कवि ह्रदय में बजते है
जज्बातों के चंग
कलम जरा टेक लगाओ .
पल पल बदले नयनो का
सतरंगी बसंत
भावों का पंछी बहके
जन्में पद अनंत,
मन बावरा फिर कहे
खूब सुरीले छंद
कलम जरा टेक लगाओ।
कहीं बबूल कहीं फूल
की छन रही है भंग
अरहर सरसों पी रहे
कलियाँ भी है संग
भौरें नाचे बाग़ में
मच गयी हुरदंग
कलम जरा टेक लगाओ।
पूनो का चाँद खिला,करें
तारो से बतियाँ
अमा का नाग डसे, तो
छिटक जाए सखियाँ
तन्हाई की बेला में
शब्द बजाते मृदंग
कलम जरा टेक लगाओ।
टेसू से दहक रहा वन
उदासी भी लुढके
शाखों पर अमराई
मुस्काए छुप छुपके
बार बार नहीं दिखाता
मौसम अपने रंग
कलम जरा टेक लगाओ।
3/04/13
-----शशि पुरवार