियम कायदे हम तो नुक्स निकालेंगे। जल्दी ही चुनाव होंगे लेकिन उसके पहले ही लोगों के हाथों में स्याही लगी होगी, कहीं आग लगी होगी तो कहीं धुआँ उठेगा। अब फिर दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के चार दिन।
------ शशि पुरवार
पुणे महाराष्ट्र