Tuesday, September 20, 2011
Wednesday, September 14, 2011
हिंदुस्तान की पहचान .....! " हिंदी "
अनेक है बोली ,
अनेक है नाम ,
यही तो है ,
हिंदुस्तान की पहचान .
इस हिंदुस्तान का परचम ,
लहराने के लिए ,कई वीरो ने है अपना ,
सर कलम किया .
गर्व होता है ,
हिन्दुस्तानी होने पर , जहाँ
अनेक भाषा के साथ ,
प्यार ने भी है जन्म लिया .
भाषाओ की जब बात उठे तो,
" हिंदी " हिंदुस्तान की " राष्ट्रभाषा " है
सबसे प्यारी , सबसे न्यारी ,
दिल के एहसास को छूने वाली ,
हिंदी हमारी " मातृभाषा " है .
रस में घुल जाते है शब्द ,
जब हिंदी का है प्रयोग किया.
" जन-गन-मन " और " वन्दे-मातरम " ने ,
फक्र से दुनियां में ,
हमारा नाम रौशन किया .
पर व्यथा है इसकी एक ऐसी , कि
हिंदी राष्ट्र- भाषा होने के बाबत ,
राष्ट्र- कार्य में अंग्रेजी का प्रयोग हुआ .
रस मे घुली इस प्यारी
हिंदी भाषा पे ,
ये कैसा है जुल्म हुआ .
इधर - उधर जिसे भी देखो
अंग्रेजी के सुर लगाता है.......!
हिंदी को तो हाय हमारी , आज
बस , इस इंगरेजी ने ही मार डाला है..
रस की तरह पीकर
इन शब्दो को
हिंदी का प्रयोग करो ,
मातृभाषा है यह हमारी
अब तो इसका सम्मान करो .
" जय हिंद , जय भारत "
:- शशि पुरवार
Saturday, September 10, 2011
मंजिल..........!
रास्ते नए बनाने है .
आकाश के टिमटिमाते तारो में
एक पहचान हमारी बनानी है.
चन्द्रमा की उंचाइयो तक पहुच कर
उस पार हमें तो जाना है .
सूरज की तपन में तप कर
कुंदन हमें बन जाना है .
हर पथरीले रास्तो से गुजरकर ,
एक राह हमें बनानी है .
चन्द्रमा सी शीतलता लेकर ,
राहो को ,
इन शीतल किरणो से सजाना है ....!
अमावस न आये किसी के जीवन में ,
ऐसी ज्योत जलानी है.
दीपो की मालाये बनाकर ,
खुद ही राहो में बिछानी है .
मंजिल कितनी भी हो दूर ,
पास उसके जाना है ..
जिंदगी में इतने उतार-चढ़ाव आते है कि कई बार हिम्मत टूट जाती है . पर उठ कर निरंतर चलते रहने का नाम है जिंदगी . जिदगी के हर मोड़ पर नजर आती है मंजिल , तो वहां तक पहुचने के लिए हर कटीले रास्तो को मुस्कुरा कर पार करने का नाम है जिंदगी ...... !
चन्द्रमा सी शीतलता लेकर ,
राहो को ,
इन शीतल किरणो से सजाना है ....!
अमावस न आये किसी के जीवन में ,
ऐसी ज्योत जलानी है.
दीपो की मालाये बनाकर ,
खुद ही राहो में बिछानी है .
मंजिल कितनी भी हो दूर ,
पास उसके जाना है ..
मंजिल तो हमें पानी है,
मंजिल नयी सजानी है ..........!जिंदगी में इतने उतार-चढ़ाव आते है कि कई बार हिम्मत टूट जाती है . पर उठ कर निरंतर चलते रहने का नाम है जिंदगी . जिदगी के हर मोड़ पर नजर आती है मंजिल , तो वहां तक पहुचने के लिए हर कटीले रास्तो को मुस्कुरा कर पार करने का नाम है जिंदगी ...... !
चन्द्रमा की तरह शीतलता बिखरने और शीतल किरणो से सजाने का नाम है जिंदगी .
शशि का अर्थ है चाँद , तो चाँद की तरह शीतलता प्रदान करने का नाम है जिंदगी . डायरी के पन्नों से बचपन की कलम
:- शशि पुरवार
:- शशि पुरवार
Wednesday, August 31, 2011
जीवन की तस्वीर है यह........!
शिकवा क्या करें इस जहाँ से ,
मानवीय संवेदनाओ से परे है यह .
तकदीर के हाथो खेल रही ,
जीवन की तस्वीर है यह.
संवेदनाओ के हवन कुण्ड से निकलती ,
चमक नहीं ये बेबसी की लपटे है.
दम तोड़ती है यहाँ संवेदनाए ,
क्यूंकि , बे- गैरत इंसानो से ,
भरा है यह जहाँ.
लालच की है इसकी दीवारें .
स्वाहा होती है यहाँ जिदगियाँ , पर
कौन उन्हें संभाले ......!
कतरा - कतरा बह रहा है खून ,
उजड़ रहे है चमन ,
फिर भी कोशिश यही है कि,
हम इन्हें बचा ले .......!
मासूम होती है ये जिंदगानी
क्यूँ इसे नरक बना दे .
कोई तो समझाओ , कोई तो बताओ ,
इस हवन -कुण्ड में .......,
इंसानो को नहीं , अपने लालच , और
इस हवन -कुण्ड में .......,
इंसानो को नहीं , अपने लालच , और
बुराइयो को जलाओ .......!
: - शशि पुरवार
आज देश - विदेश में नशा एक आम चीज हो गयी है , नशे की लत लोगो में बढती जा रही है . सिगरते , तम्बाकू ., शराब ...... चरस , गाँजा........ आदि . अनेक प्रकार के साधन उपलब्ध है और लोग जानते हुए भी नशे का सेवन करते है और इन चीजो ने बच्चो और उच्च वर्गीय महिलाओं को भी अपना गुलाम बना लिया है . सरकार को इन वस्तुओ से कमाई होती है तो वह भी अपने मतलब के लिए बंद नहीं करती और इन्हें बनाने वालो को तो सिर्फ अपनी मोटी रकम से मतलब होता है .
मैंने नशे के ऊपर लेख लिखा था , जो बहुत पहले पत्रिकाओ में प्रकाशित हो चुका है. पर ये गन्दा धुआं आज भी अपने पैर पसार रहा है . आज मन हुआ कि इस पर कविता लिख दू . यहाँ कभी अपना लेख भी प्रस्तुत करूंगी .
अगर मेरे लेख या कविता से किसी को भी कुछ फर्क पड़ता है , तो मुझे ख़ुशी होगी कि प्रयास बेकार नहीं हुआ.............!
: - शशि पुरवार
आज देश - विदेश में नशा एक आम चीज हो गयी है , नशे की लत लोगो में बढती जा रही है . सिगरते , तम्बाकू ., शराब ...... चरस , गाँजा........ आदि . अनेक प्रकार के साधन उपलब्ध है और लोग जानते हुए भी नशे का सेवन करते है और इन चीजो ने बच्चो और उच्च वर्गीय महिलाओं को भी अपना गुलाम बना लिया है . सरकार को इन वस्तुओ से कमाई होती है तो वह भी अपने मतलब के लिए बंद नहीं करती और इन्हें बनाने वालो को तो सिर्फ अपनी मोटी रकम से मतलब होता है .
मैंने नशे के ऊपर लेख लिखा था , जो बहुत पहले पत्रिकाओ में प्रकाशित हो चुका है. पर ये गन्दा धुआं आज भी अपने पैर पसार रहा है . आज मन हुआ कि इस पर कविता लिख दू . यहाँ कभी अपना लेख भी प्रस्तुत करूंगी .
अगर मेरे लेख या कविता से किसी को भी कुछ फर्क पड़ता है , तो मुझे ख़ुशी होगी कि प्रयास बेकार नहीं हुआ.............!
Friday, August 26, 2011
क्यों सोचता है इंसान ........?
होंगे बच्चे उसके साथ .
आगे बढने की चाह में हम
नहीं रोक सकते ,
उन्हें अपने पास .
उन्हें अपने पास .
जीवन भर की संजोई धरोहर
संजोये सपने ,
बिखर जाते है
बिखर जाते है
जब बच्चे ,
दूर हो जाते है .
दूर हो जाते है .
एक तरफ खुशी है , तो
दूसरी तरफ तन्हाई है.
जीवन की साधना , आज
सफल हो पाई है , फिर
क्यूँ जीवन में रिक्तता आई है ..... ?
: - शशि पुरवार
यह कविता पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है.
हर माता-पिता कि ये तम्मना होती है कि उनके बच्चे उच्च शिक्षा ले ,ऊँचा मुकाम जिन्दगी में हासिल करे , इससे उनका भी मान बढेगा . इसलिए वह उम्र भर अपने बच्चो के लिए न जाने कितने त्याग व जतन करते है . बच्चो को उच्च शिक्षा व आगे बढ़ने के लिए घर से बाहर निकलना पड़ता है , फिर वह वापिस नहीं आ पाते और उम्र के एक मुकाम पर बच्चो की कमी खलने लगाती है .
उन्हें जहाँ एक तरफ बच्चो कि उपलब्धियो कि ख़ुशी होती है , वहीं दूसरी तरफ तन्हाई , अकेलापन , रिक्तता........!
बच्चे तो जिंदगी कि दौड़ में रुक नहीं पाते ...... और बड़े उम्र कि इस दहलीज में उनके साथ दौड़ नहीं पाते और कभी अपनी जड़े छोड़ नहीं पाते . जहाँ इस उम्र में प्यार और सहारे कि जरूरत होती वहीं , अकेलापन उन्हे जीने नहीं देता .
Thursday, August 25, 2011
नाजुक रिश्ते .......!
कांच से भी ज्यादा ,
कोमल होते है ये रिश्ते.
धोखे से लगे एक कंकड़ से भी
चटक कर उभर आते है निशान .
रिश्ता कोई भी हो ,
अलग - अलग है उसके नाम .
हर रिश्ते में होती है एक ,
गरिमा और उसकी पहचान .
प्यार से गर सीचो तो
खिलते है फूल .
कांटे गर बोये तो
रास्ते हो जायेंगे दूर .
बंद मुट्ठी जहाँ होती है
एकता की पहचान .
खुले हाथ छोड़ जाते है
सिर्फ पंजो के निशान.
रिश्तो की रस्सा - कस्सी में
जहाँ चटक जाती है दीवारे ,
वही ढह जाता है मकान .
नाजुकता के कांच से बने
इन रिश्तो को
जरा प्यार से संभालो , नहीं तो
चारो तरफ सिर्फ ,
Tuesday, August 23, 2011
सुहानी सुबह .....!
सुबह की सुहानी ,
चंचल चितवन ने ,
अधरो पे मेरे ,
मुस्कान लाई.
चिड़ियो का चहचहाना , और
भोर की पहली
किरण का,
चुपके से मेरे
घर आना , फिर
दिल में आशा की
नयी ज्योत जगाना .
शीतल हवा का होले से
छूकर जाना , और
मन का मचल जाना.
नए दिन का यह
सुहाना सफ़र ,
भोर का यह
प्यारा सा पल
खोल रहा है , मेरे
नयनो का पट .
:- शशि पुरवार
कभी जब ऐसी सुबह मन को प्रफुल्लित करती है , तो दिन भी सुहाना ही होता है . काश हर सुबह इतनी ही सुहानी हो . नया दिन सुहाने सफ़र के साथ .
Wednesday, August 10, 2011
क्या हूँ मै .......... ?
कहाँ हूँ मै .......?
अक्सर तन्हाइयों में सोचती हूँ ,
क्या हूँ मै... ?
लगता है जैसे पहचान तो बहुत है ,
पर पहचानता कोई नहीं .. !
दुनिया की इस भीड़ में भी ,
तन्हा हूँ मैं !
तूफानी हवाओं के साथ ,
ठिकानो की तलाश है ....!
ठिकानो की तलाश है ....!
पतझड़ के मौसम में भी ,
बहारो की आश है .
बहारो की आश है .
छलकती मन की गागर को ,
सबसे छिपाऊ मै .....!
Monday, August 8, 2011
फिर मानवता बिलख उठी ...!
कितना बे-गैरत है जमाना
चाहते है एक आशियाँ बनाना .
मिटटी - गारा तो लाये
और फिर सामान फैला कर
इक टूटा आशिया बना दिया .
मानव मुल्यो की क्या जगह है यहाँ ,
पर कीमत तो आको
मानव खुद ही बिक जायेगा यहाँ !
प्रेम क्या है ?
पूछो इन माटी के पुतलो से -
" पैसा ही तो प्रेम है ".
सुन्दरता क्या है ?
पूछो इन हस्तियों से ,
" पैसा ही सबसे सुन्दर है " .
इंसानियत को न जानने वाले ये मानव
इंसानियत का ही ढोल पीटते है !
जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले ये मानव ,
सभ्यता को कौन सा रूप प्रदान करते है ?
: - शशि पुरवार
यह कविता पत्रिकाओ में प्रकाशित हो चुकी है
: - शशि पुरवार
यह कविता पत्रिकाओ में प्रकाशित हो चुकी है
Friday, July 29, 2011
ऐ मेरे चाँद।
जिन्हें मै पा नहीं सकूं . तू मत दिखा मुझे वो नज़ारे
ऐ चाँद ,
ऐ चाँद ,
तू मत कर वो इशारे
जिन्हें मै समझ न सकूं .
ऐ चाँद ,
तू मत समा मेरे दिल में इतना
कि तुझे मै छिपा न सकूं .
ऐ चाँद ,
तू मत दूर जा मुझसे ,
कि तेरे बिन रह भी न सकूं .
ऐ मेरे चाँद ,
डूब जाने दे मुझे तेरे प्यार में
इतना कि खुद को भी मै याद न आ सकूं .
ऐ चाँद ,
पिला तेरे प्यार का जाम इतना कि
कभी होश में ही ना आ सकूं .......!
: शशि पुरवार
ये कविता मैंने चांदनी रात में चाँद को देख कर लिखी थी , यह कविता समाचार पत्रों व कुछ पत्रिकाओ में भी छप चुकी है .
Tuesday, July 26, 2011
" अलविदा "......
बार - बार मुस्कुरा रहा है
इशारो से वह बुला रहा है
कितना अच्छा लग रहा है ,
उसकी ये अदाएं तो
सबके मन पर छा जाएँ
उसकी वो प्यार भरी नजरे
उसका खिलखिला कर हँसना
ये अदाएं तो दिल में बस जाएँ ....
वह तो चिंता से परे खड़ा है ,
कौन है वह ..? कौन है ....?
नहीं - नहीं .....
ये वह नहीं ..
यह और कोई नहीं , वही है ....
वही है ये तो ..... वही है ........!
यही तो है मेरा बचपन
अलविदा बचपन " अलविदा "
:- शशि पुरवार
यह कविता समाचार पत्रों और पत्रिकाओ में प्रकाशित हो चुकी है .
Friday, June 24, 2011
big day
today 22 june is the special day for me ......so i want to celebrate this day in a very special manner .
i want to do some thing for me which give me a fresh and new feeling forever ...........this b'day i will celebrate for myself ..........doesn't matter if party is not planed.........just wish my self for a new sunny morning ........!
i want to do some thing for me which give me a fresh and new feeling forever ...........this b'day i will celebrate for myself ..........doesn't matter if party is not planed.........just wish my self for a new sunny morning ........!
Tuesday, June 21, 2011
sapne
सपने.... एक ख्वाब ,
मन की गहराईयों में छुपी
हुई हमारी आकांशाएँ .......!
सपने मन की शीतल गहराईयों में
सदैव ही फलते- फूलते रहते है .
सपने,
जो हमारी अपनी धरोहर होते है .
मन की गहराईयों में छुपी
हुई हमारी आकांशाएँ .......!
सपने मन की शीतल गहराईयों में
सदैव ही फलते- फूलते रहते है .
सपने,
जो हमारी अपनी धरोहर होते है .
सपने कभी अपनी उड़ाने भरते है
तो कभी मन की धरती पर ही अपना दम तोड़ देते है .....!
पर फिर भी सपने हमारे अपने होते है ......!
: शशि पुरवार
सपने में आपका स्वागत है
Subscribe to:
Posts (Atom)
समीक्षा -- है न -
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
https://sapne-shashi.blogspot.com/
-
मेहंदी लगे हाथ कर रहें हैं पिया का इंतजार सात फेरो संग माँगा है उम्र भर का साथ. यूँ मिलें फिर दो अजनबी जैसे नदी के दो किनारो का...
-
हास्य - व्यंग्य लेखन में महिला व्यंग्यकार और पुरुष व्यंग्यकार का अंतर्विरोध - कमाल है ! जहां विरोध ही नही होना चाहिए वहां अ...
-
साल नूतन आ गया है नव उमंगों को सजाने आस के उम्मीद के फिर बन रहें हैं नव ठिकाने भोर की पहली किरण भी आस मन में है जगाती एक कतरा धूप भी, ...
linkwith
http://sapne-shashi.blogspot.com